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दिसंबर 2016 को इंग्लैंड के पूर्व कप्तान और मौजूदा समय में एक बेहद सम्मानित क्रिकेट कमेंटेटर माइकल एथर्टन ने इंग्लैंड की मशहूर अखबार 'द टाइम्स' में अपने एक लेख में कोहली के भारतीय क्रिकेट में प्रभाव पर एक आलेख में ऊपर की पंक्तियां लिखी थीं. आज जब कोहली अपने करियर का 100वां टेस्ट खेल रहे हैं तो इंग्लैंड के पूर्व कप्तान की वो बातें अक्षरश: सही साबित होती दिखती हैं.
इस बात को ना तो किसी को मानने में या कहने में हिचक होनी चाहिए कि भारतीय टेस्ट क्रिकेट में किसी एक कप्तान या बल्लेबाज ने इकलौते अपने दम पर किसी टीम की संस्कृति में ऐसा क्रांतिकारी बदलाव नहीं किया.
अगर सौरव गांगुली ने नई सदी के शुरुआत में विदेशी जमीन पर नियमित तौर पर जीत हासिल करने का सपना देखा तो करीब दो दशक बाद कोहली की विरासत ये है कि दुनिया के किसी भी मुल्क में अगर टीम इंडिया खेलने उतरती है तो विरोधी जानते हैं कि ये टीम सिर्फ जीत के इरादे से मैदान में उतरी है.
पारंपरिक तौर पर टेस्ट क्रिकेट में 50 का औसत या फिर 100 टेस्ट मैच या 20 शतक आपको महानता का दर्जा दिलाने के लिए काफी होते थे. यूं तो भारत के लिए अब तक 11 खिलाड़ियों ने 100 से ज्यादा टेस्ट खेले हैं लेकिन उनमें से सिर्फ 6 बल्लेबाज हैं. दिलिप वेंगसरकर, सौरव गांगुली और वीवीएस लक्ष्मण के ना तो 20 शतक हैं और ना ही उनका औसत 50 से ऊपर का है.
वीरेंद्र सहवाग के 23 शतक तो हैं लेकिन उनका औसत 50 से थोड़ा कम है. इसके अलावा सहवाग का रिकॉर्ड ऑस्ट्रेलिया को छोड़कर इंग्लैंड, न्यूजीलैंड और साउथ अफ्रीका में साधारण है. कहने का मतलब ये है कि 100 टेस्ट खेलने के बावजूद ये तमाम दिग्गज स्वाभाविक महानता की परीक्षा में आसानी से पास नहीं होते हैं. लेकिन, सुनील गावस्कर, सचिन तेंदुलकर और राहुल द्रविड़ का अगर आप नाम लें तो ना सिर्फ भारतीय क्रिकेट बल्कि दुनिया में जब भी कोई महानतम प्लेइंग इलेवन बनाने की कोशिश करेगा तो उसमें इन तीनों के नाम की चर्चा जरूर होगी और तेंदुलकर निश्चित तौर पर होंगे.
कई मायनों में देखा जाए तो कोहली के लिए महानता की कसौटी अब सिर्फ और सिर्फ तेंदुलकर ही हैं. तेंदुलकर जो उनके आदर्श रहे हैं, जिनकी तरह कोहली बनना चाहते थे उनके लिए इससे बेहतर गुरु दक्षिणा और क्या हो सकती थी. 100वें टेस्ट से ठीक पहले तेंदुलकर और कोहली के आकंड़ों की तुलना करेंगे तो आप पाएंगे कि औसत के मामले में दोनों खिलाड़ियों के बीच लंबा फासला है. करीब 8 का.
कोहली का औसत जहां 50 के करीब है वहीं तेदुलकर का करीब 58 का था. इतना ही विदेशी जमीन पर कोहली का औसत करीब 42 का है जबकि तेंदुलकर ने अपने सौवें टेस्ट से ठीक पहले विदेशी जमीन पर अपना औसत करीब 54 के रखा था. इतिहास और आंकड़े गवाह हैं कि 100वां टेस्ट तेंदुलकर के करियर का अधूरा पड़ाव ही था, क्योंकि इसके बाद उन्होंने फिर 100 टेस्ट और खेले.
कुल मिलाकर अगर देखा जाए तो कोहली के लिए 100वां टेस्ट कई मायनों में उनके लिए पहले टेस्ट की तरह है. कोहली कप्तानी छोड़ने के बाद करीब 6 साल बाद एक खिलाड़ी के तौर पर टेस्ट क्रिकेट खेलेंगे. भारतीय क्रिकेट इतिहास में किसी भी खिलाड़ी ने इतने लंबे समय तक कप्तानी के बाद एक सामान्य बल्लेबाज की तरह टीम में कभी नहीं खेला.
कोहली की चुनौती ये है कि वो फिर से अपने आप को टेस्ट में विराट साबित करें क्योंकि उनके बल्ले से शतक करीब ढाई साल से नहीं लगे और इस दौरान 27 पारियां भी बीत गई हैं. अगर कोहली ने मोहाली में अपनी उस भूख और पुराने विराट को तलाश लिया तो हो सकता है कि सचिन के 200 टेस्ट ना सही लेकिन उनके तमाम आंकड़े वो उससे कम मैचों में ही तोड़ डालें.
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