Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Sports Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019MI Vs SRH: ये मुंबई है मेरी जान! इसे हराना इतना नहीं आसान?

MI Vs SRH: ये मुंबई है मेरी जान! इसे हराना इतना नहीं आसान?

IPL 2021 के अपने तीनों मैच क्यों कम स्कोर करने के बाद भी जीत गई MI

विमल कुमार
स्पोर्ट्स
Updated:
मुंबई इंडियंस
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मुंबई इंडियंस
(फोटो: @mipaltan/ट्विटर)

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गेंद, बल्ले, फील्डिंग और शानदार कप्तानी के अलावा एक और बात है जिसके चलते मुंबई इंडियंस अपने विरोधियों को मुश्किल से मुश्किल हालात में भी तोड़ देती है. वो है मुंबई का आत्म-बल और उनका हौव्वा. या फिर यूं कहें कि जब भी मुंबई के सामने कोई विरोधी टीम खासकर एक ऐसी टीम जिसे खुद की काबिलियत पर थोड़ा सा भी शक हो वो मुंबई की आभा के आगे पलक झपकते ही नतमस्तक हो जाती है.

शनिवार की रात को सरनराइजर्स हैदराबाद के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ. जब जॉनी बेयरस्टो का तूफान थमा तब मुंबई के लिए ऐसा लगा कि मैच खत्म हो चुका है कि क्योंकि SRH को 84 रन 76 गेंदों पर चाहिए थे और उनके 9 विकेट बचे हुए थे.

बायें हाथ का खेल, आप सोचेंगे? लेकिन, मुंबई महान टीमों की तरह कभी भी शिंकजा ढीला होने नहीं देती है और यही वजह है डेविड वार्नर जैसा अनुभवी खिलाड़ी भी ऐसे दबाव में रन आउट हो जाता है.

बावजूद इसके भी हैदराबाद को बहुत परेशान नहीं होना था क्योंकि बचे 61 रन 51गेंदों पर हासिल करना इतना मुश्किल कहां था? लेकिन, मुंबई की साख अब हैदराबाद को परेशान कर रही थी. उनके युवा बल्लेबाजों के चेहरे पर डर के भाव साफ दिख रहे थे. आलम ये था कि आखिरी 24 गेंद पर 31 रन बनाने की चुनौती जिसे टी20 में आसान ही माना जाता है, पहाड़ सा लक्ष्य दिखने लगा.

ऐसा अमूमन तब ही होता है जब आप अपने विरोधी को उनके खेल से ज्यादा उनकी पुरानी साख को साख को ध्यान में रखते हुए खेलने लगते हो. अस्सी के दशक में कैरेबियाई टीमों के खिलाफ और नब्बे के दशक में ऑस्ट्रेलियाई टीमों के खिलाफ दूसरे देशों की घिग्घी ऐसी ही बंध जाती थी. एकदम जीतने वाले हालात में भी टीमें बेवजह बिखर जाया करती थीं.

मुंबई के आत्म-विश्वास का ही जलवा है

ये तो मुंबई के आत्म-विश्वास का ही जलवा है ना जिस आईपीएल में अब तक टीमें टॉस जीतकर सीधे गेंदबाजी करने का फैसला करती हैं वहां वो बल्लेबाजी करने का निर्णय लेती है. और आसानी से अंत में मैच जीतती भी है. ऐसा वही टीमें कर पाती है जिन्हें खुद पर असाधारण तरीके का भरोसा होता है.

तो क्या हुआ अगर सबसे बड़े गेंदबाज जसप्रीत बुमराह मैच में एक भी विकेट नहीं ले पाते हैं. वो इसकी कमी 4 ओवर में बिना एक चौका दिए पूरा करते हैं. तो क्या हुआ ट्रैंट बोल्ट को शुरुआत में काफी मार पड़ती है लेकिन बाद में उन्हें खेलना मुश्किल हो जाता है.

तो क्या हुआ मुंबई के पास राशिद खान जैसा जादूगर नहीं है लेकिन राहुल चाहर से ही वो किफायती गेंदबाजी करवा के 3 विकेट दिलाने में सफल हो जाते हैं. ऐसा सिर्फ इसलिए हो पाता है कि टीम का नाम मुंबई इंडियंस हैं. और इस नाम को बनाने में, ये रुतबा हासिल करने के लिए इस टीम ने करीब एक दशक से निरंतरता और दबदबा हासिल करने वाला खेल दिखाया है.

इस टूर्नामेंट के पहले मैच में भी मुंबई ने अपनी आभा के दम पर विराट कोहली की टीम को एकदम से आसानी से जीतने वाले मैच में हार के करीब पहुंचा दिया था. 160 के लक्ष्य का पीछा करते हुए 2 विकेट पर 98 के स्कोर से 122 पर 6 होने में कोहली की टीम को सिर्फ 4 ओवर ही लगे.विराट को पता चल गया कि मुंबई के खिलाफ कुछ भी आसान नहीं है.

ये तो भला हो करिश्माई एबी डिविलियर्स का जिन्होंने नैय्या पार करा दी, किसी तरह से 2 विकेट से वो जीत गये लेकिन कोलाकाता के लिए कहानी ऐसी नहीं थी. 153 रन के मामूली स्कोर का पीछा करते हुए केकेआर ने 104 रन बना लिए थे लेकिन पिछले 10 में से 9 मैच वो हारे थे मुंबई के खिलाफ, बस वही डर सामने आ गया. मुंबई ने आसानी से आखिर में एकदम से हारे हुए मैच को जीत लिया 10 रनों से.

विरासत इतिहास की असाधारण टीमों जैसी

अब तक तीन मैचों के दौरान बल्लेबाजी में संघर्ष के बावजूद मुंबई लगातार टीमों के पसीने छुटाने में कामयाब हो रही है. रोहित शर्मा के पास क्रिकेट की बेहतरीन समझ है, वो 6ठी बार खििताब जीतें या ना जीतें लेकिन टी20 क्रिकेट में उनकी विरासत को शायद इतिहास इंटरनेशनल क्रिकेट की असाधारण टीमों के साथ याद रखेगा. किसी क्रिकेट टीम के लंबे समय तक दबदबे वाले रुतबे की बात जब भी होगी तो टी20 फॉर्मेट में मुंबई इंडियंस का नाम निश्चित तौर पर आएगा.

मुंबई इंडियंस की तरह टी20 फॉर्मेट में ऐसी कोई दूसरी विलक्षण टीम आपको नहीं मिलेगी. शायद इसलिए इंग्लैंड के पूर्व कप्तान माइकल वॉन ने ये तक कह डाला था कि मुंबई की टीम टी20 में टीम इंडिया से भी मजबूत है. सच कहा जाए तो मुंबई इंडिंयस के नाम का खौफ 1980 के दशक में वेस्टइंडीज के और 1995 से 2005 के दशक में ऑस्ट्रेलियाई टीम की याद दिलाता है जिनके पास बेजोड़ प्रतिभाओं का असीमित संसाधन था.

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Published: 18 Apr 2021,11:58 AM IST

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