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महेंद्र सिंह धोनी के अचानक रिटायरमेंट लेने के बाद चार साल पहले आज ही के दिन विराट कोहली ने भारत की टेस्ट टीम की कप्तानी संभाली थी. 2014-15 में भारतीय टीम ऑस्ट्रेलिया के दौरे पर थी. कोहली को पहली बार वैकल्पिक रूप से कप्तानी की जिम्मेदारी दी गई थी. इस दौरान एक असंभव लक्ष्य को करीब-करीब हासिल कर कोहली ने अपने आक्रामक रुख का संकेद दे दिया था.
तब धोनी की कप्तानी में दो और टेस्ट मैच होने के बाद, कोहली अपने फॉर्म में दिखने लगे थे. फिर एमएस धोनी ने टेस्ट क्रिकेट को अलविदा कह दिया और इसके साथ ही भारतीय टीम को एक नया कप्तान मिल गया. उसके बाद से भारतीय टेस्ट क्रिकेट में कोहली के दौर की शुरुआत हो गई.
कप्तान के रूप में कोहली की शुरुआत अच्छी नहीं रही. नए साल पर सिडनी में हुआ टेस्ट और इसके बाद उसी साल गर्मी में बांग्लादेश का टेस्ट ड्रॉ हो गया. फिर आया 2015. भारतीय टीम श्रीलंका दौरे पर गई और कोहली की टीम वहां से टेस्ट सीरीज जीत कर लौटी. इस दौरे में ये दिखा कि कैसे कप्तान ने टीम को अपनी खूबियों से अपने हिसाब से कर लिया है.
धोनी के नेतृत्व में विदेशों में भारतीय क्रिकेट टेस्ट का रिकॉर्ड अच्छा नहीं रहा, खासकर 2011 से 2014 के बीच. ये समझा गया कि उन्हें टेस्ट क्रिकेट से कोई लगाव नहीं. धोनी टेस्ट इस हिसाब से खेलते थे, मानो वह कोई वन-डे का कोई बड़ा रूप हो.
हालांकि दोनों दौर की कप्तानी की तुलना करना ठीक नहीं होगा, लेकिन कोहली और धोनी एक-दूसरे से इस कदर जुड़े हुए थे कि आप दोनों खिलाड़ियों और उनकी वसीयत पर नजर जरूर डालेंगे. दोनों ने ही भारत के लिए अपने तरीके से खेला. लेकिन कोहली की कप्तानी ने भारतीय क्रिकेट के टेस्ट फॉर्मेट पर ज्यादा असर डाला.
2009 में धोनी की कप्तानी में भारत की गिनती की जाने लगी थी. हालांकि इसकी वजह इससे पिछले के दो साल में राहुल द्रविड़ और अनिल कुंबले की कप्तानी भी थी. इसके बाद जैसे-जैसे खिलाड़ी रिटायर होते रहे और पुराने खिलाड़ियों का फॉर्म खराब होता रहा, कोहली को एक तरह से पूरी टीम फिर से खड़ी करनी पड़ी.
आखिर के 4 सालों में कोहली ने लगभग इस पहेली का हल कर लिया है, हालांकि कई जगहों पर अब भी कमी है.
गेंदबाजी के दौरान आक्रामक रूप से पेस का इस्तेमाल, कोहली की कप्तानी का महत्वपूर्ण पहलू है. जबकि धोनी ने अपनी कप्तानी में घर-बाहर दोनों ही जगहों पर लाइन एंड लेंथ के हिसाब से गेंद फेंकने वालों की तरजीह दी.
कोहली पेस गेंद फेंकने वालों को ज्यादा पसंद करते रहे. ये बल्लेबाजों को लगातार मैदान से बाहर करने में लगे रहे. इसमें एकमात्र ईशांत शर्मा ही ऐसे खिलाड़ी हैं, जिन्होंने कोहली के साथ दिल्ली में फास्ट बॉलर के रूप में धोनी के दौर में क्रिकेट करियर की शुरुआत की थी. बाकी के गेंदबाज खुद ही कोहली के दौर में आ गए. यहां तक कि उमेश यादव, मोहम्मद शमी और भुवनेश कुमार ने भी धोनी के दौर में अपने करियर की शुरुआत की थी.
इस तरह से भारतीय टेस्ट इतिहास में पूरी तरह से सज्जित तेज गेंदबाजों की कतार खड़ी हो गई. आखिरी 11 खिलाड़ियों में अपनी जगह पक्की करने वाले में जसप्रीस बुमराह, ईशांत और शमी सबसे आगे थे. भुवी और उमेश का नंबर इनके बाद आया. उसी समय एक ऑलराउंडर तैयार हो रहा था- हार्दिक पांड्या. इसने दक्षिण अफ्रीका और इंग्लैंड दौरे के समय आक्रामक खेल के साथ संतुलित खेल का पहलू भी जोड़ा.
2018 में विदेशी दौरे के टेस्ट सीरीज पर कब्जा की शुरुआत करने से पहले, कोहली की कप्तानी में मिली लगभग सभी जीत में रविचंद्रन अश्विन और रवींद्र जडेजा का अहम योगदान था. इन दोनों ने अपनी स्पिन गेंदबाजी से बल्लेबाजों के इर्द-गिर्द ऐसा जाल बुना कि भारत शीर्ष की ओर पहुंचता गया.
2018 में विदेशी दौरे की परेशानी सामने आने से पहले, कोहली की टीम ने दो बार श्रीलंका (2015 और 2017) और एक बार वेस्ट इंडीज (2016) में अपनी जीत के झंडे गाड़ दिए थे. ये अब भुला दिए गए, शायद इसलिए कि विरोधी ज्यादा मजबूत नहीं था. फिर भी एक समय ऐसा आया, जब भारत को श्रीलंका और वेस्टइंडीज में जीतने के लिए संघर्ष करना पड़ा था, खासकर 1990 के दशक और 2000 के दशक की शुरुआत में.
इस साल दक्षिण अफ्रीका, इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया में टेस्ट में अपनी खेल से भारत ने ये साबित कर दिया कि वो प्रगति कर रहा है. भारत को कागजी शेर कहा जाता था. कहा जाता था कि भारतीय टीम अपने घर में ही शेर है.
दक्षिण अफ्रीका दौरे में ये भी पहली बार हुआ कि कोहली की कप्तानी पर सवाल खड़े किए जाने लगे. पहले दो टेस्ट में उप कप्तान अजिंक्य रहाणे को मैदान पर नहीं उताने को लेकर उनकी आलोचना हुई. इसके बाद इंग्लैंड में यही कहानी दोहराई गई. भारत ये सीरीज हार गई. इसके बाद
चेतेश्वर पुजारा को टीम से बाहर कर कुलदीप यादव के रूप में एक अतिरिक्त स्पिनर को टीम में शामिल कर भारत ने एक बार फिर गलती की, जबकि लॉर्ड के मैदान पर अतिरिक्त स्पिनर की जरूरत नहीं थी.
हालांकि टीम इंडिया ने इंग्लैंड में टेस्ट सीरीज जीतने में कामयाबी पा ली है, लेकिन ये दौरा टीम के हेड कोच रवि शास्त्री के एक बयान के कारण याद रखा जाएगा. रवि शास्त्री ने इस टीम को पिछले दो दशकों में भारत की सबसे अच्छी टीम बताया. हालांकि इससे काफी सनसनी फैली, लेकिन सच्चाई है कि शास्त्री पूरी तरह से गलत भी नहीं थे.
लेकिन इस समय गांगुली के मुकाबले कोहली के पास कहीं ज्यादा आक्रामक टीम है. इसके अलावा, गांगुली की टीम ने बांग्लादेश और जिम्बाब्वे में जीत हासिल की, जबकि कोहली की टीम बांग्लादेश में एक टेस्ट ही ड्रॉ करा पाई.
कोहली के पास इस समय कहीं बेहतर ऑलराउंडर खिलाड़ी हैं, तो गांगुली की टीम में सितारे खिलाड़ियों की कतार थी, शायद अब तक के सबसे बेहतरीन.
अगर गांगुली के पास कोहली जैसी आक्रामकता होती और कोहली के पास गांगुली जैसे एक से बढ़कर एक बल्लेबाज, तो हमारे पास सर्वश्रेष्ठ भारतीय टीम होती.
टेस्ट कप्तान के रूप में जीत हासिल करने के संदर्भ में कोहली के आगे सिर्फ धोनी हैं, लेकिन उन्हें भारतीय टेस्ट टीम को हर मायने में मजबूत बनाने के लिए काफी कुछ करना होगा.
अभी तो कोहली के दौर का आखिर तक मजा लीजिए. लेकिन इसकी संभावना है कि 2019 विश्व कप के बाद कोहली अपना ध्यान किसी एक ही फॉर्मेट पर लगा सकें. वो फॉर्मेट कौन सा होगा, इसका आकलन फिलहाल तो रहने दिया जा सकता है.
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