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बिना किसी ताज का बादशाह कैसा? अगर दुनिया में आपको अपनी बादशाहत का लोहा मनवाना है तो आपके सर पर कोई ताज तो होना ही चाहिए ना? ये तो बेहद स्वभाविक सी बात है. ठीक इसी तर्ज पर अगर क्रिकेट की दुनिया में आपको खुद को महान कप्तान या महान टीम का तमगा हासिल करना है तो आपको ऐसा कुछ खास तो हासिल करना ही होगा जिससे आलोचकों को ये लगा कि आपकी महानता का दावा खोखला नहीं है. आपके दावों में दम है जिसे नकारा नहीं जा सकता है.
टीम इंडिया के कोच रवि शास्त्री के पास खुद को महानतम कोच का तमगा लेने के लिए ऑस्ट्रेलिया के दो दौरे पर लगातार जीत हासिल करने का रिकॉर्ड है तो वो निश्चिंत हैं अपनी विरासत को लेकर. बल्लेबाज के तौर पर विराट कोहली की महानता को लेकर भी कोई संदेह नहीं है अगर वो आज ही संन्यास का फैसला कर लें. लेकिन, क्या यही बात कप्तान के तौर पर ख़ासतौर पर टेस्ट कप्तान के तौर पर कोहली के बारे में कही जा सकती है? सीधा जवाब है नहीं.
कोहली ने भारतीय क्रिकेट में जितने टेस्ट जीते हैं उसके आस-पास महेंद्र सिंह धोनी भी नहीं जिन्होंने 60 में से 27 मैच जीते. कोहली ने तो इतने ही मैचों में 36 लेकिन धोनी को कोई मैडल की जरूरत तो है नहीं अपने को महान कप्तान में गिनवाने के लिए.
आप जानते ही हैं को धोनी ने आईसीसी यानि क्रिकेट को संचालन करने वाली सर्वोच्च संस्था द्वारा आयोजित हर तरह की ग्लोबल ट्रॉफी अपने नाम की है. शुरुआत टी 20 वर्ल्ड कप से की फिर वन-डे वर्ल्ड कप जीता और फिर चैंपियंस ट्रॉफी. ऐसा करने वाले वो दुनिया के अनोखे और इकलौते कप्तान भी हैं.
अपनी बादशाहत साबित करने के लिए दुनिया को ये बताने के लिए कि जब भी महानतम टेस्ट कप्तानों का जिक्र होगा तो फैंस को गूगल में जाकर उनके आंकड़ों को सर्च करने की जरुरत ना पड़ी. बस इतना ही कहना काफी हो कि अरे भाई, पहली बार 144 सालों के इतिहास में जब टेस्ट चैंपियनशिप के फाइनल का आयोजन हुआ तो विजेता कप्तान कोहली ही थे. बस, उसी से उनकी कप्तानी की विरासत हमेशा के लिए विराट हो जायेगी क्योंकि बाकि सब कुछ तो उनकी बायो-डाटा में लगभग है ही.
दूसरी बात ये भी है कि कोहली बखूबी जानते हैं कि इससे शानदार मौका तो किसी भी कप्तान को मिलेगा ही नहीं. टेस्ट मैच जीतने के लिए हमेशा पांरपारिक तौर पर इस बात पर जोर दिया जाता है कि आपके पास मैच कम समय में, किफायती गेंदबाजी करते हुए पूरे 20 विकेट लेने वाला गेंदबाजी आक्रमण है या नहीं. इस मामले में तो कोहली राजा हैं. उनके पास एक से बढ़कर एक नहीं बल्कि 5 लाजवाब तेज गेंदबाज है तो स्पिनर के तौर पर रविचंद्रण अश्विन और रवींद्र जडेजा की जोड़ी. मतलब, विकल्पों का ऐसा प्रचुर संसाधन की अक्सर पटेल जैसा खिलाड़ी जो किसी भी टेस्ट टीम में फटाफट प्लेइंग इलेवन का हिस्सा बन जाए उसे कोहली की टीम में 12वें खिलाड़ी की भूमिका भी निभाने को नहीं मिले.
तो क्या ये मान लिया जाए कि बस अब वर्ल्ड टेस्ट चैंपियनशिप जीतना महज औपचारिकता ही है? बिल्कुल नहीं. कम से कम न्यूजीलैंड जैसी मेहनती टीम के खिलाफ तो कुछ भी आप तय नहीं मान सकते हैं. आप लोगों को तो याद ही होगा कि कैसे 2019 में वन-डे वर्ल्ड कप के सेमीफाइनल में विलियमसन की सेना ने कोहली के वीरों को पस्त कर दिया था. इस बार मुकाबला इंग्लैंड में ही लेकिन सफेद गेंद की बजाए लाल गेंद और सेमीफाइनल की बजाए एक ऐतिहासिक फाइनल. लेकिन, कीवी जानते हैं कि इंग्लैंड का मौसम और पिचें उन्हें अपने मुल्क की याद दिलायेगा. और अपने मुल्क में कोहली या फिर उनके किसी भी साथी ने टेस्ट जीत का स्वाद नहीं चखा है सिर्फ अनुभवी ईशांत शर्मा ही अपवाद हैं.
दूसरी मुसीबत ये भी है कि इंग्लैंड में पिछले 35 सालों में भारत ने एक ही टेस्ट सीरीज जीती है और वो भी 2007 में जब टीम की बल्लेबाजी में राहुल द्रविड़, सचिन तेंदुलकर, सौरव गांगुली और वीवीएस लक्ष्मण जैसे दिग्गज हुआ करते थे लेकिन इस टीम के बल्लेबाजों पर वैसा ही भरोसा किया जा सकता है?
यकीन नहीं होता है तो चेतेश्वर पुजारा और अंजिक्या रहाणे के आंकड़ों को खंगाल ले जिन्होंने पूरी दुनिया में अपना परचम लहराया है लेकिन इस मुल्क में दोनों का औसत 30 की भी पार नहीं कर पाता है और दोनों ने 2-2 दौरों पर कुल मिलाकर सिर्फ 2 शतक ही जोड़ें हैं. एक और समस्या बल्लेबाजों के लिए ये है कि उनके पास फाइनल खेलने से पहले कोई अभ्यास मैच भी नहीं है जबकि कीवी टीम मेजबान इंग्लैंड के खिलाफ टेस्ट सीरीज खेलकर आयेगी और पूरी तरह से तैयार होगी. ऐसे में अहम सवाल यही कि क्या कोहली सारी मुश्किलों को धवस्त करते हुए एक ग्लोबल ट्रॉफी जीतने में कामयाब हो पायेंगे?
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