Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Sports Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019क्या सुशील कुमार भारत के इतिहास के सबसे कामयाब एथलीट हैं?

क्या सुशील कुमार भारत के इतिहास के सबसे कामयाब एथलीट हैं?

सुशील कुमार ने गोल्ड कोस्ट कॉमनवेल्थ खेलों में स्वर्ण पदक जीता और इस बहस को तेज कर दिया है कि क्या वो हैं बेस्ट ?

विधांशु कुमार
स्पोर्ट्स
Published:
सुशील कुमार क्या भारत के सबसे सफल एथलीट हैं?
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सुशील कुमार क्या भारत के सबसे सफल एथलीट हैं?
(फोटो: The Quint)

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क्रिकेट के प्यासे इस देश में दूसरे खेलों के खिलाड़ी अक्सर कमतर आंके जाते हैं लेकिन एक खिलाड़ी अपने प्रदर्शन से इस नाइंसाफी के खिलाफ लगातार आवाज लगा रहा है. सुशील कुमार ने गोल्ड कोस्ट में कॉमनवेल्थ खेलों में लगातार तीसरा स्वर्ण पदक जीता और इस बहस को तेज कर दिया है कि क्या वो बहुदेशीय खेल जैसे ओलंपिक, एशियन गेम्स और कॉमनवेल्थ खेलों के सिंगल्स मुकाबलों में भारत के सबसे सफल खिलाड़ी हैं?

टीम प्रतियोगिताओं में हॉकी का स्वर्णिम इतिहास किसी भी टीम के प्रदर्शन से उपर है. ओलंपिक में आठ गोल्ड मेडल भारत तो क्या किसी अन्य देश और टीम के लिए भी सपना ही है. लेकिन टीम इवेंट को परे रख इंडिविजुल या एकल/व्यक्तिगत खेलों पर नजर डालें तो कौन खिलाड़ी सबसे ऊपर दिखता है?

ओलंपिक खेलों में भारत के कुछ खिलाड़ियों ने विपरीत परिस्थिति के बावजूद शानदार प्रदर्शन किया है. खाशाबा दादासाहेब जाधव ओलंपिक में मेडल जीतने वाले आजाद भारत के पहले एथलीट थे. कुछ महान खिलाड़ियों ने ओलंपिक में कभी मेडल नहीं जीता लेकिन भारत में खेलों को बढ़ावा देने में उनका योगदान यादगार है. मिल्खा सिंह पदक से कुछ मिलीसेकेंड से चूक गए, लेकिन एथलेटिक्स में भारत भी कंपीट कर सकता है ये भरोसा उन्होंने आने वाले पीढ़ी को दिया.

इसी तरह उड़नपरी पीटी उषा ने भी लॉस एंजेलिस के 400 मीटर दौड़ में चौथा स्थान हासिल किया और स्प्रिंट में महिला एथलीटों की पूरी फौज तैयार कर दी. जरा याद कीजिए उन दिनों की 400 मीटर रिले रेस की टीम को – पीटी उषा, वालसम्मा, रोजा कुट्टी और शाइनी अब्राहम – ट्रैक एंड फील्ड में इनका डंका एशिया और कॉमनवेल्थ खेलों में खूब बजा.

नब्बे और बाद के दशक में कुंजारानी देवी और कर्णम मल्लेशवरी ने वेटलिफ्टिंग में ओलंपिक पदक हासिल किए और इस खेल में भारत एक बड़ी शक्ति के रूप में उभरने लगा. इसी तरह शूटिंग में राज्यवर्धन राठौर का सिल्वर मेडल, या बैडमिंटन में सानिया नेहवाल के मेडल ने भारत में इन खेलों में जान फूंक दी. पीवी सिंधु ने रियो में सिल्वर जीता तो अभिनव बिंद्रा ने बीजिंग में गोल्ड पर निशाना साधा. यही वो खिलाड़ी है जो सुशील कुमार का सबसे करीबी प्रतिद्वंदी है और ये बहस इन्हीं दोनों पर आकर रुकती है कि सिंग्लस इवेंट में भारत का सबसे सफल खिलाड़ी कौन है?

अभिनव बिंद्रा से बेहतर हैं सुशील?

जरा एक नजर डालते हैं अभिनव बिंद्रा के उपलब्धियों पर. कॉमलवेल्थ खेलों में बिंद्रा ने चार गोल्ड मेडल जीते हैं. 10 मीटर एयर राइफल में उन्होंने मैनचेस्टर (2002), मेलबर्न (2006), दिल्ली (2010) और गलास्गो (2014) में गोल्ड मेडल पर कब्जा जमाया. उनकी सबसे बड़ी सफलता 2008 के बीजिंग ओलंपिक में गोल्ड जीतकर मिली. उस वक्त वो शूटिंग के वर्ल्ड चैंपियनशिप में भी विश्व-विजेता थे. इसके अलावा एशियन गेम्स में उन्हें एक रजत और दो कांस्य पदक मिले हैं.

बीजिंग ओलंपिक में अभिनव ने जीता था भारत के लिए गोल्ड (फोटो: Facebook)

दूसरी तरफ सुशील कुमार ने 2006 के दोहा एशियन गेम्स में ब्रॉन्ज मेडल के साथ बड़े खेलों में जीत का सिलसिला शुरु किया. बीजिंग ओलंपिक में भी उन्होंने कांस्य जीता और इसके बाद लंदन ओलंपिक में रजत पदक जीता. कॉमलवेल्थ खेलों में सुशील कुमार ने दिल्ली, ग्लासगो और अब गोल्ड कोस्ट ऑस्ट्रेलिया में गोल्ड मेडल जीता है.

रियो ओलंपिक पर विवाद

सुशील ने ओलंपिक में दोनों पदक 66 किलोवर्ग में हासिल किए लेकिन रियो ओलंपिक में 66 किलोवर्ग को शामिल नहीं किया गया. ऐसे में सुशील ने 74 किलोवर्ग में अपनी दावेदारी पेश की. इसी वजन भार में उन्होंने 2014 के ग्लास्गो कॉमनवेल्थ में गोल्ड जीता था लेकिन इस भार में भारत के लिए नरसिंह यादव चुने गए थे. सुशील कुमार ने कोर्ट और खेल मंत्रालय से गुहार लगाई कि उनके और नरसिंह के बीच मैच में जो जीते उसे अवसर दिया जाए लेकिन ऐसा हो न सका. बात यहां पर ही खत्म नहीं हुई. नरसिंह यादव डोप टेस्ट में फेल हो गए और उन्हें चार साल का बैन मिला. यादव ने कहा कि वो निर्दोष हैं, यहां तक कि उनके भाई ने इस ओर इशारा किया कि नरसिंह के खाने में ड्रग्स कहीं सुशील कुमार के कहने से तो नहीं मिलाया गया? इस विवाद ने सुशील पर लोगों के नजरिए को धक्का पंहुचाया.

नरसिंह यादव (बाएं), सुशील कुमार (दाएं)(फोटो: Facebook)

क्या इसके बाद कोई खिलाड़ी वापसी कर सकता था?

मत भूलिए कि सुशील कुमार का फेवरिट वजन भार 66 किलो था. ये उनका जज्बा और खेल के प्रति लगन ही थी जिसकी वजह से वो 74 किलोवर्ग में भी चैंपियन बनने लगे. रियो ओलंपिक में नरसिंह के साथ विवाद ने सुशील को अंदर से झकझोर दिया था लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी.

गोल्ड कोस्ट में उन्होंने साउथ अफ्रीका के पहलवान को कुछ सेकंड में धूल चटा दी और गोल्ड मेडल जीता. बुरे दौर से निकल कर बाहर आने की शक्ति, तमाम चुनौतियों से उबर कर जीतने का जज्बा और ओलंपिक में दो मेडल जीतना शायद सुशील कुमार को भारत का सबसे सफल एथलीट बनाता है. ऐसा कम ही होता है कि जब कोई भारतीय खिलाड़ी किसी प्रतियोगिता में हिस्सा लेता है तो उससे बस गोल्ड मेडल की उम्मीद होती है. करोड़ों फैंस के दिलों में सुशील कुमार ने ये छवि बनाई है. कोई हैरानी नहीं कि वो उनकी नजर में नंबर वन हैं.

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