advertisement
करीब एक दशक पहले ऑस्ट्रेलिया के दिग्गज लेग स्पिनर शेन वार्न ने राजकोट के एक गुमनाम खिलाड़ी को आईपीएल 2008 के दौरान ‘रॉकस्टार’ का उपनाम दिया. इस खिलाड़ी ने राजस्थान रॉयल्स को पहला आईपीएल जिताने में अहम भूमिका निभाई.
इत्तेफाक से ये दौर भारतीय क्रिकेट में महेंद्र सिंह धोनी की कप्तानी का भी दौर था. खुद रांची जैसे छोटे शहर से आने वाले धोनी को छोटे शहर के खिलाड़ियों पर ज्यादा भरोसा रहता था, जो उन्हें जबरदस्त तरीके से सपोर्ट करते थे. आईपीएल का दूसरा सीजन शुरू होने से पहले इस रॉकस्टार ने भारत के लिए वन-डे और टी 20 क्रिकेट भी खेल लिया.
शायद ही किसी को इस बात का अंदाजा रहा होगा कि ये गुमनाम खिलाड़ी एक दशक के भीतर भारत का नंबर 1 स्पिनर भी बन जाएगा. ये शख्स और कोई नहीं बल्कि भारतीय क्रिकेटर रवींद्र जडेजा हैं.
यह भी देखें: रवींद्र जडेजा की तलवारबाजी का टशन
29 टेस्ट मैच के बाद जडेजा भारतीय क्रिकेट के उन टॉप 15 गेंदबाजों में भी शुमार हो गए हैं, जिन्होंने मुल्क के लिए सबसे ज्यादा विकेट हासिल किए हैं. ईरापल्ली प्रसन्ना के 189 टेस्ट विकेट का रिकॉर्ड तोड़ने में शायद जडेजा को ज्यादा वक्त न लगे.
लेकिन भारतीय क्रिकट का सबसे कामयाब खब्बू स्पिनर बनने के लिए बिशन सिंह बेदी का 266 टेस्ट विकेट का रिकॉर्ड उनके लिए एक बड़ी चुनौती होगी. इत्तेफाक से बेदी भी अपन जमाने में आईसीसी रैंकिग में नंबर 1 गेंदबाज रह चुके हैं.
बहरहाल, क्रिकेट के पंडित बेदी के साथ जडेजा की तुलना भर की चर्चा से ही आहत हो सकते हैं. ये सही है कि बेदी और जडेजा की गेंदबाजी में शायद ही कोई समानता हो और तुलना सही नहीं भी है, लेकिन अगर सर डॉन ब्रैडमैन की तुलना सचिन तेंदुलकर से हो सकती है और विराट कोहली की तेंदुलकर से तो जडेजा की बेदी से क्यों नहीं? कम से कम विकेट लेने के मामले में वो पूर्व भारतीय कप्तान से आगे ही चल रहे हैं.
अपने छोटे से करियर में तमाम उपलब्धियों के बावजूद रवींद्र जडेजा के खेल में हमेशा आलोचकों को कमी ही दिखती रही है. अगर वो गेंदबाजी अच्छी करते, तो ये दलील दी जाती को वो बल्लेबाजी के साथ न्याय नहीं करते हैं.
जडेजा के खेल में भी स्थिरता की कमी दिखी और तमाम कोशिशों के बावजूद वो 2011 का वर्ल्ड कप नहीं खेल पाये (वो धोनी की पहली पंसद थे) और उनकी जगह वडोदरा के यूसुफ पठान खेले. इसके बाद जडेजा ने सिर्फ छोटे फॉर्मेट, बल्कि क्रिकेट के सबसे बड़े फॉर्मेट में भी अपनी पहचान बनाने का इरादा किया.
दिसंबर 2012 में जडेजा को इंग्लैंड के खिलाफ पहला टेस्ट खेलने का मौका मिला. सिर्फ 27 टेस्ट मैच खेलने के बाद जडेजा दुनिया के नंबर 1 गेंदबाज बन गए. हालांकि उन्हें टॉप रैंकिंग अपने साथी गेंदबाज रविचंद्रन अश्विन के साथ साझा करनी पड़ी. लेकिन एक हफ्ते बाद जडेजा ने अश्विन का भी ताज छीन लिया.
यानी अगर धर्मशाला टेस्ट में भी जडेजा ने अपना मौजूदा सीरीज का फॉर्म बरकरार रखा, तो अगले कई महीनों तक उनके ताज को छीनने वाला कोई नहीं दिखता है.
यह भी पढ़ें: अश्विन के साथ जडेजा भी बने दुनिया के नंबर-1 गेंदबाज
अगस्त 2014 में इंग्लैंड के खिलाफ ओवल टेस्ट के बाद जडेजा के टेस्ट करियर को एक बड़ा झटका लगा. सिर्फ 12 टेस्ट के बाद ऐसा लगा कि जडेजा वाकई में टेस्ट गेंदबाज न होकर सिर्फ एक उपयोगी ऑलराउंडर हैं और वो भी सीमित ओवर की क्रिकेट में. लेकिन इसके बाद अगले रणजी सीजन में जडेजा ने सौराष्ट्र के लिए दर्जनों की संख्या में विकेट बटोरने शुरू किये और फटाफट टीम इंडिया में वापसी की. इसके बाद से उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा.
लेकिन अश्विन को पछाड़ाने का सिलसिला पिछले साल इंग्लैंड सीरीज के साथ ही शुरू हो गया. इंग्लैंड के खिलाफ राजकोट टेस्ट से लेकर रांची टेस्ट के दौरान जडेजा ने 9 मैचों में 53 विकेट लिए हैं, जबकि अश्विन के 51 हैं. विकेट की संख्या में भले ही बहुत ज्यादा नहीं हो, लेकिन दोनों गेंदबाजों के औसत में अंतर (7 का, जडेजा का औसत 22.69 तो अश्विन का औसत 29.69 रहा है) ये साबित करने को काफी है कि आज विरोधी टीम के लिए भारतीय पिचों पर अश्विन से ज्यादा खतरनाक जडेजा हैं.
ऑस्ट्रिलया की इस सीरीज में सबसे कामयाब बल्लेबाज स्टीवन स्मिथ को अब तक सबसे ज्यादा मौके पर जडेजा ने ही आउट किया है. 2013 के दौरे पर स्पिन के महारथी माने जाने वाले पूर्व ऑस्ट्रेलियाई कप्तान माइकल कलार्क को भी जडेजा ने 6 मौकों पर आउट किया था. साउथ अफ्रीका के दिग्गज बल्लेबाज हाशिम आमला भी 2015 वाली सीरीज में पूरी तरह से पस्त दिखे थे.
ऐसा नहीं है कि स्पिन गेंदबाजी की रेस में जडेजा ने अश्विन को पहली बार पछाड़ा है. सिर्फ अपने 5वें टेस्ट में ही जडेजा अपने कप्तान धोनी के इतने चहेते हो गये थे कि डरबन में सिर्फ 1 स्पिनर चुनने की बारी आई तो प्लेइंग इलेवन से बाहर होने वाले खिलाड़ी अश्विन थे.
बहरहाल, भारतीय क्रिकेट के लिए अच्छी बात ये है कि जडेजा और अश्विन के बीच आपसी तालमेल काफी अच्छा है. दोनों एक-दूसरे का सम्मान करते हैं और एक-दूसरे कि मदद करते हैं. दोनों इस बात को बखूबी जानते हैं कि वो एक दूसरे के पूरक हैं. और अगर इन दोनों खिलाड़ियों के बीच आईसीसी रैंकिग में नंबर 1 पर बने रहने को स्पर्धा शुरू होती है, तो इसका फायदा सिर्फ और सिर्फ भारतीय क्रिकेट को ही होगा.
(लेखक करीब 2 दशक से खेल पत्रकारिता में सक्रिय हैं और फिलहाल टेन स्पोर्ट्स से जुड़े हुए हैं. इस आलेख में प्रकाशित विचार उनके अपने हैं. आलेख के विचारों में क्विंट की सहमति होना जरूरी नहीं है.)
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)