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आशीष नेहरा के जल्दी ही संन्यास लेने की खबर में कुछ भी अप्रत्याशित नहीं है. जब पिछले साल जनवरी से मार्च के दौरान अंतरराष्ट्रीय टी20 मैचों के लिए उनकी भारतीय टीम में वापसी हुई थी, तभी ये माना जा रहा था कि वहीं नेहरा अपनी आखिरी गेंद करेंगे. लेकिन, भारतीय टीम के साथ उनका जुड़ाव उसके आगे भी चला. उन्होंने इस साल इंग्लैंड के खिलाफ वापसी की. फिर वेस्टइंडीज और श्रीलंका में एक-एक मैच के लिए उनका चुना जाना मुश्किल था क्योंकि सिर्फ एक गेम के लिए इतनी दूर तक किसी खिलाड़ी को भेजना सही नहीं रहता.
अब हालांकि, अंत निश्चित लग रहा है. आप ये उम्मीद कर सकते थे कि 12 अंतरराष्ट्रीय टी20 मैचों के सीजन में नेहरा सफेद गेंद से बॉलिंग के लिए पर्फेक्ट होते लेकिननेहरा जी अब नए लोगों के लिए जगह खाली करने के इच्छुक हैं.
उनके बोलने की असामान्य शैली, और कटाक्ष से भरे हंसी-मजाक ने इंडियन ड्रेसिंग रूम का करीब 16 साल तक मन बहलाया है. उन्हें अजहर, गांगुली, राहुल द्रविड़, अनिल कुंबले, एम एस धोनी और अब विराट कोहली के नेतृत्व में खेलने का मौका मिला है. उन्होंने भारतीय क्रिकेट की दो पीढ़ियों को आते-जाते देखा है.
नेहरा का करियर 1998-99 में मोहम्मद अजहरूद्दीन की अगुवाई में एशियाई टेस्ट चैंपियनशिप में शुरुआत के बाद से ही बार-बार रुकता-चलता रहा है. बाएं हाथ से गेंदबाजी करने की वजह से वो भारतीय क्रिकेट के लिए दुर्लभ चीज थे क्योंकि हमारे पास 1988 के बाद से कोई बाएं हाथ का तेज गेंदबाज नहीं था.
फिर वो 2 साल के लिए गायब हो गए, जब तक कि सौरव गांगुली उन्हें वापस नहीं लाए. ये सुनहरे दौर की शुरुआत थी जब जवागल श्रीनाथ ने नेहरा और बाएं हाथ के एक और नौजवान गेंदबाज जहीर खान के साथ मिलकर भारत की ओर से अब तक की सर्वश्रेष्ठ तेज गेंदबाजी दिखाई. नेहरा और जहीर बल्लेबाजों को परेशान करते थे जब श्रीनाथ अपना तजुर्बा दिखाते थे. 2003 का वर्ल्ड कप नेहरा के लिए ऊंचाई छूने वाला मौका था जब उन्होंने डर्बन के मैच में इंग्लैंड की बल्लेबाजी को बिखेर दिया था.
श्रीनाथ के संन्यास लेने के बाद नेहरा ने बागडोर संभाली लेकिन इस दौरान उनकी एड़ी, घुटना, और शायद शरीर के हर हिस्से का ऑपरेशन होता रहा. बार-बार चोट लगने के बाद नेहरा का पूरा ध्यान वनडे इंटरनेशनल क्रिकेट पर चला गया था. टेस्ट क्रिकेट की कड़ी मेहनत नेहरा को रास नहीं आ रही थी. ये तब दिखा भी जब उन्होंने 2003-04 में पाकिस्तान के ऐतिहासिक दौरे में भारत के लिए अपना आखिरी टेस्ट खेला. जनवरी 2014 के बाद से उन्होंने प्रथम श्रेणी क्रिकेट भी नहीं खेली है.
संभावित भारतीय गेंदबाज के लिए उनके नाम का कोई जिक्र तक नहीं करता था. ये वही दौर था जब टीम के कप्तान भी बड़ी तेजी से बदल रहे थे. आर पी सिंह, श्रीसंत, मुनाफ पटेल जैसे नौजवान गेंदबाज आ चुके थे हालांकि अभी खुद को पूरी तरह स्थापित नहीं कर पाए थे. इसी समय एम एस धोनी ने चयनकर्ताओं को छोटे फॉर्मेट के लिए नेहरा को टीम में चुनने के लिए मना लिया. योजना थी कि नेहरा कम से कम इतनी क्रिकेट खेलें कि टेस्ट क्रिकेट भी खेल सकें. योजना थोड़े समय तक कामयाब भी रही.
नेहरा एक बार फिर भुला दिए गए. उस वक्त ऐसी चर्चा थी कि किसी ताकतवर बीसीसीआई अफसर से उनकी भिड़ंत हो गई है. इसलिए नेहरा का चुनाव अब कभी नहीं हो सकता. इस दौरान, नेहरा गेंदबाजी करते रहे, चोटिल होते रहे और छोटे फॉर्मेट, खासकर आईपीएल में अच्छा परफॉर्मेंस देते रहे.
फिर आखिरकार 2015-16 में, जब भारत में वर्ल्ड कप टी20 का आयोजन हुआ, धोनी उन्हें वापस लाए. उम्मीद थी कि नेहरा कम समय में ही अपने तजुर्बे का फायदा टीम को दिलाएंगे. नेहरा ने मौके का फायदा उठाया और जिस तरीके से गेंदबाजी हमले की अगुवाई की, वो तारीफ के काबिल था. लेकिन वर्ल्ड कप टी20 में नतीजे भारत की उम्मीद के मुताबिक नहीं रहे. ऐसा महसूस किया गया कि एक बार फिर नेहरा अलग-थलग हो जाएंगे और फिर वो दोबारा चोटिल हो गए..
अफसोस की बात है कि ऐसी शालीनता वीरेंद्र सहवाग या जहीर खान के साथ नहीं दिखाई गई. भारतीय क्रिकेट के सुनहरे दौर के वरिष्ठ खिलाड़ियों और चयनकर्ताओं के बीच संवाद की कमी ने ऐसे दुखद हालात पैदा किए हैं. युवराज सिंह, गौतम गंभीर और हरभजन सिंह आधिकारिक रूप से अभी भी चुनाव के लिए मौजूद हैं, लेकिन सच्चाई यही है कि उनकी वापसी काफी दूर है. उम्मीद है कि नेहरा जी भारतीय क्रिकेट के सभी चैंपियनों की सम्मानजनक विदाई का रास्ता तैयार करेंगे.
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