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क्रिकेट की दुनिया को वो सितारा जिसने गोवा के ग्रांउड से निकलकर भारतीय क्रिकेट टीम को नई ऊंचाईयों तक पहुंचाने में योगदान दिया. भारतीय क्रिकेट टीम का हिस्सा रहे बेहतरीन बल्लेबाज और दिग्गज पत्रकार राजदीप सरदेसाई के पिता दिलीप नारायण सरदेसाई के जन्मदिन पर जानिए, उनके जीवन से जुड़ी कुछ खास बातें. पत्रकार राजदीप सरदेसाई की जुबानी सुनिए, कैसे गोवा से निकलने के बाद उनके पिता ने क्रिकेट के मैदान से नई बुलंदियों को हासिल किया.
राजदीप सरदेसाई बताते हैं...
द विज्डन इंडिया मैग्जीन में मेरे पिता को लेकर ‘लक वाइ टेलेंट’ हैडलाइन से एक आर्टिकल प्रकाशित हुआ था. शायद वो आर्टिकल उनके व्यक्तिव को पूरी तरह से परिभाषित करता है.
मेरे पिता ने 17 साल की उम्र तक अपने जीवन में कभी भी टर्फ विकेट पर क्रिकेट नहीं खेली थी. उनका जन्म गोवा में हुआ और 17 साल की उम्र तक उन्होंने गोवा में ही क्रिकेट खेली. गोवा उस वक्त पुर्तगाल सरकार के अधीन था. जाहिर तौर पर क्रिकेट उन्हें विरासत में नहीं मिली थी.
इसके चार साल बाद, उन्होंने भारत के लिए क्रिकेट खेलना शुरू किया. 17 साल की उम्र में वह क्रिकेट के लिए गोवा से निकलकर मुंबई पहुंचे. उस दौर तक गोवा से ऐसा कोई भी क्रिकेटर नहीं निकला था जोकि भारतीय क्रिकेट टीम का हिस्सा बना हो.
साल 1962 में महज 21 साल की उम्र में मेरे पिता वेस्ट इंडीज गए थे. उस सीरीज में भारतीय क्रिकेट टीम के ओपनर बल्लेबाज नारी कॉन्ट्रेक्टर के सिर में तेज बॉल लगी थी. इसके बाद कोई भी बल्लेबाजी करने को तैयार नहीं था. उस वक्त मेरे पिता बल्लेबाजी के लिए जाने को तैयार हुए. उन्होंने न सिर्फ पारी की शुरुआत की बल्कि उन्होंने औसत पारी भी खेली.
इसके बाद साल 1967 में मेरे पिता एक बार फिर वेस्ट इंडीज गए और उन्होंने एक बार फिर इतिहास रचा. किंग्सटन में हुए पहले टेस्ट मैच में भारत महज 75 रन के स्कोर पर पांच विकेट गंवा चुका, उस वक्त मेरे पिता ने वेस्ट इंडीज के खिलाफ दोहरा शतक ठोंका. उन्होंने 212 रन की पारी खेलकर भारतीय टीम को 387 के स्कोर पर पहुंचाया.
अगर उस ऐतिहासिक इनिंग के 44 साल बाद भी लोग इस बात को याद रखते हैं तो यह वाकई बहुत ही महत्वपूर्ण है. यह मेरी बदकिस्मती है कि मैंने उन्हें टेस्ट मैच में बल्लेबाजी करते कभी नहीं देखा.
मुझे बताया गया कि वह स्पिनर्स के खिलाफ बेहतरीन बल्लेबाजी करते थे. वह बहुत अच्छे फील्डर्स में से एक नहीं थे लेकिन वह उनमें से एक थे जोकि संघर्ष करने के लिए हर मौके पर तैयार रहते थे. यही वजह है कि मैं अपने पिता को बहुत याद करता हूं.
एक क्रिकेटर के तौर पर जिस तरह वह छोटे से शहर से आए और जिस तरह वह क्रिकेट को अपनी जिंदगी की तरह प्यार करते थे, इसी तरह मैं उनके 76वें जन्मदिन पर उन्हें याद कर रहा हूं. मुझे यकीन है वह जहां कहीं भी होंगे, अपना पसंदीदा प्रॉन करी-राइस खा रहे होंगे.
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