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स्पोर्ट्स की दुनिया में अक्सर खिलाड़ी जब टॉप लेवल पर किसी चीज से परेशान होते हैं, तकनीक में प्रॉब्लम आती है या कोई कमजोरी प्रदर्शन गिरा रही होती है तो वो अपने पहले कोच के पास जाते हैं. विराट कोहली आज भी राजकुमार शर्मा से टिप्स लेते हैं तो वहीं धोनी भी अपने पहले कोच केशव बेनर्जी से खेल की बारीकियों पर बात करते हैं. उसी तरह रेसलर सुशील कुमार को स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया चाहे कितने भी अच्छे कोच दे दें लेकिन बात वो अपने गुरू सतपाल सिंह की ही मानते रहे. और अगर फिल्मी दुनिया में देखें तो दंगल मूवी में गीता-बबीता के बचपन के कोच उनके पिता ही आखिर में उन्हें जीत दिलवाते हैं.
ऐसा ही कुछ अब बैडमिंटन की दुनिया में हुआ है. स्टार प्लेअर सायना नेहवाल ने टीचर्स-डे से ठीक एक दिन पहले अपने बचपन के टीचर पुलेला गोपीचंद के साथ फिर से हाथ मिलाया है. तीन साल पहले सितंबर के ही महीने में सायना और गोपीचंद किसी आपसी मनमुटाव की वजह से अलग हुए थे, लेकिन अब भारत को बैडमिंटन का पहला ओलंपिक मेडल जिताने वाली ये जोड़ी फिर से साथ आ गई है.
दरअसल सायना रियो ओलंपिक के बाद से ही अपनी फिटनेस से जूझ रही थीं. उनके घुटने में लगी चोट उनके प्रदर्शन पर असर डाल रही थी. दुनिया की सबसे बेहतरीन खिलाड़ियों में से एक सायना के खेल में वो पैनापन नजर नहीं आता था, लंबे मैचों में उनका स्टैमिना जवाब दे जाता था. वहीं दूसरी तरफ सिंधु, श्रीकांत, साईं प्रणीथ जैसे खिलाड़ियों की स्ट्रैंथ लगातार बढ़ रही थी. इसके पीछे जो सबसे मुख्य व्यक्ति है वो हैं इंडोनेशियन कोच मुल्यो हन्डोयो. मुल्यो इसी साल गोपीचंद की एकेडमी से जुड़े और उनके आते ही खिलाड़ियों का परफॉर्मेंस ग्राफ बहुत ऊपर गया.
ऐसे में सायना को जिस लेवल की ट्रेनिंग अपने करियर के इस पड़ाव पर चाहिए थी, वो उन्हें गोपीचंद की एकेडमी में ही मिल सकती थी. वहां प्रैक्टिस के लिए बेहतर खिलाड़ी हैं, साथ ही फिटनेस लेवल बढ़ाने के लिए कोच मुल्यो हन्डोयो तो हैं ही.
साथ ही जो दूसरा कारण समझ में आता है वो ये कि बात सिर्फ शारीरिक थकावट की ही नहीं थी, सायना शायद मानसिक रूप से भी थकी हुई थीं. ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं क्योंकि सायना के गोपीचंद के साथ ट्रेनिंग करने की घोषणा के बाद उनके पुराने कोच विमल कुमार ने एक इंग्लिश अखबार को दिए इंटरव्यू में ‘होम सिकनेस’ जैसी बात कही. दरअसल पिछले तीन साल से सायना अपने होमटाउन हैदराबाद से दूर बैंगलोर में प्रैक्टिस कर रही थीं. अपने परिवार और दोस्तों से दूर सायना का पूरा फोकस अपने खेल पर था लेकिन उनके पूर्व कोच के मुताबिक सायना को अक्सर अपने घर की याद आती थी. माता-पिता से दूर सायना को वो इमोशनल बैकअप और सहारा नहीं मिल पा रहा था. ऐसे में उन्होंने कोच विमल कुमार से दिल की बात कही और विमल कुमार ने उन्हें आगे बढ़ने का ग्रीन सिग्नल दिखाया.
सायना नेहवाल की शुरुआती प्रोफेशनल ट्रेनिंग पुलेला गोपीचंद एकेडमी में ही हुई. एकेडमी में रहते हुए ही उन्होंने 2004 और 2005 में जूनियर बैडमिंटन चैंपियनशिप जीती. साल 2006 में गोपीचंद ने सायना को सीरियस इंटरनेशनल ट्रेनिंग देनी शुरू की और उन्होंने एशियन सैटेलाइट बैडमिंटन टूर्नामेंट जैसे बड़ा खिताब अपने नाम किया.
उसके बाद 2008 बीजिंग ओलंपिक में सायना क्वार्टर फाइनल खेलने वाली पहली भारतीय महिला बनीं. 2009 में उन्होंने अपना पहला सुपर सीरीज टाइटल जीता. उसके बाद सायना ने मुड़कर नहीं देखा और गोपीचंद की कोचिंग में 5 और सुपर सीरीज टाइटल जीते, साथ ही 2012 लंदन ओलंपिक का ब्रॉन्ज मेडल तो कौन ही भूल सकता है.
इस वक्त भारत बैडमिंटन अपने स्वर्णिम युग से गुजर रहा है. लगातार नए खिलाड़ी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कमाल कर रहे हैं और भारत धीरे-धीरे इस खेल में चीन जैसा रुतबा कायम कर रहा है. इसमें कोई शक नहीं कि पिछले एक दशक में इस खेल को इस मुकाम तक पहुंचाने का सबसे ज्यादा श्रेय सायना को मिलना चाहिए.
बहुत मुमकिन है कि 2020 टोक्यो ओलंपिक सायना का आखिरी बड़ा चैलेंज होगा. देश के लिए ओलंपिक गोल्ड जीतना सायना का सपना है, ऐसे में ओलंपिक में ब्रॉन्ज(2012) और सिल्वर(2016) जीत चुके कोच पुलेला गोपीचंद भी टोक्यो में एक कदम आगे बढ़ना चाहेंगे. ऐसे में इस जोड़ी के पास तैयारी के लिए 3 साल हैं और इन तीन सालों में 27 वर्षीय सायना अपने करियर को नई ऊंचाई देना चाहती होंगी.
साथ ही सिंधु इस वक्त अपने करियर की सबसे अच्छी फॉर्म में हैं और कहावत है कि खरबूजे को देखकर ही खरबूजा रंग बदलता है. ये तीनों बैडमिंटन लेजेंड टोक्यो में पोडियम पर भारतीय झंडा सबसे ऊपर चाहते हैं और इनमें से किसी एक का भी सपना सच हुआ तो मजा आ जाएगा.
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