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Police Man से Police Officer, Fire Man से Fire Fighter, Chair Man से Chairperson कुछ इस तरह दुनिया शब्दों में लिंग समानता ढूंढ रही है.
इस बार कुछ ऐसी ही कोशिश हुई है क्रिकेट में. क्रिकेट के नियम निर्धारित करने वाली संस्था MCC ने Batsman की क्रिकेट से छुट्टी कर दी है और नया शब्द आया है 'batter'
हो सकता है आपने ये शब्द पहली बार सुना हो लेकिन अंतर्राष्टीय क्रिकेट में बल्लेबाजों के लिए यही शब्द प्रयोग में लाया जाएगा चाहे वो महिला खिलाड़ी हो या पुरुष खिलाड़ी.
जाहिर ये स्वागत योग्य कदम है लेकिन क्या क्रिकेट में बैट्समैन ही एक ऐसा शब्द है जो पुरुषवादी है ? और क्या इसे बदल देने से महिला क्रिकेट को जरूरी इज्जत मिल जाएगी ?
जवाब है नहीं !
अभी भी Thirdman, Night WatchMan और 12th Man जैसे पुरुषवादी शब्द खूब प्रचलित हैं और इनको भी बदले जाने की जरूरत है.
साफ है कि महिला क्रिकेटरों को सम्मान देने का ये कदम अधूरा है.
लेकिन अब दूसरा सवाल, क्या महिला क्रिकेट के साथ भेदभाव खाली शब्दों के आधार पर होता है. इसका भी जवाब है, नहीं !
MCC ने जो कोशिश की है वो महज एक पहल है, महिला क्रिकेटरों की हालत पुरुषों की तुलना में कई मायनों में दोयम दर्जे की है .
सबसे अमीर क्रिकेट बोर्ड बीसीसीआई को ही ले लीजिए, बीसीसीआई ग्रेड A+ के पुरुष खिलाड़ियों को सालाना 7 करोड़ रुपये देता है वहीं दूसरी तरफ ग्रेड A की महिला खिलाड़ियों को मिलते हैं महज 50 लाख रुपये.
घरेलू क्रिकेट में तो हालात और खस्ता हैं. रणजी मैच खेलने वाले एक सीनियर पुरुष क्रिकेटर को एक दिन की मैच फीस मिलती है 60,000 रुपये. लेकिन एक सीनियर फीमेल क्रिकेटर की एक मैच की फीस महज 20,000 है. वो भी तब जब 2 दिन पहले बीसीसीआई ने खिलाड़ियों की मैच फीस बढ़ाई है.
भेदभाव की बात हो रही है तो ब्रॉडकास्टिंग का जिक्र भी जरूरी है. महिला क्रिकेट की ब्रॉडकास्टिंग पुरुषों की तुलना में बहुत कम होती है.
इसका कारण यह दिया जाता है कि महिला क्रिकेट को स्पॉन्सर कम मिलते हैं. स्पॉन्सर न मिलने के पीछे फिर कारण दिया जाता है कि महिला क्रिकेट के दर्शक कम हैं. लेकिन जब महिलाओं की काबिलियत में कोई कमी नहीं है तो महिला क्रिकेट में पैसा कम कैसे जुटते है..
जाहिर है सवाल के लिए क्रिकेट खेलने वाली महिलाओं को समाज की तरफ ही ऊंगली उठानी चाहिए. ICC, BCCI, ब्रॉडकास्टर्स, स्पॉन्सर्स और फैंस को जवाब देना चाहिए.
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