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1999-2007 की ऑस्ट्रेलियाई टीम ने हमें अहसास कराया था कि ‘अजेय’ का मतलब क्या होता है. उस दौरान ऑस्ट्रेलिया ने एक के बाद एक तीन बार वर्ल्डकप पर कब्जा किया, अपनी धरती और विदेश में दबदबा बनाए रखा, वो टीम कभी हार नहीं मानती थी और मुश्किल से मुश्किल हालात से भी मैच निकाल ले जाती थी.
रिकी पॉन्टिंग, एडम गिलक्रिस्ट और मैथ्यू हेडेन जिस आत्मविश्वास और आक्रामक अंदाज से खेलते थे, उसे देखकर मजा आ जाता था. ऑस्ट्रेलिया के पास तब ब्रेट ली और ग्लेन मैकग्रा जैसे गेंदबाज थे, जो बल्लेबाजों के पसीने छुड़ा सकते थे. शेन वॉर्न नाम का ‘जादूगर’ भी उस टीम का हिस्सा था, जो लेग ब्रेक और गुगली से दुनिया के बेहतरीन बल्लेबाजों को छका सकता था.
10 साल बाद क्रिकेट की दुनिया पूरी तरह से बदल गई है. ऑस्ट्रेलिया आज भी दुनिया की टॉप टीमों में शामिल है, लेकिन उसका पुराना जलवा खत्म हो चुका है. अभी टीम में जो खिलाड़ी हैं वो ऑस्ट्रेलिया के स्वर्णिम काल के खिलाड़ियों की बराबरी करने लायक नहीं हैं.
पिछले कुछ वर्षों में एक नई टीम ने 1999-2007 के ऑस्ट्रेलियाई टीम जैसी भूख और आक्रामकता दिखाई है. यह विराट कोहली की कैप्टनशिप वाली टीम इंडिया है. कोहली जब से कैप्टन बने हैं, तब से भारतीय टीम हर फॉर्मेट में मैच जीत रही है. कोहली में क्रिकेट को लेकर जो जुनून, एग्रेशन, पॉजिटिविटी और जीतने की भूख है, वह पहले किसी भारतीय कैप्टन में नहीं दिखी थी. इस मामले में सौरभ गांगुली अपवाद हो सकते हैं, लेकिन कोहली उनसे भी आगे हैं. पिछले कुछ साल में उनकी सोच ने भारतीय टीम पर काफी असर डाला है. टीम के दूसरे खिलाड़ी भी कोहली जैसी अप्रोच दिखा रहे हैं और मैदान पर पूरी टीम एक यूनिट की तरह दिखती है.
आज के भारतीय क्रिकेटरों को जो एक बात अलग करती है, वह उनका आत्मविश्वास है. ये लोग किसी भी विपक्षी टीम को अजेय नहीं मानते. अगर गेम उनके मुताबिक नहीं चल रहा है तो वे उससे निराश नहीं होते. वे लक्ष्य की तरफ बढ़ने की कोशिश करते रहते हैं. भारतीय खिलाड़ियों के नजरिये में आए इस बदलाव में इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) की भी भूमिका रही है. इस लीग की वजह से कम उम्र में ही उन्हें अंतरराष्ट्रीय एक्सपोजर मिल रहा है.
1999-2007 की ऑस्ट्रेलियाई टीम मैच खत्म होने तक हार नहीं मानती थी. उस टीम के पास आखिर तक अपने दम पर मैच पलटने वाले खिलाड़ी थे. आज की भारतीय टीम भी वैसी ही है. श्रीलंका के खिलाफ हाल में खत्म हुई सीरीज में एम एस धोनी और भुवनेश्वर कुमार ने 8वें विकेट में 100 रन की पार्टनरशिप करके जीत दिलाई. इस साल ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ होम टेस्ट सीरीज में पहला मैच 333 रनों से गंवाने के बाद भारतीय टीम ने सीरीज पर कब्जा किया था. पिछले कुछ वर्षों में भारतीय टीम ने मुश्किल हालात से मैच जीते हैं. 2016 में वर्ल्ड टी-20 में बांग्लादेश के खिलाफ भारतीय टीम ने 1 रन से जीत हासिल की थी, जो इसकी सबसे अच्छी मिसाल है.
10 साल पहले भारतीय टीम डिफेंसिव अप्रोच के साथ खेलती थी, जबकि आज वो एग्रेशन और पॉजिटिव सोच के साथ मैदान में उतरती है. सच तो यह है कि इस टीम से विपक्षी टीमें खौफ खाती हैं. इस टीम के अंदर एक के बाद एक मैच जीतने की भूख है.
1999-2007 की ऑस्ट्रेलियाई टीम की सबसे बड़ी खूबी बेंच स्ट्रेंथ थी. बेहतरीन खिलाड़ियों को टीम में जगह बनाने के लिए इंतजार करना पड़ता था. उनके लिए गलती की कोई गुंजाइश नहीं होती थी. एक बार फॉर्म खराब होने पर उन्हें कुछ साल तक टीम से बाहर जाना पड़ता था. भारतीय टीम के साथ अभी ऐसा ही है. कुलदीप यादव, अक्षर पटेल और युजवेंद्र चहल जैसे प्लेयर्स रविचंद्रन अश्विन और रवींद्र जडेजा को चुनौती दे रहे हैं. युवराज सिंह और अजिंक्य रहाणे जैसे सीनियर बल्लेबाजों को ऐसा ही चैलेंज केएल राहुल, केदार जाधव और मनीष पांडे की तरफ से मिल रहा है.
भारत ने यह साबित कर दिखाया है कि कोई भी टीम ऑस्ट्रेलिया की तरह विश्व विजयी बन सकती है, अगर वह कड़ी मेहनत करने को तैयार हो. इस टीम ने भारत में इंग्लैंड, साउथ अफ्रीका, श्रीलंका, न्यूजीलैंड और ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ टेस्ट सीरीज जीती है. अब उसे विदेश में अपनी काबिलियत साबित करनी है. आत्मविश्वास, जुनून, एग्रेशन और जीतने की भूख इस टीम को यहां तक लेकर आई है. वह दिन ज्यादा दूर नहीं, जब विदेश में भी यह टीम अपना दमखम साबित करेगी.
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