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EV यानी इलेक्ट्रिक वाहनों में आगजनी की घटनाएं आए दिन देखने को मिल रही हैं. हालिया मामला नासिक में देखने को मिला जहां पहली बार एक साथ इतनी तादात में ई स्कूटर जलकर खाक हो गए. ये इलेक्ट्रिक स्कूटर जितेंद्र ईवी नामक कंपनी के थे. प्राप्त जानकारी के मुताबिक ये घटना तब हुई जब महाराष्ट्र के नासिक स्थित जितेंद्र ईवी कंपनी की फैक्ट्री से स्कूटर ट्रांसपोर्ट किये जा रहे थे. ऐसा कहा जा रहा है कि देश में इतनी बड़ी संख्या में एक साथ ईवी में हुई आगजनी की यह सबसे बड़ी घटना है. वहीं पिछले महीने मार्च में चार दिनों में चार इलेक्ट्रिक स्कूटर में आग लगने की घटनाएं देखने को मिली थीं. जिस तरह तरह ओला इलेक्ट्रिक (Ola Electric), ओकिनावा ऑटोटेक (Okinawa Autotech) और प्योर ईवी (Pure EV) के इलेक्ट्रिक वाहनों में अचानक से आगजनी की घटनाएं हुई हैं उसे देखते हुए सबसे बड़ा सवाल EV यानी इलेक्ट्रिक वाहनों की सुरक्षा का उठता है इसके साथ ही जिस लीथियम-आयन बैटरी से ये चलते हैं उसके बारे में भी चिंता बढ़ रही हैं. आइए जानते हैं ईवी से जुड़े अहम सवाल और उसके जवाब...
ओला इलेक्ट्रिक Ola Electric, ओकिनावा ऑटोटेक Okinawa Autotech और प्योर ईवी Pure EV के इलेक्ट्रिक वाहनों में हुई आगजनी की घटनाओं को देखते हुए ये अहम सवाल लोगों के बीच उठ रहे हैं :-
लीथियम आयन बैटरियां आग क्यों पकड़ रही हैं?
क्या आगजनी की इन घटनाओं का भारती की गर्मी से कोई संबंध है?
क्या यह महज एक संयोग है या फिर वाकई में ग्राहकों को इस बारे में चिंतित होने की जरूरत है?
इस परिस्थितियों में यह इंडस्ट्री आगे क्या कर सकती है?
इन सवालों के जवाब पाने, इंटरनेट में ईवी के बारे में चल रहीं विभिन्न थ्योरियों और इलेक्ट्रिक स्कूटरों में हुई हलिया आगजनी की घटनाओं को लेकर ईवी बैटरी से जुड़े जानकार लोगों से हमने बात की जिसका निचोड़ कुछ इस तरह से रहा.
ज्यादातर ईवी कंपनियां अपने इलेक्ट्रिक वाहनों में लीथियम आयन बैटरी का उपयोग करती हैं. ये बैटरी रीचार्जेबल सेल्स (cells) से बनी होती हैं, जो बहुत जगह में काफी ज्यादा एनर्जी स्टोर करने में सक्षम होती हैं. इसी तरह की बैटरियों का इस्तेमाल लैपटॉप, फोन और अन्य गैजेट्स में किया जाता है.
लीथियम आयन बैटरी में आमतौर पर चार घटक होते हैं :
एक पॉजिटिव इलेक्ट्रोड (कैथोड) होता है जोकि निकिल और कोबाल्ट या एल्युमीनियम के साथ लीथियम का कंपोनेंट होता है.
एक नेगेटिव इलेक्ट्रोड (एनोड) होता है जो आमतौर पर कार्बन ग्रेफाइट या कभी-कभी सिलिकॉन का भी बना होता है.
एक सेपरेटर होता है जोकि छिद्रयुक्त पॉलिमर से बना होता है. यह सेपरेटर दोनों इलेक्ट्रोड्स के बीच अवरोधक का काम करता है.
एक इलेक्ट्रोलाइट्स होता है जोकि आम तौर पर अत्यंत ज्वलनशील लिक्विड होता है. इससे आयन इलक्ट्रोड्स के बीच इधर से उधर जाते हैं.
इन सेल्स (cells) को एक साथ असेंबल करके एक बैटरी में पैक किया जाता है. BMS यानी बैटरी मैनेजमेंट सिस्टम द्वारा इसको मॉनीटर किया जाता है और इसका मैनेजमेंट भी किया जाता है.
वे आगे कहते हैं कि 'किसी भी बैटरी को देखते समय सबसे बड़ा आधार सेफ बैटरी होना चाहिए. उसके बाद इन सभी फैक्टर्स और मापदंडों को आना चाहिए.'
लोहम क्लीनटेक के सीईओ रजत वर्मा के अनुसार 'लीथियम-आयन बैटरी अन्य ईंधनों की तरह ऊर्जा का एक घना स्रोत होती है और इसमें बाकी के ईंधनों की तरह ही आग लगने की क्षमता होती है.'
वे आगे कहते है कि इलेक्ट्रिक वाहनों में लीथियम आयन बैटरी की शुरूआत से पहले आईसीई यानी इंटरनल कंबस्शन इंजन्स में आग लगने की कई घटनाएं हुई हैं. ऊर्जा के किसी भी घने स्रोत के साथ, विभिन्न मामलों के परिणामस्वरूप "खतरनाक थर्मल घटनाएं" हो सकती हैं.
लीथियम-आयन बैटरी में मौजूद ज्वलनशील इलेक्ट्रोलाइट तेजी से आग पकड़ सकता है और यह एक 'थर्मल रनवे' का काम कर सकता है. थर्मल रनवे वह स्थिति होती है जिसमें एक्सोथर्मल प्रतिक्रिया (जो गर्मी छोड़ती है) होती है और इन प्रतिक्रियाओं की एक श्रृंखला बनती जाती है जिससे अचानक से तापमान में वृद्धि होने लगती है और जिसमें काबू नहीं पाया जा सकता है.
जहां तक वाहनों की बात है तो आंकड़ों के अनुसार इसमें तापमान बेकाबू होने का जोखिम और बढ़ा रहता है क्योंकि वाहनों की बैटरी अक्सर गंदगी, नमी और उतार-चढ़ाव वाले तापमान के संपर्क में आती है, जिससे यह खराब हो सकती है और अचानक से तापमान बढ़ा सकती है.
हालांकि वे कहते हैं कि बेहतर तरीके से बैटरी का प्रबंधन करके इन समस्याओं का समाधान किया जा सकता है.
रजत वर्मा कहते हैं इलेक्ट्रिक वाहनों की बैटरी में आग लगने के लिए चार अहम खामियां ये हो सकती हैं:
खराब क्वॉलिटी के सेल्स (Cells)
खराब तरीके की बैटरी पैक डिजाइन
बैटरी पैक के लिए जो प्रोडक्शन सेटअप लगाया गया है उसकी क्वॉलिटी में खामी
बैटरी पैक और वाहन के बीच खराब इंटीग्रेशन
अगर सेल (Cell) को बेहतर तरीके से डिजाइन नहीं किया गय है तो उसमें आग पकड़ने की आशंका कई गुना बढ़ जाती है. वे कहते हैं कि भारतीय उद्योग के समक्ष सबसे बड़ी समस्या यह है कि हमारे यहां चीन से बहुत ही घटिया क्वॉलिटी के सेल आयात किए गए हैं.
वर्मा कहते हैं कि बैटरी पैक निर्माताओं का प्रोडक्शन सेटअप, जोकि बैटरी बनाने के लिए लिथियम-आयन सेल (Cells) को एक साथ इकट्ठा करता है उसे निर्धारित स्टैंडर्ड्स तक कम से कम काम करना चाहिए. जोकि भारत में अक्सर देखने को नहीं मिलता है.
वे आगे कहते हैं कि 'आज के समय में कई कंपनियों ने बैटरी पैक मैन्युफैक्चरिंग का सेटअप तैयार कर लिया है क्योंकि यदि आपको सुरक्षा के सभी मुद्दों के बारे में विचार नहीं करना है तो इस तरह के सेटअप के लिए प्रारंभिक तौर पर ज्यादा निवेश की जरूरत नहीं होती है.'
हाल फिलहाल में जो घटनाएं हुई हैं वे पुणे और चेन्नई जैसी जगहों पर देखने को मिली हैं. इन जगहों पर तापमान इन दिनों काफी ऊपर है. ऐसे में कुछ तर्क यह भी दिए जा रहे हैं कि आगजनी की घटनाएं गर्मी की वजह से हुई हैं.
जबकि रजत वर्मा और वेंकट राजारमन दोनों ने ही आग के सटीक कारणों पर अनुमान लगाने से इनकार कर दिया, उन्होंने इस ओर इशारा किया कि गर्मी और इसका अनुचित प्रबंधन आग लगने का एक कारक हो सकते हैं.
वर्मा ने समझाते हुए बताया कि 'आपको अपने बैटरी पैक को उस तापमान के दो गुना के लिए डिजाइन करना होगा जो वाकई में आपके बैटरी पैक के अधीन होगा.'
उन्होंने कहा कि मजबूती से परीक्षण किए गए बैटरी पैक को भारत की सबसे भीषण गर्मियों को भी 'आसानी से हैंडल' करने के लिए सक्षम होना चाहिए.
राजारमन ने और विस्तार से बताते हुए कहा कि 'भारतीय मैन्युफैक्चर्स द्वारा 'लो एंड' इलेक्ट्रिक वाहनों में प्रयोग किए जाने वाले ज्यादातर बैटरी मैनेजमेंट सिस्टम (BMS) चीन से आयात किए जाते हैं.'
बैटरी मैनेजमेंट सिस्टम किसी भी बैटरी का मुख्य अंग होता है. यह बैटरी की मॉनीटरिंग करता है और उसके हिसाब से निर्णय लेता है जैसे कि बैटरी पैक को प्रोटेक्ट करें, उसकी लाइफ को कैसे बढ़ाएं और पैसेंजर की सुरक्षित यात्रा को कैसे सुनिश्चित करें.
सबसे अहम बात यह है कि ये सिस्टम सभी माहौल और गाड़ी के लिए एक जैसी सेटिंग पर काम ठीक नहीं होते हैं इन्हें वातावरण और गाड़ियों के हिसाब से सेट व ट्यून करना होता है.
सेल (Cells) और बीएमएस (BMS) के अलावा उन्होंने बैटरी रखने वाली जगह पर भी प्रकाश डाला. वे कहते हैं कि 'अगर किसी भी वातावरण का तापमान 40 डिग्री है लेकिन खराब डिजाइनिंग वजह से यह तापमान बढ़कर 65 से 70 डिग्री तक पहुंच सकता है.'
सभी के लिए एक जैसी ही लीथियम आयन बैटरी नहीं होती है. अलग-अलग तरह के केमिकल रिएक्शन का उपयोग अलग-अलग जगह के लिए एनर्जी स्टोरी की जाती है. इलेक्ट्रिक वाहनों में जिन दो प्रमुख बैटरियों को प्रयोग किया जाता है उसमें से एक है निकल, मैंगजीन और कोबाल्ट यानी कि NMC और दूसरी है लिथियम आयरन फॉस्फेट (LFP).
एनएमसी बैटरियों को उपयोग OLA और अन्य दो-पहिया वाहन निर्माताओं द्वारा किया जाता है. इस बैटरी में उच्च ऊर्जा घनत्व रहता है, जिसका मलतब यह है कि वाहन निर्माता बिना बैटरी का वजन बढ़ाए गाड़ी की रेंज को बढ़ा सकते हैं.
हालांकि टेस्ला जैसे कुछ वाहन निर्माता लीथियम आयरन फॉस्फेट (LFP) सेल की तरफ रुख कर रहे है क्योंकि ये एनएमसी सेल की तुलना में सस्ती और ज्यादा सुरक्षित मानी जाते हैं.
रजत वर्मा कहते हैं कि 'एलएफपी थोड़ा सुरक्षित है... क्योंकि एनएमसी जैसा विस्फोट एलएफपी में नहीं करती हैं. एलएफपी में गलती की गुंजाइश है. इन दोनों में ही काफी सघन केमिकल हैं ऐसे में सिर्फ इसलिए कि आपके पास एलएफपी पैक है तो इसका मतलब यह नहीं है कि आपके साथ थर्मल घटनाएं नहीं होंगी. हमें बिल्कुल भी यह नहीं सोचना चाहिए कि एलएफपी ले लिया तो सब ठीक है.'
राजारमन के अनुसार इस बात को लेकर इंडस्ट्री बंटी हुई है. हालांकि वे इस बात को स्वीकारते हैं कि एलएफपी सुरक्षित है और इसकी लाइफ साइकल बेहतर है जबकि एनएमसी में ऊर्जा घनत्व अधिक है.
राजारमन कहते हैं कि टेस्ला ने लाखों एनएमसी वाहन बेचे हैं. लेकिन हाल ही में उन्होंने एलएफपी की तरफ अपना रुख किया है. पिछले सात से दस वर्षों में एनएमसी ने अपनी योग्यता साबित की है.
वे आगे कहते हैं कि भारत की कंपनियां इन दोनों के अलावा अन्य केमिकल्स की ओर भी देख रही हैं. भारत में इस्तेमाल की जा सकने वाली केमिस्ट्री को ठीक करना सही काम नहीं है क्योंकि यह भविष्य की संभावनाओं को प्रभावित कर सकता है.
"आज के दौर में हमें खुद को एक केमेस्ट्री से नहीं बांधना चाहिए. एक अच्छी बैटरी प्रबंधन प्रणाली यानी बैटरी मैनेजमेंट सिस्टम (BMS) से इस समस्या का समाधान करना चाहिए."
ईवी में हुई हालिया आगजनी की घटनाओं पर बात करते हुए वर्मा कहते हैं कि 'इस तरह की घटनाओं को किसी एक स्तर की विसंगति या नियमों की अवहेलना' कह सकते हैं. लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि इस तरह की घटनाओं से लोग घुटने के बल आ जाएं.
'ICE वाहनों में आग लग रही है, लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि हमने उन वाहनों को खरीदना बंद कर दिया है. यह केवल इतना है कि उच्च गुणवत्ता वाले उत्पादों को ग्राहकों तक पहुंचाने की जिम्मेदारी उद्योग के लिए तेजी से महत्वपूर्ण हो गई है. ईवी मार्केट काफी मेच्योर है.'
वे कहते हैं कि 'इलेक्ट्रिक वाहनों में आगजनी की घटनाएं तो पूरी में दुनिया में देखने को मिलती हैं. भारत में जैसे-जैसे लिथियम आयन बैटरी के मार्केट में तेजी आएगी वैसे-वैसे कुछ न कुछ दुर्घटनाएं निश्चित तौर पर देखने को मिलेंगी.'
वे आगे कहते हैं कि 'इसे हम इस तरह से नहीं देख सकते कि जो हो रहा है वह सब ठीक है. निश्चित तौर पर इसके मायने यह हैं कि हमें अपने स्टैंडर्ड्स यानी मानको को ज्यादा ऊंचा व सख्त करने और ऑडिट को ज्यादा गहन बनाने की जरूरत है.'
उदाहरण के लिए 2016 में लोगों को अपने साथ फ्लाइट्स में सैमसंग गैलेक्सी नोट 7s के ले जाने में प्रतिबंध लगा दिया गया था. ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि इस मॉडल से आग लगने का खतरा था.
क्या कोई ऐसी वजह है कि लोगों ने लीथियम आयन बैटरी की वजह से स्मार्टफोन खरीदना बंद कर दिया? मुझे तो ऐसा नहीं लगता. 'मुझे लगता है कि इलेक्ट्रिक वाहन इंडस्ट्री भी इसी तरह के बदलाव के दौर से गुजर रही है.'
इसको समझने के लिए आंकड़े भी हैं.
2012 से 2020 के दौरान प्रत्येक 205 मिलियन मील की दूरी पर एक टेस्ला वाहन में आग लगी. वहीं सरकारी आंकड़ों के अनुसार इसकी तुलना में अमेरिका में हर 19 मिलियन मील पर एक वाहन में आग लगी थी.
तो क्या इसका मतलब यह है कि इलेक्ट्रिक वाहनों में आग लगने की संभावना कम होती है?
ऐसा बिल्कुल भी नहीं है. अभी इस बात का पता लगाने के लिए पर्याप्त डाटा नहीं है.
सैन एंटोनियो, टेक्सास में स्थित साउथवेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट के प्रिंसिपल इंजीनियर ने फोर्ब्स को बताया कि 'इलेक्ट्रिक वाहन और इसमें अचानक से लगने वाली आग के संबंध में किसी भी तरह का निष्कर्ष निकालना अभी भी जल्दबाजी होगी. मुझे नहीं लगता कि हमारे पास डेटा का सैंपल साइज या किसी तरह का रिपोर्टिंग स्ट्रक्चर है जो किसी भी बात को निश्चितता के साथ प्रस्तुत कर सके.'
हमें जो पता है वह यह कि ICE की तुलना में EV की आग अधिक गर्म होती है और इसे बुझाना काफी मुश्किल होता है.
भारत में ईवी के परिदृश्य पर बात करें तो हमारे यहां ईवी फायर के डाटा का अकाल है और यहां ईवी को लेकर तोड़-मरोड़ कर रिपोर्टिंग की जाती है. जिससे निश्चित तौर पर लोगों की धारणा प्रभावित होती हैं. हालांकि हम इस पर विश्वास कर सकते हैं कि समय के साथ ईवी निर्माता इन वाहनों में आग को रोकने के लिए बेहतर परिणाम लाएंगे.
रजत वर्मा का कहते हैं कि 'मेरा मानना है कि भारत में जो हुआ है वह यह है कि लॉन्च करने और नंबर एक बनने की होड़ में हमने शायद इस प्रक्रिया में बीच-बीच में कुछ चीजें छोड़ दीं या उन्हें दरकिनार कर दिया. यही बात हमें किसी भी और चीज से ज्यादा नुकसान पहुंचा रही है.'
वे कहते हैं कि उद्योगों को बाजार पर कब्जा करने के लिए बाहर जाने से पहले उन्हें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वे एक कदम पीछे आएं और क्वॉलिटी कंट्रोल में पर्याप्त समय दें.
उन्होंने "कई" उत्कृष्ट सर्टिफिकेशन/ टेस्टिंग एजेंसियों की कमी पर भी चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि 'इसमें बहुत कुछ सुधार करने की जरूरत है. हमें कुछ भी नया करने की जरूरत नहीं है क्योंकि सभी स्टैंडर्ड्स पहले से ही मौजूद हैं.'
इस समय देश में दो मुख्य एजेंसियां ऑटोमोटिव रिसर्च एसोसिएशन ऑफ इंडिया (ARAI) और इंटरनेशनल सेंटर फॉर ऑटोमोटिव टेक्नोलॉजी (ICAT) है जो जो भारत में ईवी सर्टिफिकेशन प्रदान करती हैं.
राजारमन ने एक और चुनौती पर ध्यान आकर्षित किया वह है लॉन्ग टर्म टेस्टिंग यानी दीर्घकालिक परीक्षण की कमी.
उन्होंने चीन से आयातित होने वाले निम्न क्वॉलिटी वाले सेल के आयात को रोकने के लिए एक स्टैंडर्ड तय करने पर भी जोर दिया.
उन्होंने कहा, 'कुछ समय पहले सोलर इंडस्ट्री में भी ऐसा ही हुआ था. खराब क्वॉलिटी वाले उत्पादों के आयातों की भरमार हो गई थी, जिसके बाद कड़े पासिंग मानदंड निर्धारित किए गए थे.'
इलेक्ट्रिक वाहनों में आग लगने की घटनाओं के बाद सरकार और इंडस्ट्री सेक्टर ने इसे गंभीरता से संज्ञान में लिया है.
रिपोर्ट्स में कहा गया है कि ओला और ओकिनावा की घटनाओं की जांच के लिए केंद्र सरकार स्वतंत्र विशेषज्ञों की एक टीम भेज रही है इसके साथ ही केंद्र एक सख्त ऑटोमेटिव इंडस्ट्री स्टैंडर्ड्स (AIS) की दिशा में कदम बढ़ा रहा है.
रजत वर्मा कहते हैं कि 'हमने पहले ही लोगों को तेजी से कठोर ऑडिटिंग प्रक्रियाओं को अपनाते हुए देखा है. पिछले कुछ हफ्तों में यह देखने को मिला है कि हर किसी ने इस ओर ध्यान दिया और इस पर बात अपनी बात कही. वहीं ओला की घटना के बाद से सर्टिफिकेशन एजेंसियां काफी सख्त हो गई हैं.'
(इनपुट्स : फोर्ब्स और सीएनबीसी-टीवी18)
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