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पिछले सिर्फ 5 साल की बात करते हैं - बताइये कौन सा टेस्ट मैच आपको याद है. ऐसा नहीं है कि टेस्ट मैच नहीं खेले जा रहे है लेकिन टी-20 के फॉर्मेट ने टेस्ट मैच को फीका कर दिया है. हर जगह 20-20 की धूम है और करीब 15 साल पुराना ये फॉर्मेट खिलाड़ियों के साथ-साथ दर्शकों की भी पहली पसंद बन गया है. इस धूम ने कहीं न कहीं बाकी फॉर्मेट्स को भारी नुकसान पहुंचाया है, जिसकी वजह से टेस्ट मैच और वनडे की संख्या में कमी आई है.
अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद यानी आईसीसी जिसके ऊपर टेस्ट क्रिकेट को बचाने का जिम्मा था उन्हें भी अब पूरी तरह से समझ आने लगा है की पैसा तो टी-20 फॉर्मेट से ही आना है और यही वजह है की उन्होंने भी अब अपना पूरा ध्यान इसी पर केंद्रित कर लिया है.
आईसीसी ने हाल फिलहाल में टी20 में टीमों की संख्या बढ़ाकर 18 से 104 कर दिया. ये एक ऐसा कदम है जो किसी भी खेल के इतिहास में शायद ही पहली बार हुआ हो. आईसीसी का कहना है कि इस निर्णय का उद्देश्य क्रिकेट के खेल का वैश्वीकरण करना है लेकिन असल वजह है कि ये कम समय में ज्यादा पैसा कमानेवाला फॉर्मेट है.
इस अचानक से आए फैसले का तुक समझना काफी मुश्किल है. अगर आईसीसी ने वास्तव में सभी 104 सदस्यीय टीमों को अंतरराष्ट्रीय खेलों के लिए फिट माना है , तो फिर हम साल भर 9-10 देशों को ही एक-दूसरे के साथ खेलते क्यों देखते हैं? आईसीसी के फैसले में खेल के नजरिए से ठोस वजह की कमी दिखती है और इस तरह खेल के भविष्य पर भी प्रश्नचिन्ह लगता है!
हालांकि आईसीसी का मानना है की इस फैसले से उन्हें 2028 ओलंपिक खेलों में क्रिकेट को शामिल करने में मदद मिलेगी. लेकिन हकीकत यही है कि टी-20 फॉर्मेट पर आईसीसी के फोकस की सिर्फ एक ही वजह है टीवी राइट्स और एडवरटाइजिंग से आने वाला पैसा.
कोलकाता में इस फैसले को सुनाने से पहले आईसीसी ने इस मुद्दे पर अपना मन 9 फरवरी को ऑकलैंड में हुई बोर्ड की बैठक के बाद ही बना लिया था. चैंपियंस ट्रॉफी को वर्ल्ड टी-20 में तब्दील करने के आईसीसी के इस फैसले के पीछे कई वजहें रही, जिसमें सबसे बड़ी वजह रही पैसा.
नतीजा, अब 2021 चैंपियंस ट्रॉफी की जगह वर्ल्ड टी-20 ने ले ली है जिसमें कुल 16 टीमें हिस्सा लेंगी. इसका मतलब ज्यादा टी-20 मैच यानी की ज्यादा पैसा. इस सबका मतलब ये हुआ कि एक के बाद एक टी-20 का वर्ल्ड कप. यानी ऑस्ट्रेलिया में 2020 सीजन के बाद अगले साल ही वर्ल्ड टी-20 भारत में आयोजित होगा. उसके बाद ये टूर्नामेंट हर दो साल में होगा.
टी-20 भले ही 15 साल पुराना फॉर्मेट है लेकिन इतने कम समय में इसने जो तरक्की की है वो काबिलेतारीफ है. अब करीब-करीब हर मुल्क अपनी टी-20 लीग खेल रहा है. इस फॉर्मेट की शुरुआत 2002 में हुई - बेंसन एंड हेजेज सीरीज के बाद इंग्लैंड क्रिकेट बोर्ड युवाओं और स्पॉन्सर्स को लुभाने के लिए एक दिन का मैच कराना चाहता था. ईसीबी के एक आला अधिकारी स्टुअर्ट रॉबर्ट्सन ने 20 ओवर के मैच का विचार कमेटी के सामने रखा, जो बहुमत से पास हो गया और इस तरह टी-20 शुरुआत हो गई. हालांकि अगले दो साल तक ये फॉर्मेट घरेलू और काउंटी क्रिकेट में ही जगह बना पाया.
इस बढ़ती लोकप्रियता को आईसीसी ने भी 2005 में अपनाया और ऑकलैंड में पहली दफा न्यूजीलैंड और ऑस्ट्रेलिया के बीच पहला अंतरराष्ट्रीय टी-20 खेला गया, तारीख थी 17 फरवरी. बीसीसीआई ने इस फॉर्मेट का शुरुआत से ही विरोध किया था, लेकिन वो भी आखिरकार 2006 में साउथ अफ्रीका के साथ एक मैच खेलने को तैयार हो गए. उस मैच को तो जीता ही टीम इंडिया ने, लेकिन उसके बाद तो उन्होंने 2007 में वर्ल्ड टी-20 जीत कर दिखा दिया की वही 20-20 के किंग हैं. उसके बाद से अब तक वेस्टइंडीज ही ऐसी एक टीम है जिसने वर्ल्ड टी-20 दो बार जीता है.
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