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ये सिर्फ एक आम सवाल नहीं है बल्कि भारतीय टीम के पक्ष में किया गया सवाल है. 2017 के दिसंबर में दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ विदेशी दौरों का जो सिलसिला शुरू हुआ था वो न्यूजीलैंड के खिलाफ सीरीज के साथ खत्म हुआ. करीब तेरह-चौदह महीने में भारतीय क्रिकेट ने यू-टर्न लिया है. इस दौरान टीम इंडिया हारी भी और जीती भी. गलतियां की और गलतियों में सुधार भी. भारतीय क्रिकेट में ऐसे मौके कम ही आए होंगे जब करीब सवा साल में इतने मुश्किल दौरे एक के बाद एक हुए हों.
खास तौर पर टेस्ट क्रिकेट के लिहाज से दक्षिण अफ्रीका, इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया का दौरा एक के बाद एक करना बहुत कठिन चुनौती है. अब जबकि ये चुनौती खत्म हो चुकी है तो इस बात का आंकलन होना चाहिए कि सवा साल में टीम इंडिया ने क्या कुछ हासिल किया. टेस्ट क्रिकेट से लेकर टी-20 तक तीनों फॉर्मेट में टीम इंडिया के प्रदर्शन के आधार पर क्या ये कहा जा सकता है कि मौजूदा दौर टीम इंडिया का सुनहरा वक्त है? इस प्रश्न के पक्ष में बात आगे बढ़ाने से पहले बीते एक साल का एक्शन ताजा कर लेते हैं.
न्यूजीलैंड के खिलाफ वनडे और टी-20 सीरीज के नतीजे अभी क्रिकेट फैंस को याद ही हैं. लगे हाथ उपलब्धियों का जिक्र करते चलें. टीम इंडिया ने पहली बार एक सीजन में दक्षिण अफ्रीका, इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया में टेस्ट मैच जीते. ऑस्ट्रेलिया को उसी की जमीन पर टेस्ट सीरीज में हराने का कारनामा भारतीय क्रिकेट के इतिहास में पहली बार दर्ज किया. ‘बाइलेट्रल’ वनडे सीरीज में भी टीम इंडिया पहली बार ऑस्ट्रेलिया में जीती. अब जरा टेस्ट मैच की बात और इत्मीनान से करते हैं. जिन सात टेस्ट मैचों में भारतीय टीम हारी उसमें हार जीत के अंतर को देखना बहुत जरूरी है. ये आंकड़े भी देखिए...
इस हार जीत के अंतर को ध्यान से देखिए. सात में से 6 टेस्ट मैचों में हार जीत का अंतर डेढ़ सौ रनों से कम का है. तीन टेस्ट मैचों में हार का अंतर सौ रनों से काफी कम का है. एक टेस्ट मैच में तो टीम इंडिया 31 रनों के मामूली अंतर से हारी है. इस बात से कोई इंकार नहीं कर सकता है कि हार, हार होती है. क्रिकेट की रिकॉर्ड बुक में पहले हार या जीत दर्ज होती है. हार का अंतर तो कोई बाद में देखता है लेकिन हम जिस सुनहरे साल के संदर्भ में बात कर रहे हैं वहां हार जीत का अंतर देखना बहुत जरूरी है.
ये अंतर टेस्ट क्रिकेट में ही देखने को मिलेगा. वनडे और टी-20 में तो आम तौर पर टीम इंडिया का जलवा बरकरार रहा. अब जरा कुछ देर के लिए याद कीजिए इन सवा सालों से पहले की कहानी. कुछ एक ऐतिहासिक जीतें जरूर याद आएंगी लेकिन हार के मुकाबले उन जीतों का प्रतिशत काफी कम था. आम तौर पर विदेशी दौरों पर टीम इंडिया की पहचान एक फिसड्डी टीम के तौर पर ही थी, वो पहचान अब बदली है. अब टीम इंडिया आंख में आंख डालकर खेलती है. विदेशी जमीन पर जीतना उसे आ चुका है. इससे ज्यादा सुनहरी बात और क्या होगी?
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