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इंडियन प्रीमियर लीग, दुनिया का सबसे बड़ा टी-20 लीग टूर्नामेंट है. क्रिकेट का वो त्योहार जो हर साल अप्रैल से लेकर मई केआखिर तक भारत के हर क्रिकेटप्रेमी परिवार में मनाया जाता था. शाम के 8 बजते ही घर के बच्चे, महिलाएं और बड़े-बूढ़े समते सभी लोग चौकों और छक्कों की बरसात देखने के लिए टीवी से चिपक जाते थे.
आप सोच रहे होंगे कि हम ‘था’ और ‘थे’ शब्द का इस्तेमाल क्यों कर रहे हैं. आईपीएल तो अब भी खेला जाता है, ये तो अब भी हर साल टीवी पर आता है और लोग इसे देखते हैं.
लेकिन..... हम आपको बता दें कि आईपीएल की लोकप्रियता पर अब सवाल उठ रहे हैं. ऐसा माना जाने लगा है कि इस रंगबिरंगे टी-20 लीग में अब वो मजा नहीं रहा.
सवाल है कि :
क्या आईपीएल अपना X-फैक्टर खो चुका है ?
क्या खिलाड़ियों और फैंस के लिए ये लीग अब भी ‘प्रीमियर’ है?
इसमें कोई शक नहीं कि व्यवसायिक रूप से ये टूर्नामेंट अब भी बहुत बड़ा है, बड़ी-बड़ी ग्लोबल कंपनियां अब भी इस टूर्नामेंट के डिजिटल ब्रॉडकास्टिंग राइट्स के लिए लड़ाई करती हैं लेकिन इस लीग के सबसे बड़े ड्राइवर यानि फैंस और खिलाड़ी इससे छिटक रहे हैं.
आईपीएल के आगामी सीजन के लिए जिस खिलाड़ी के लिए सभी बहुत उत्साहित थे, उसके अपना नाम वापिस ले लिया है. हम बात कर रहे हैं केविन पीटरसन की जो धोनी की टीम राइजिंग पुणे सुपरजाइंट्स की रणनीति का अहम हिस्सा थे. इस आतिशी बल्लेबाज को पुणे ने पिछले साल 3.5 करोड़ रुपए में खरीदा था,लेकिन इस साल नीलामी के पहले ही बिजी शेड्यूल का हवाला देते हुए उन्होंने अपना नाम वापिस ले लिया. इतने बड़े खिलाड़ी का आईपीएल से दूर जाने का निर्णय लीग के प्रति गिरते प्यार और अहमियत को जाहिर करता है.
साथ ही, पिछले कुछ सालों में कई खिलाड़ियों ने अपनी राष्ट्रीय टीम को आईपीएल से ज्यादा अहमियत दी. इंग्लैंड क्रिकेट बोर्ड हमेशा से अपने खिलाड़ियों को काउंटी क्रिकेट छोड़कर आईपीएल खेलने के लिए रोकने की कोशिश करता रहा है.
थोड़ा पीछे जाएं तो इंग्लिश क्रिकेटर इयन मॉर्गन ने इंग्लैंड की टेस्ट टीम में जगह बनाने के लिए 2014 आईपीएल ऑक्शन से किनारा कर लिया था तो वहीं उसी सीजन में ऑस्ट्रेलिया के विकेटकीपर ब्रैड हैडिन भी घरेलू कारणों का हवाला देकर लीग में नहीं खेले थे.
क्योंकि आईपीएल बहुत लंबा होता है इसलिए कई खिलाड़ियों ने चोट और थकान के डर से भी इस लीग से किनारा किया है. ऑस्ट्रेलिया क्रिकेट की ओर से मिलने वाले 6 हफ्तों की छुट्टियों को आईपीएल में भुनाने के खिलाफ पूर्व कप्तान माइकल क्लार्क ने कई बार आवाज उठाई है.
आईपीएल की गिरती लोकप्रियता का एक बड़ा सबूत ये है कि 2016 सीजन में टिकटों की बिक्री में भारी गिरावट देखने को मिली. पिछले साल टूर्नामेंट के शुरुआती दिनों में 2,500 और 5,000 रुपए की टिकटें उतनी नहीं बिकीं जितनी पिछले सीजनों में बिक रही थीं. साथ ही स्टेडियम भी हाउसफुल नहीं दिख रहे थे.
साथ ही लीग के पहले हफ्ते की टीवी रेटिंग में भारी गिरावट देखने को मिली थीं. The Times of India अखबार की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2016 सीजन के पहले हफ्ते की रेटिंग अब तक के किसी भी सीजन में दूसरी सबसे खराब रेटिंग थी.
कुछ लोगों ने तर्क दिया कि आईसीसी वर्ल्ड टी-20 2016 की वजह से ऐसा हुआ लेकिन ये न भूलें कि 2011 वर्ल्ड कप के तुरंत बाद हुए आईपीएल की शुरुआती रेटिंग धमाकेदार थीं.
विवाद और आईपीएल का साथ चोली-दामन जैसा रहा है. चाहे पूर्व कमिश्नर ललित मोदी का निष्कासन हो या फिर शाहरुख खाना का वानखेड़े कांड. इन सभी विवादों ने आईपीएल की साख को चोट पहुंचाई.
लेकिन जब 2013 में फिक्सिंग कांड हुआ तो फैंस के बीच इस लीग की लोकप्रियता काफी घटी. एक वक्त तो ऐसा आया जब फैंस हर एक रोमांचक मैच को शक की नजरों से देखने लगे थे. सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त लोढ़ा कमेटी ने दो बड़ी टीमों को सट्टे के आरोप में निष्कासित किया और आईपीएल की छवि पर काला दाग लगा.
वहीं 2016 में महाराष्ट्र में होने वाले मैचों पर सूखे को लेकर खूब खींचातान हुई. ये सभी कारण रहे जिन्होंने फैंस का फोकस खेल से हटाकर कहीं और लगा दिया.
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