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साल 2004 में इंग्लैंड सीरीज के लिए इंडिया-ए टीम चुनी गई और उसके लिए बेंगलुरू में एनसीए कैंप रखा गया. मैं उस टीम का कोच था और यहां ही पहली बार मैं दिल्ली के लड़के गौतम गंभीर से मिला. वो शर्मीला था और बहुत ही सॉफ्ट तरीके से बात करता था लेकिन मैंने उसके अंदर ही अंदर एक ज्वालामुखी को उबलते हुए भी महसूस किया था. उस दौरे के लिए जो भी खिलाड़ी चुने गए थो वो सभी बहुत ही स्पेशल थे और ये बताते हुए मुझे गर्व महसूस हो रहा है कि उनमें से ज्यादातर आगे जाकर अपने करियर में भारत के लिए खेले. उन सभी युवा खिलाड़ियों में गंभीर सबसे ज्यादा स्पेशल और टैलेंटिड था लेकिन मैं चाहता था कि उसके बारे में और ज्यादा जानूं, इसलिए मैंने दिल्ली में मेरे दोस्त (मदन लाल, यशपाल शर्मा और कीर्ति आजाद) से उसके बारे में थोड़ी बातचीत की. एक कोच होने के नाते ये हमेशा जरूरी होता है कि आप खिलाड़ी के टैलेंट, टैंप्रामेंट और स्किल के बारे में जानें. उन सभी ने गंभीर की तारीफ की और उसे भारतीय टीम के लिए एक पर्फेक्ट मैटेरियल बताया.
उस दौरे के बाद गंभीर टीम इंडिया के लिए खेलने के लिए बिल्कुल तैयार था लेकिन ओपनिंग स्लॉट में जगह पाना कभी भी आसान नहीं था. उस जगह पर जगह बनाने के लिए आपको वीरेंद्र सहवाग, सचिन तेंदुलकर और सौरव गांगुली जैसे दिग्गजों से पार पाना था. लेकिन गंभीर ने अपनी मेहनत और टैलेंट के बल पर ओपनिंग पर अपनी जगह बनाई. वो उन लड़कों में से था जो हर वक्त क्रिकेट के बारे में ही सोचते हैं. मेरा रिश्ता गंभीर के साथ और ज्यादा गहरा होता गया और जब भी हम मिलते तो उसके खेल के बारे में ही बात करते, यहां तक कि फोन पर भी हमारी क्रिकेट को लेकर ही बातें होती.
मैं ये कह सकता हूं कि वो उनका एटीट्यूड ही था जिसने उन्हें भारतीय क्रिकेट टीम का चेहरा बनाया और उनके टीम इंडिया से बाहर जाने के पीछे भी सबसे बड़ी वजह उनका एटीट्यूड रहा. उनके ‘एंग्री यंग मैन’ एटीट्यूड की वजह से ही मैंने उन्हें भारतीय क्रिकेट के अमिताभ बच्चन का निकनेम दिया. हालांकि मुझे हमेशा से लगता है कि हर एक क्रिकेटर में अपने ही तरीके का एक एटीट्यूड प्रॉब्लम होता है लेकिन अगर वही व्यवहार वो खिलाड़ी अपने टीममेट्स को दिखाए तो फिर गड़बड़ हो जाती है.
2011 के इंग्लैंड दौरे तक तीनों फॉर्मेट में गौतम गंभीर भारतीय टीम के लिए ऑटोमेटिक चॉइस थे. उस दौरे से पहले उनका कद इतना बढ़ चुका था कि एमएस धोनी की गैरहाजिरी में उन्होंनें न्यूजीलैंड के खिलाफ 5 मैचों की वनडे सीरीज में भारतीय टीम की कप्तानी भी की. 2011 की इंग्लैंड सीरीज के दौरान गंभीर के हेल्मेट पर बाउंसर गेंद लगी और उन्होंने भारत वापिस जाने का फैसला किया और इस गलती ने उनका बहुत नुकसान किया.
जिस खिलाड़ी को सचिन, सहवाग, द्रविड़ और गांगुली को बाद भारतीय क्रिकेट का अगला सुपरस्टार समझा जा रहा था वो टीम में अपने कमबैक के लिए भी जूझ रहा था.
एक तरफ जहां गौतम गंभीर लगातार टीम में वापसी के लिए संघर्ष कर रहे थे तो वहीं दिल्ली के ही उनके साथी शिखर धवन इंडिया-ए के लिए लगातार अच्छा प्रदर्शन कर रहे थे.
गौतम को समझ नहीं आया कि क्रिकेट एक बहुत निर्दयी खेल है और जो मौके को पकड़ ले वही सुपरस्टार है. गौतम उस चांस को मिस कर गए.
चाहे भारतीय टीम में वापसी करने में गंभीर फेल रहे हों लेकिन आईपीएल में कोलकाता नाइट राइडर्स के लिए एक बल्लेबाज और कप्तान रहते हुए उन्होंने जबरदस्त प्रदर्शन किया लेकिन क्रिकेट में कई बार आपके प्रदर्शन से ज्यादा आपका एटीट्यूड मायने रखता है. मैं ये नहीं कह रहा कि गंभीर को हमें और टीम मैनेजमेंट को खुश करने की कोशिश करनी चाहिए थी लेकिन एक अच्छा व्यवहार उनकी मदद कर सकता था.
उसके बाद मैंने जब भी गंभीर को देखा तो उसके चेहरे से वो ग्लो गायब था और उसके अंदर मुझे हमेशा एक सुलगता सैलाब नजर आया. इस साल आईपीएल में दिल्ली डेयरडेविल्स की टीम में गौतम गंभीर की वापसी में एक पॉजिटिविटी और होप नजर आती थी लेकिन वो परफॉर्म नहीं कर पाए. जैसा कि उनके अच्छे दोस्त युवराज सिंह एक टीवी एड में कहते हैं कि , “जब तक बल्ला चलता है तब तक ठाट हैं” और गौतम को अब समझ आ गया होगा कि अब वो वैसे बल्लेबाज नहीं रहे, जैसे अपने अच्छे दिनों में थे.
मैं गौतम गंभीर के दिल्ली की कप्तानी छोड़ने के फैसले का सम्मान करता हूं लेकिन इस फैसले के पीछे क्या वजह है, उसे सिर्फ वो ही जानते हैं.मेरी नजर में किसी के मन में क्या चल रहा है, उसे सिर्फ वो ही जानता है. भविष्य में क्या होगा, इस बात को कोई नहीं जानता लेकिन मेरे लिए गौतम गंभीर हमेशा मेरे फेवरेट क्रिकेटर बने रहेंगे.
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