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टीम इंडिया (Team India) के विकेटकीपर रिद्धिमान साहा (wriddhiman saha) फिलहाल सोशल मीडिया में सुर्खियों में हैं. एक पत्रकार के साथ व्हाटसऐप पर निजी चैट को सार्वजिनक करके साहा ने अचानक ही एक ऐसा कदम उठाया है जिसकी उम्मीद उनसे शायद किसी ने नहीं की होगी. लेकिन, यहां पर हम उस मुद्दे का जिक्र नहीं करेंगे. साहा ने पिछले कुछ दिनों में अपने करियर को लेकर कुछ दिलचस्प बयान दिये हैं जिससे ये आभास होता है कि उनके साथ चयनकर्ताओं और टीम मैनजेमेंट ने नाइंसाफी की है.
ये अच्छा है कि साहा के बयानों को कोच राहुल द्रविड़ ने बहुत ज्यादा अहमियत नहीं दी. कोच का ये कहना कि वो साहा का सम्मान करते हैं वाकई काफी बड़ी बात है क्योंकि भारतीय क्रिकेट में कोच और चयनकर्ताओं का सवेंदनशील होना उतना ही आपको देखने को मिलेगा जितना कि टी20 फॉर्मेट में भारत का वर्ल्ड कप जीतना. 40 टेस्ट मैचों के बाद भी अगर साहा का बल्लेबाजी औसत 30 तक नहीं पहुंच पाया तो वो किसी और को अपनी क्रिकेट के लिए दोष नहीं दे सकते हैं.
जिस भारतीय क्रिकेट को महेंद्र सिंह धोनी जैसे विकेटकीपर बल्लेबाज की आदत हो गयी हो और जिसके पास रिषभ पंत का विकल्प मौजूद हो तो वहां पर सैय्यद किरमानी वाले मिजाज वाले विकेटकीपर बल्लेबाज की जरूरत कहां है? अब ये तो सच्चाई है ना क्रिकेट की दुनिया में, चाहे आप टेस्ट क्रिकेट जैसे एकदम विशुद्ध फॉर्मेट की ही बात क्यों ना करें, किसी विकेटकीपर का चयन होने से पहले उलसकी बल्लेबाजी की काबिलियत पर काफी बहस होती है.
37 साल की उम्र वाले साहा को ये भी विचार करने की जरूरत है कि धोनी के पराक्रम के दौर में भी वो नंबर 2 विकेटकीपर थे और आज पंत के दौर में भी वो नंबर 2 विकेटकीपर हैं. विदेशी पिचों पर वैसे भी साहा को 2018 से ही नहीं खिलाया जाता है क्योंकि पंत बेहतर और आक्रामक विकल्प थे. अब पिछले एक साल से भारतीय पिचों पर भी पंत शानदार हैं और उनकी कीपिंग में भी शानदार तरीके से सुधार हुआ है.
ऐसे में अगर 24 साल के पंत के लिए बैक-अप विकेटकीपर की आवश्यकता पड़ेगी तो टेस्ट क्रिकेट में वे बेहतर विकल्प हैं ना कि अनुभवी साहा. आखिर टीम मैनेजमेंट साहा जैसे अनुभवी खिलाड़ी को दल में शामिल करके उन्हें लगातार प्लेइंग इलेवन से बाहर तो नहीं रख सकती है.
तेंदुलकर की टेस्ट क्रिकेट में भी हसरत थी कि वो 2013-14 का साउथ अफ्रीका दौरा करें लेकिन तत्कालीन कप्तान धोनी चाहते थे कि अंजिक्य रहाणे और चेतेश्वर पुजारा जैसे बल्लेबाजों को मुश्किल दौरों का अनुभव मिलना चाहिए. तेंदुलकर ने समझदारी दिखाते हुए शानदार तरीके से मुंबई में अपना आखिरी टेस्ट खेला. कहने का मतलब ये है साहा को चयनकर्ताओं का फैसला नम्रतापूर्वक स्वीकार आगे बढ़ाना चाहिए था. क्रिकेट कोचिंग से लेकर बंगाल मीडिया में कॉमेंट्री से लेकर साहा जैसे प्रतिभाशाली और योग्य दावेदार के लिए कई विकल्प होंगे. क्या जरुरत है करियर का अंत खटास बातों से ही किया जाय?
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