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कबड्डी...कबड्डी... कबड्डी.... कल तक मोहल्ले की धूल-मिट्टी में खेलते लोगों के मुंह से ये आवाज आती थी लेकिन अब ये आवाज लाइट और कैमरा की मदद से टीवी पर भी सुनाई देती है. प्रो कबड्डी लीग का पांचवां सीजन चल रहा है. जैसे-जैसे प्रो कबड्डी का खुमार लोगों के सर पर चढ़ता जा रहा है, राकेश कुमार, संदीप नरवाल, मजीत छिल्लर जैसे नाम घर-घर में फेमस होने लगे हैं.
प्रो-कबड्डी के स्टार खिलाड़ी और यू मुम्बा टीम के कप्तान अनूप कुमार ने द क्विंट से बात करते हुए कहा, “मैंने कभी नहीं सोचा था कबड्डी भारत में इस तरह से मशहूर हो जायेगा.”
लेकिन टीवी स्क्रीन पर दिखने वाले खिलाड़ियों के अलावा भी कई लोग हैं जो इस गेम का रोमांच बढ़ा रहे हैं. ऐसे ही स्क्रीन के पीछे वाले स्टार्स के बारे में जानने के लिए हम पहुंचे नागपुर के मनकापुर स्टेडियम. आइए आपको भी बताते हैं ऐसे ही कुछ खास लोगों के बारे में.
“मंजीत छिल्लर अपने डू और डाई रेड पर हैं, दोनों टीमों का स्कोर 31-31 से बराबरी पर है... और क्या जयपुर पिंक पैंथर को मंजीत अपने तिकड़म से चित कर पाएंगे? जी हां, मंजीत ने कर दिया कमाल... और ये जीत का डंका बज गया है..” अक्सर ऐसी आवाज टीवी पर प्रो कबड्डी के मैच के दौरान सुनाई देती है. ये आवाज होती है कमेंटेटर तरुण तनेजा की. तरुण तनेजा की आवाज दर्शकों को टीवी से चिपक कर बैठने को मजबूर कर देती है.
कबड्डी एक ऐसा खेल है जहां चोट लगना आम बात है. ऐसे में खिलाड़ियों को चोट से उबारने में कोई मददगार साबित होता है तो वो है डॉक्टर. मैच के दौरान डॉक्टर मैट से 20 मीटर की दूरी के अंदर ही रहते हैं. अगर मैच के दौरान किसी खिलाड़ी को चोट लग जाए तो डॉक्टर तुरंत एक्शन में आ जाते हैं.
सर्कस, शॉपिंग मॉल, पार्क में कभी शेर तो कभी हाथी कभी भालू वाला मैस्कॉट तो देखा ही है. लेकिन अब प्रो कबड्डी में भी अलग-अलग टीम अपने मैस्कॉट से दर्शकों का मनोरंजन कराते हैं. जैसे बेंगलुरु बुल्स टीम का मैस्कॉट है एक सांढ़, वैसे ही पटना पाइरेट्स का समुद्री डाकू मैस्कॉट.
इज्जापर्ददी प्रसाद 'कबड्डी' राव. इन्हें लोग कबड्डी राव भी कहते हैं. राव साहब को द्रोणाचार्य अवार्ड भी मिल चुका है. वो लगभग दो दशक तक भारतीय कबड्डी टीम के कोच भी रह चुके हैं. वो प्रो कबड्डी टूर्नामेंट के तकनीकी निदेशक के रूप में काम करते हैं.
भारतीय कबड्डी के "मिटटी से मैट" तक के सफर में राव का बहुत अहम योगदान है.
बॉक्सिंग, फुटबॉल की तरह इसमें भी रेफरी कई अहम फैसले लेते हैं. क्रिकेट की तरह इसमें भी रिव्यु का ऑप्शन है. रिव्यु के लिए रेफरी का रोल बहुत अहम होता है. पिछले कई सालों तक कृष्णा हेमचंद हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर में एक स्कूल में फिजिकल एजुकेशन के टीचर के रूप में काम कर रहे थे, लेकिन प्रो कबड्डी लीग के आने के बाद कृष्णा चंद अब रेफरी बन गए हैं.
रेडर हवा में था या डिफेंडर ने उसे पाले से बाहर फेंक दिया है, हर एक एक्शन पर कैमरे की नजर है. वहीं मीडिया कैमरे ने भी इस खेल को और बड़ा बना दिया है.
प्रो कबड्डी इतना फेमस हो चुका है कि अमेरिका की न्यूयॉर्क टाइम्स भी इसे लेकर एक फीचर स्टोरी बन रही है. न्यूयॉर्क टाइम्स के अतुल लोके बताते हैं, “अगर इस खेल के बारे में ज्यादा जानना है तो आप को किसी एक टीम को फॉलो करना होगा. इसलिए मैं यू मुम्बा के साथ यात्रा कर रहा हूं.”
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