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फीफा वर्ल्ड कप 2018 में रोमांच अपने पूरे चरम पर है. अभी तक सभी मैचों में स्टेडियम हाउस फुल रहे हैं और कई रोेमांचक मुकाबले देखने को मिले हैं. ऐसे में इन सभी मुकाबलों में आपको हरी जर्सी पहने, हाथ में सीटी लिए एक बंदा बीच ग्राउंड पर तो दिख ही रहा होगा जो थोड़ी-थोड़ी देर में सीटी बजाता, खिलाड़ियों को निर्देश देता और कोई गड़बड़ होने पर झट से पीला या लाल कार्ड दिखा देता है, जी हां हम बात कर रहे हैं फुटबॉल रेफरी की जो इस ‘ब्यूटिफुल गेम’ की जान हैं. इस वर्ल्ड कप में कई ऐसे रेफरी हिस्सा ले रहे हैं जो बहुत ही मजेदार बैकग्राउंड रखते हैं. कोई रेफरी से नफरत करने के बावजूद इस प्रोफेशन में आ गया तो कोई हाईस्कूल में मैथ्स का टीचर है. किसी ने फिल्मों में एक्टिंग की है तो कोई अपने शहर में सुपरमार्केट चलाता है. जानिए इन बहुत ही मशहूर फीफा रेफरियों के मजेदार बैकग्राउंड...
43 साल के मार्क गाइगर अमेरिका के रहने वाले हैं. फुटबॉल फुलटाइम रेफरी बनने से पहले उन्होंने 17 साल तक हाईस्कूल में गणित पढ़ाया है. मार्क गाइगर मैथ्स और साइंस के एक्सपर्ट रहे हैं और 2010 में अमेरिका के राष्ट्रपति से सम्मानित भी हो चुके हैं. मार्क का रेफरी के तौर पर ये दूसरा वर्ल्ड कप है. वो ब्राजील 2014 में भी कई मैचों में रेफरी रहे थे.
आपको जानकर हैरानी होगी कि ये रेफरी साहब पहले एक्टर थे. नेस्टर अर्जेंटीना के रहने वाले हैं. हट्टे कट्टे दिखने वाले नेस्टर स्पोर्ट्स टीचर भी रहे हैं और बच्चों को जिमनास्टिक सिखाते हैं. वो साल 2014 में ब्राजील में हुए फीफा वर्ल्ड कप का हिस्सा रह चुके हैं.
नीदरलैंड के रहने वाले ब्यॉन कायपर्स के पिता भी रेफरी ही थे और उन्होंने ही ब्यॉन को रेफरी बनने के लिए प्रेरित किया. ब्यॉन ने राडबाउड यूनिवर्सिटी से बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन की पढ़ाई भी की है. आज की तारीख में वो सुपरमार्केट के मालिक हैं और अपने होमटाउन में एक बार्बर शॉप भी चलाते हैं.
40 साल के रवशान उजबेकिस्तान के रहने वाले हैं. 2010 और 2014 के वर्ल्ड कप में भी वो रेफरी रहे थे और उनके पास अच्छा खासा अनुभव है. दरअसल रवशान के पिता भी एक रेफरी थे. रवशान एक खिलाड़ी थे लेकिन चोट ने उनका करियर खत्म कर दिया. उसके बाद उनके पिता ने उन्हें रेफरी बनने के लिए कहा, लेकिन एक खिलाड़ी रहते हुए रवशान को रेफरी कभी भी पसंद नहीं थे तो उन्होंने मना कर दिया और बच्चों को कोचिंग देने लगे.
वो बताते हैं कि उनके पिता किसी यूथ टीम के इंजार्ज थे और रवशान अपने पिता को टीम संभालने को लेकर मदद कर रहे थे. किसी मैच के दौरान रेफरी वहीं आ पाया तो उनके पिता ने उन्हें ही सीटी पकड़ा दी और कहा कि, “ट्राय करो”. उसके बाद से रवशान ने पीछे मुड़कर नहीं देखा. उन्हें रेफरी के काम में बहुत मजा आने लगा. रवशान फीफा के सबसे एलीट रेफरीस में से एक हैं.
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