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भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) ने अपने क्रिकेटरों के लिए नए अनुबंधों की घोषणा की है. नए सिस्टम में ज्यादा वर्गों (पहले के तीन के मुकाबले चार) और ज्यादा पैसा धन (पहले के अधिकतम 2 करोड़ के मुकाबले 7 करोड़ रुपये) की व्यवस्था है, लेकिन साथ ही पहले से कम खिलाड़ियों (32 के मुकाबले अब 26) को जगह दी गई है.
इसलिए, सवाल है: इन बदलावों के पीछे क्या तर्क है? और क्या इनसे काम चल रहा है?
शीर्ष श्रेणी सुपर स्लैब ‘ए+’ बनाने का जाहिर कारण है उन खिलाड़ियों को पुरस्कृत करना जो भारतीय टीम के ‘सर्वाधिक मूल्यवान’ सदस्य हैं. ये आमतौर पर वैसे खिलाड़ी होने चाहिएं जो खेल के तीनों फॉर्मेट में चयनित होते हैं, और जिनका टीम शीट में होना निश्चित होता है.
शिखर धवन को हाल में लगातार बढ़िया खेलने का पुरस्कार मिला है, पर याद रहे कि बस कुछ महीने पहले तक वह टेस्ट टीम में अपनी जगह बचाने के लिए संघर्ष कर रहे थे.
ऐसा प्रतीत होता है मानो ए+ वर्ग सिर्फ विराट के लिए सृजित किया गया था, और बाकियों को इसमें ‘टीम के लिए अहमियत’ के आधार पर बाद में शामिल किया गया. लेकिन इससे एक परेशान करने वाला सवाल उठता है: क्या बुमराह विराट जितने मूल्यवान हैं?
यदि इरादा विराट की खास स्थिति को स्वीकार करने, और उत्कृष्टता के लिए उन्हें पुरस्कृत करने का था, तो उन्हें भारत की कप्तानी के लिए नकद बोनस दिया जा सकता था. इंग्लैंड/ऑस्ट्रेलिया कप्तानों को अन्य अनुबंधित खिलाड़ियों के मुकाबले एक बड़ी मूल राशि देता है. भारत भी ऐसा ही कर सकता था/
महिलाओं के लिए पहले से बेहतर डील की बात जाहिर थी, लेकिन पुरुष/महिला अनुबंध राशि पर सरसरी निगाह डालने से उनकी कीमत में भारी असमानता स्पष्ट हो जाती है. मिताली राज को अब 50 लाख रुपये (पहले के 15 लाख की जगह) मिलेंगे जोकि बहुत अच्छी बात है, पर अक्षर पटेल की 1 करोड़ रुपये की फीस के मुकाबले यह अपमानजनक रूप से कम है.
लैंगिक समता और भुगतान की बराबरी (उदाहरण के लिए टेनिस में पुरस्कार की रकम) की बात छोड़ भी दें तो भी क्या महिला क्रिकेट को यही संदेश भेजा जाना चाहिए? सच में, क्या भारतीय क्रिकेट के लिए मिताली का ‘मूल्य’ 26वें दर्जे के पुरुष खिलाड़ी के मुकाबले आधा है?
मिताली महिला टीम की विराट कोहली हैं – एक सफल खिलाड़ी, प्रेरणादायक कप्तान, असाधारण रूप से संतुलित और गरिमापूर्ण व्यक्ति. कम से कम भी वह ए+ श्रेणी की हकदार थीं।
ये ठीक हैं क्योंकि आमतौर पर भारतीय क्रिकेटरों को बुरी तरह अपर्याप्त भुगतान किया जाता रहा है. उदाहरण के लिए, भारतीय कप्तान विराट कोहली भला स्टीव स्मिथ या जो रूट से कम धन क्यों अर्जित करें?
इसके अलावा, बीसीसीआई के भारी मुनाफों पर गौर करें (सालाना 2,000 करोड़ रुपये से अधिक) तो खिलाड़ियों की बड़ी फीस बिल्कुल न्यायोचित है. याद रहे, जैसा कि कइयों ने अनेकों बार कहा है, कि शीर्ष खिलाड़ियों के स्टार पावर के चलते ही प्रायोजक आते हैं और मीडिया अधिकार की कीमत ऊंची करते हैं. यदि खिलाड़ी पहले से अधिक रिटेनर फीस और वेतन की मांग करते हैं तो ऐसा इन परिस्थितियों में अपेक्षित ही है.
इस पृष्ठभूमि में, उच्चतम भुगतान प्राप्त खिलाड़ियों के लिए सीमा 2 करोड़ से 7 करोड़ रूपये किया जाना कोई बड़ी बात नहीं है. यह अनिल कुंबले का भी आग्रह था, और विराट कोहली की मांग भी. इस 7 करोड़ रुपये के शीर्ष वर्ग को कोचों – रवि शास्त्री (जो कथित रूप से सालाना 8 करोड़ रुपये लेते हैं) और राहुल द्रविड़ (करीब 5 करोड़ रुपये सालाना) – के करोड़ों के वेतन और खिलाड़ियों के आईपीएल वेतन के संदर्भ में भी देखा जाना चाहिए.
पहले की असामनता की उपरोक्त तस्वीर का कोई कारण ही नहीं है! इसलिए बीसीसीआई के अनुबंधों में शीर्ष भुगतान का 2 करोड़ रुपये से बढ़कर 7 करोड़ रुपये पहुंचना एक बहुत पुरानी गलती को सुधारे जाने की तरह है.
हालांकि, चयनकर्ताओं के फैसले पर कुछ शिकायतें आ सकती हैं. एमएस धोनी अपनी मर्जी से सभी फॉर्मेट में नहीं खेलते हैं, इसलिए 5 करोड़ रुपये की श्रेणी में हैं. चेतेश्वर पुजारा सारे फॉर्मेट्स में नहीं खेलते हैं (पर अपनी मर्जी से नहीं!), इसलिए उन्हें भी ‘ए ग्रेड’ के खिलाड़ियों में रखा गया है जिन्हें सालाना 5 करोड़ रूपये मिलेंगे. अजिंक्य रहाणे और आर अश्विन शीर्ष वर्ग के दावेदार होते, लेकिन उनके करियर/प्रदर्शन हाल के दिनों में खराब रहे हैं.
सुरेश रैना दक्षिण अफ्रीका में टी20 खेलकर लौटे हैं, पर श्रेयस अय्यर निश्चय ही दुर्भाग्य से शामिल नहीं हो पाए. ऑफस्पिनर जयंत यादव के नाम ने जिन्हें चौंकाया है उन्हें याद करना चाहिए कि उन्होंने निचले क्रम में बल्लेबाजी करते हुए टेस्ट शतक लगाया था, और इस सीजन में वह चोट से उबर रहे थे. चयनकर्ताओं ने उनकी प्रतिभा पर भरोसा कर सही किया है.
रणजी खिलाड़ी भारतीय क्रिकेट की तीसरी दुनिया के होते हैं – उपेक्षित, भुलाए गए, बहुत कम भुगतान पाने वाले. रणजी के तीन शीर्ष बल्लेबाज (मयंक अग्रवाल, फैज फजल, आरआर संजय) और तीन गेंदबाज (जलज सक्सेना, राजेश गुरबानी, अशोक डिंडा) आर्थिक रूप से अपुरस्कृत हैं. राज्य या आईपीएल के अनुबंध के बिना उन्हें गंभीर वित्तीय संकट का सामना करना पड़ता है और वे रणजी/घरेलू क्रिकेट के पांच महीने सिर्फ मैच फीस के सहारे काटते हैं.
इन खिलाड़ियों को घरेलू क्रिकेट में उनकी सेवाओं के लिए वित्तीय सहारा और सम्मान देने के वास्ते अनुबंध की एक विशेष श्रेणी सृजित की जानी चाहिए थी. रणजी के शीर्ष 10 बल्लेबाजों/गेंदबाजों के लिए 50 लाख रुपये की रिटेनर फीस उनके प्रयासों के लिए भरपाई करेगी, और अनमोलप्रीत सिंह जैसे उभरते सितारों को प्रेरणा देगी. इस प्रोत्साहन के बिना, युवा खिलाड़ी रणजी को समय की बर्बादी मानने लगेंगे और सिर्फ नकदी से समृद्ध आईपीएल पर ध्यान देंगे.
(अमृत माथुर एक वरिष्ठ पत्रकार हैं, और वे विगत में बीसीसीआई के महाप्रबंधक और भारतीय क्रिकेट टीम के मैनेजर रहे हैं। उनसे@AmritMathur1 पर संपर्क किया जा सकता है।)
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