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सुप्रीम कोर्ट ने बीसीसीआई की मुश्किलें और ज्यादा बढ़ा दी है. कोर्ट ने मंगलवार को बीसीसीआई द्वारा लोढ़ा कमेटी की सिफारिशों पर दी गई पुनर्विचार याचिका को खरिज कर दिया है. यह फैसला जस्टिस टीएस ठाकुर और एसए बोबडे की बेंच ने दिया है.
सुप्रीम कोर्ट ने 18 जुलाई 2016 को लोढ़ा कमेटी की सिफारिशों को मानने का फैसला सुनाया था. बीसीसीआई शुरू से ही इन सिफारिशों के पक्ष में नहीं थी. इसलिए 16 अगस्त को बीसीसीआई ने सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका डाली थी.
पुनर्विचार याचिका में बीसीसीआई ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को कई मायनों में गलत बताया था. याचिका में कहा था कि "जस्टिस लोढ़ा कमेटी न तो खेल के विशेषज्ञ हैं और न ही उनकी सिफारिशें सही हैं."
इससे पहले सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने लोढ़ा कमेटी की सिफारिशों के एक अन्य मामले में फैसला सुरक्षित रख था. इसके अलावा कोर्ट ने बीसीसीआई को एक तय समयसीमा तक सिफारिशों को मानने के लिए कहा था.
सोमवार को बीसीसीआई अध्यक्ष अनुराग ठाकुर ने लोढ़ा पैनल की सिफारिशों पर हलफनामा भी दायर किया था. हलफनामे में उन्होंने बीसीसीआई के पूर्व अध्यक्ष शशांक मनोहर को निशाने पर लिया है.
हलफनामे में कहा था कि उन्होंने आईसीसी के सीईओ को नहीं कहा कि लोढ़ा पैनल की सीएजी मेंबर की नियुक्ति से सरकारी दखल होगा जिससे आईसीसी, बीसीसीआई को निलंबित कर सकता है.
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2013 में आईपीएल टीम राजस्थान रॉयल के तीन खिलाड़ियों पर मैच के दौरान स्पॉट फिक्सिंग में शामिल होने का आरोप लगा था. दिल्ली पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार किया था.
तत्कालीन बीसीसीआई प्रेसिडेंट एन. श्रीनिवासन के दामाद और चेन्नई सुपर किंग्स के सीईओ गुरुनाथ मयप्पन की भी गिरफ्तारी हुई थी. मामले की जांच को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस मुकुल मुद्गल के नेतृत्व में मुद्गल कमेटी बनाई गई.
2014 में जस्टिस मुद्गल ने बीसीसीआई में सुधार की बात अपने रिपोर्ट में कही थी. सुप्रीम कोर्ट ने बीसीसीआई में सुधार के लिए जनवरी 2015 में जस्टिस आर.एम. लोढ़ा की अगुआई में कमेटी बनाई थी. कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में बीसीसीआई में कई बदलावों के सुझाव दिए हैं.
लोढ़ा पैनल का मानना है कि बीसीसीआई सिफारिशों को लागू नहीं करना चाहता, इसलिए पदाधिकारियों को हटा देना चाहिए.
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