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9 साल पहले ललित मोदी ने अपने कुछ दोस्तों को इकट्ठा किया और उनके साथ
निजी स्वामित्व वाली प्रोफेशनल क्रिकेट लीग का आईडिया साझा किया. एक ऐसी लीग जो टेलीविजन फ्रेंडली होने के साथ-साथ एक नए तरह के दर्शक वर्ग के लिए शुरू की जाने वाली थी. मोदी ने इन लोगों से कहा कि वो इसमें अपना पैसा लगाएं और इस परिकल्पना का हिस्सा बनें. लेकिन शुरू में किसी का समर्थन मिलना तो दूर लोगों ने इसमें कोई रुचि नहीं दिखाई और उनके इस आईडिया को संदेह की दृष्टि से भी देखा गया. लेकिन आखिरकार वो लोगों का पीछा करते रहे, उन्हें परेशान किया और कुछ को उन्होंने इसके लिए रिश्वत तक दी, तब कहीं जाकर इस टूर्नामेंट को ग्रीन सिग्नल मिल सका. 2008 में आईपीएल को लॉन्च किया गया जिसमें आठ टीमों ने हिस्सा लिया और कुल 47 अरब रुपये का निवेश किया गया.
टेस्ट क्रिकेट के 140 साल पूरे होने पर मार्क निकोलस ने अभी हाल में एक लेख लिखा जिसमें उन्होंने आईपीएल को क्रिकेट की यात्रा में एक निर्णायक क्षण बताया. आईपीएल ने निजी कंपनियों को क्रिकेट में बुलाया और उसे एक ऐसी व्यवसायिक संपत्ति बनाया जो समाज के बदलते मानकों और लाइफस्टाइल के साथ सटीक बैठ गई. एक तेज रफ्तार दुनिया में जहां लोग एक चीज पर ज्यादा समय तक ध्यान केंद्रित नहीं कर पाते हैं वहां आईपीएल एक ऐसे परिणाम उन्मुख खेल के रूप में स्थापित हुआ जो छोटा, उत्साही, आकर्षक और मसालेदार था.
एक सफल प्रतियोगिता की सभी अहम जरूरतों को पूरा करने के बाद आईपीएल ने एक ऐसा पैकेज तैयार किया जो फैन्स, ब्रॉडकास्टर्स और व्यवसायिक भागीदारों का देखते ही देखते पसंदीदा बन गया. एक फैन के नजरिए से अगर देखें तो इससे अच्छा क्या हो सकता था जिसमें देश का शीर्ष टैलेंट एक दूसरे से प्रतिस्पर्धा कर रहा है और उसमें जोश की गारंटी भी हो.
आईपीएल जब से शुरू हुआ तब से लेकर अभी तक इसे सफलता मिलती आ रही है जिसकी वजह से इसमें खेलने वालों का यह मनपसंद बन गया है. यह दुनिया में सबसे तेजी से उभरती हुई स्पोर्ट्स लीग बन गई है. आईपीएल की ही तर्ज पर आॅस्ट्रेलिया, बांग्लादेश और वेस्ट इंडीज में भी ऐसी ही लीग शुरू की गई हैं. वहीं इंग्लैंड और दक्षिण अफ्रीका में भी इसे जल्द शुरू किया जाने वाला है.
आईपीएल दो चीजों पर काम करता है:
— यह क्रिकेट के लिए प्रतिबद्ध है लेकिन इसमें केवल एक ही बदलाव किया है जिसमें इसके समय को कम कर दिया गया है जिससे कि खेल का परिणाम जल्द निकल सके.
— ये भारत की मंदी रहित क्रिकेट की अर्थव्यवस्था का अच्छे से इस्तेमाल करता है. इसी अर्थव्यवस्था के चलते आईपीएल के जो आंकड़े हैं वो हैरतअंगेज करने वाले हैं. इसमें हर टीम खिलाड़ियों को खरीदने के लिए एक करोड़ डॉलर खर्च करती है (वहीं कैरीबियन प्रीमियर लीग में 7.80 लाख, बिग बैश लीग में 10.60 लाख और पाकिस्तान सुपर लीग में 10 लाख डॉलर ही खर्च करने की सीमा है). आईपीएल नीलामी में हाल ही में बिके बेन स्टोक्स को ही देख लीजिए जिनकी राशि ही सिर चकरा देने वाली है.
लेकिन आईपीएल का खेल आंकड़ों से कहीं ज्यादा है. इस टूर्नामेंट ने पारंपरिक क्रिकेट को जहां एक झटका दिया वहीं आंतरिक बदलाव की भी शुरुआत की. आईपीएल ने क्रिकेट को तीन प्रारूप वाले खेल में बदल दिया जिसमें टी20 एक ऐसी प्रेरक शक्ति बना जो क्रिकेट की अर्थव्यवस्था को ईंधन देता है और टेस्ट क्रिकेट को जीवित रखने में मदद करता है. इसकी सफलता ने क्रिकेट के तकनीकी व्याकरण को बदल दिया. इसने बल्लेबाजों को आक्रामक बनना और गेंदबाजों को प्रतियोगिता में बने रहने के लिए नई तरकीबें ढूंढने के लिए मजबूर कर दिया. और जैसे-जैसे क्रिकेट आगे बढ़ता है और रन रेट ऊपर चढ़ता रहता है टेस्ट क्रिकेट में जीवंतता बची रहती है.
लेकिन ऐसा नहीं है कि आईपीएल के पहले दशक में किसी तरह की कोई मुश्किल नहीं आई. इसे कई विवादों और संकट का सामना करना पड़ा. तो ऐसे में आखिर इसका रिपोर्ट कार्ड क्या कहता है?
1. एक ऐसी लीग जिसने क्रिकेट का कैलेंडर बदल दिया
अपनी आर्थिक मजबूती और वित्तीय ताकत की वजह से आईपीएल क्रिकेट में एक प्रतिष्ठित लीग बन गई है. क्रिकेट कैलेंडर में इसका अनाधिकारिक लेकिन स्थायी समय है जो अप्रैल से लेकर मई तक चलता है. इन छह सप्ताहों में खिलाड़ी खुशी-खुशी अपने देश के लिए क्रिकेट खेलना छोड़कर भारत का रुख करते हैं. सभी देश, यहां तक कि अब इंग्लैंड के खिलाड़ियों ने भी, जो पहले इसमें हिस्सा नहीं लेते थे उन्होंने भी इस सच्चाई को समझ लिया है.
1. अंतर्राष्ट्रीय मानक
आईपीएल को दलीप और देवधर ट्रॉफी के खिलाफ नहीं बल्कि विश्व में सर्वश्रेष्ठ के खिलाफ खड़ा किया गया था. इसमें इस्तेमाल की जाने वाली सभी चीजें विश्वस्तरीय होनी चाहिए थीं. नीचे से शुरू होने वाली चीजें भी सर्वश्रेष्ठ थी जैसे मशीनों के अनुकूल अक्रेडेशन कार्ड जिसमें खास तरह के कमरबंद होते हैं. साथ ही इसमें विशिष्ट रूप से तैयार की गई क्रॉकरी, बर्तन और नैपकिन के इस्तेमाल के साथ ब्रैंडिंग और स्टेडियम का भी खास ख्याल रखा गया जिससे लोगों को वो 'अहसास' मिल सके. इसमें फैन्स को एक खास तरह का अनुभव देने का मकसद था जिससे कि वो बार-बार मैच देखने स्टेडियम आएं.
इसके साथ ही स्टेडियम में मनोरंजन (बेहतर साउंड सिस्टम, बड़े रीप्ले स्क्रीन और इलेक्ट्रॉनिक स्कोरबोर्ड), टिकट मशीनों, स्टोरेज के लिए जगह, रसोई, हॉस्पिटेलिटी बॉक्स और पार्किंग के लिए निवेश की जरूरत थी.
चूंकि स्टेडियम तैयार नहीं थे और न ही इस तरह से बने थे कि उनमें यह सारी व्यवस्थाएं की जा सकें इसलिए न्यूयॉर्क की कंपनी इंटरनेशनल मैनेजमेंट ग्रुप (आईएमजी) को इसकी जिम्मेदारी सौंपी गई. उन्हें जिम्मेदारी दी गई कि वो दुनिया के बेहतरीन तौर तरीकों को खिलाड़ियों, स्पॉनसर, वित्तीय साझेदार, मनोरंजन, सुरक्षा और हॉस्पिटेलिटी को पूरा करने में इस्तेमाल करें. उन्होंने भी इस काम को बेहतरीन तरीके से किया हालांकि कुछ मौकों पर उनसे कुछ गलतियां भी हुईं जब वो चीयरलीडर्स के लिए चेंजिंग रूम बनाना भूल गए.
स्टेडियम अधिकारियों ने स्टेडियम की आधारभूत सुविधाओं को बेहतर करने पर काम शुरू किया जिन्हें अन्य देशों में लोग तवज्जो नहीं देते. साफ शौचालय और सुरक्षित पानी इस सूची में सबसे शीर्ष पर थे. भले ही इस लीग को दर्शकों के अनुकूल बनाना सबसे महत्वपूर्ण था लेकिन अभी भी 'फैन्स पहले' की इनकी नीति सच्चाई से ज्यादा केवल एक स्लोगन ही है.
2. बीसीसीआई का घरेलू टूर्नामेंट बना आईपीएल
आईपीएल बीसीसीआई का एक ऐसा टूर्नामेंट है जिसमें कुछ अलग है वो इसलिए क्योंकि यह घरेलू क्रिकेट में भी पैसा, प्रतियोगिता और मीडिया पहुंचाता है. साथ ही यह भारतीय क्रिकेटरों के लिए नौकरी भी सुनिश्चित करता है क्योंकि इसके नियमानुसार हर टीम में कम से कम 7 भारतीय खिलाड़ी होने जरूरी हैं. ऐसे में कम से कम 100 भारतीय खिलाड़ियों के रोजगार का समाधान भी निकल आता है.
(अमृत माथुर एक वरिष्ठ पत्रकार, बीसीसीआई के पूर्व जीएम और भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व मैनेजर रहे हैं. @AmritMathur1 पर उनसे संपर्क किया जा सकता है.)
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