advertisement
(लेखक, अमृत माथुर 1992 में सबसे पहले और फिर 2003 में वर्ल्ड कप के लिए दक्षिण अफ्रीका का दौरा करने वाली भारतीय क्रिकेट टीम के मैनेजर थे)
1992 में भारतीय टीम के दक्षिण अफ्रीका रवाना होने से पहले बीसीसीआई प्रेसिडेंट माधव राव सिंधिया ने मुझे सिर्फ एक निर्देश दिया – टीम को जो पहला काम करना चाहिए वो है नेल्सन मंडेला से मिलना. इस निर्देश से 1992-93 में भारतीय टीम का दक्षिण अफ्रीका दौरा एक परिप्रेक्ष्य में आ गया. क्रिकेट की नजर से ये यात्रा एक अनजान टूर था. एक मानवीय मिशन जो अनिश्चित और अपरिचित था. व्यावहारिक तौर पर वहां क्रिकेट के बारे में कुछ नहीं जाना जाता था. मैदान, स्थितियों, पिच और खिलाड़ियों के बारे में कोई जानकारी नहीं.
हालांकि, यह स्पष्ट था कि क्रिकेट के अलावा अन्य ताकतें काम कर रही थीं और इस दौरे का एक राजनैतिक संदर्भ था. भारतीय टीम का दौरा एक महत्वपूर्ण नीतिगत बयान था जो क्रिकेट से आगे तक गया. उन दिनों, दक्षिण अफ्रीका भारतीयों की पहुंच से दूर था. हमारे पासपोर्ट पर 'दक्षिण अफ्रीका और इजराइल के लिए वैध नहीं' का ठप्पा लगा रहता था और भारत सरकार ने रंगभेद की उसकी नीतियों के कारण डी क्लार्क के शासन को मान्यता नहीं दी थी. नतीजतन वहां भारत की आधिकारिक उपस्थिति नहीं थी. कोई दूतावास नहीं, कोई राजनयिक नहीं.
लेकिन 1990 के दशक के शुरू का समय भारी बदलाव वाला था – दक्षिण अफ्रीकी क्रिकेट बोर्ड भिन्न एथनिक समूहों को एकजुट करके पहले ही 'एकीकृत' हो चुका था. इसका नेतृत्व अफ्रीकी नेशनल कांग्रेस (एएनसी) के नेता क्रिश मैककरधुज करते थे और अली बचेर इसे चलाते थे जिनका मानना था कि क्रिकेट का उपयोग मेल-मिलाप, शामिल करने और शांति के उपकरण के रूप में किया जाए. इसीलिए, भारत की टीम को सबसे पहले खेलने के लिए आमंत्रित किया गया था. इस तरह, उनका सालों से अंतरराष्ट्रीय खेल में अलग-थलग रहना खत्म हुआ था.
दक्षिण अफ्रीका पहुंचने पर डर्बन में हमारा जोरदार स्वागत हुआ. इसमें हवाई अड्डे से होटल तक की यात्रा खुली कारों में होना और नागरिक अभिनंदन शामिल है. मैंने तुरंत अली से आग्रह किया कि हमें नेल्सन मंडेला से मिलना है. जल्दी ही समय तय हो गया और देखने में ही उत्साहित लग रही टीम एक दोपहर जोहनसबर्ग में उनसे मिलने निकली. दक्षिण अफ्रीकी क्रिकेट और एएनसी के प्रमुख अधिकारी हमारे साथ थे. इनमें क्रिश, अली और स्टीव त्श्वेते शामिल हैं जो बाद में खेल मंत्री बने. पृष्ठभूमि में आनंद शर्मा महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे थे जो लंबे समय से राजनैतिक परिवर्तन लाने के लिए काम कर रहे थे.
और वो दूसरा मामला क्या था जो मुझसे यानी मैनेजर से संबंधित था? इस तरह के मौकों पर मैनेजर की जिम्मेदारी होती है कि वो बीसीसीआई और टीम की ओर से कुछ बोले. किसी अन्य मौके पर तो यह आम बात होती है. आप सामान्य सी अच्छी बात करते हैं, हो गया काम. पर यह कोई आम मौका नहीं था. भारतीय टीम पृथ्वी पर सबसे महान जीवित हस्ती से मिल रही थी, जो दुनिया भर में अग्रणी हैं. मेरी यह जिम्मेदारी थी कि मैं बोलूं और सही बातें करूं.
मैंने मेहनत करके अपने 'भाषण' की तैयारी की (सुनिश्चित किया कि इसमें महात्मा गांधी, शांति और भारत व दक्षिण अफ्रीका के बीच करीबी संबंध शामिल रहें), इसे याद कर लिया और कई बार रिहर्सल भी कर लिया. कई तरह के सुरक्षा चरण पार करने के बाद टीम को मंडेला के ऑफिस में ले जाया गया. इस दौरान धातु के दरवाजे, लोहो के ग्रिल थे जो बटन दबाने से खुलते और बंद होते थे. प्रशिक्षित (और हथियारबंद) कर्मचारी थे जो सभी लोगों की जांच कर रहे थे.
यह सब होने के बाद हम एक हॉल में गोल घेरा बनाकर खड़े रहे और उनके आने का इंतजार किया. थोड़ी ही देर में मंडेला आए उनके चेहरे से आभा झलक रही थी, मुस्कुराते हुए वे उत्साह और प्यार व विनम्रता दिखाते लग रहे थे. हमने उन्हें चकित होकर देखा, मिलने के मौके पर खुश थे और उनकी उपस्थिति में होने को सौभाग्य मान रहे थे. हाथ मिलाने और परिचय के बाद काम का समय था और मुझे अपनी बात कहनी थी. सब लोग आधा गोला बनाकर खड़े थे तो मैंने गहरी सांस ली, मन में ईश्वर का नाम लिया और अपना तैयार भाषण बोल गया. सौभाग्य से बगैर हकलाये या अटके.
इसके बाद अजीब सी शांति रही, हम श्री मंडेला के कुछ शब्द कहने का इंतजार करते रहे पर लंबी शांति रही क्योंकि वे स्पष्टतः किसी चीज का इंतजार कर रहे थे. थोड़ी देर बाद एक सहायक कागज का टुकड़ा लेकर भागता हुआ आया जिसमें उनक भाषण के लिए बिन्दुवार विवरण लिखा हुआ था. उन्होंने कागज देखा और फिर विस्तार से बोले. उनकी बातें सरल, प्रेरक और उत्साहवर्धक थीं.
उन्होंने हस्ताक्षर वाला बल्ला स्वीकार किया और कहा कि वे टीम की इस भावना की तारीफ करते हैं. बाद में, क्रिश मैककरधुज ने मुझसे कहा कि यह बल्ला उनके कार्यलय में प्रमुखता से प्रदर्शित किया गया था. टेस्ट मैच के दौरान श्री मंडेला वॉन्ड्रस, जोहनसबर्ग भी आए और शौक से मैच देखा. मैं उनके साथ बैठा था और खिलाड़ियों और खेल के बारे में उनके सवालों के जवाब दिए. मेरे लिए, उनके साथ रहना बहुत बड़ी बात थी. मंडेला ने कहा कि स्पोर्ट्स में दुनिया को बदलने की ताकत है और शायद छोटे रूप में भारतीय टीम 1992-93 में दक्षिण अफ्रीका में कुछ बदलाव लाने में भी कामयाब रही लेकिन अपने ढंग से रहते हुए उन्होंने मानवता और शांति का समर्थन किया और दुनिया बदल दी.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)