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NASA ने जारी की तस्वीर, आग से धधक रहे हैं भारत के कई हिस्से

गर्मी के मौसम में ये आग तापमान को और बढ़ा रही है और इससे निकलने वाला ब्लैक कार्बन ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह बन रहा है.

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गर्मी के मौसम में ये आग तापमान को और बढ़ा रही है और इससे निकलने वाला ब्लैक कार्बन ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह बन रहा है.
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गर्मी के मौसम में ये आग तापमान को और बढ़ा रही है और इससे निकलने वाला ब्लैक कार्बन ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह बन रहा है.
(फोटो: altered by Quint Hindi) 

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इन दिनों अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा की ओर से खींची गई भारत की कुछ तस्वीरें चर्चा का विषय बनी हुई हैं. नासा की बीते कुछ दिनों की सैटेलाइट फोटो में दिख रहे लाल निशानों के मुताबिक भारत के कई बड़े हिस्सों में आग जैसी लगी दिख रही है.

तस्वीरों को देखने से साफ पता चलता है कि उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ समेत दक्षिण के कई राज्यों में ये आग लगी हुई है. गर्मी के मौसम में ये आग तापमान को और बढ़ा रही हैं और इससे निकलने वाला ब्लैक कार्बन प्रदूषण की वजह बन रही है. ब्लैक कार्बन ग्लोबल वॉर्मिंग को बढ़ाने के लिए जिम्मेदार प्रमुख वजहों में से एक है.

नासा की तस्वीर में दिख रहे ये लाल निशान आग की वजह से बने हैं(फोटो:NASA)

जंगल की आग या पराली की आग?

कुछ मौसम वैज्ञानिकों का कहना है कि यह लाल निशान तपती गर्मी की वजह से जंगलों में अपने आप लगने वाली आग की वजह से भी हो सकते हैं. लेकिन नासा के गॉडडार्ड स्पेस फ्लाइट सेंटर स्थित रिसर्च साइंटिस्ट हिरेन जेठवा का इस बारे में कुछ और ही मानना है. उनका कहना है कि भारत में आग के ऐसे निशान दिखने की वजह जंगलों की आग नहीं, क्योंकि जब वहां आग लगती है तो बेकाबू होती है जिसकी वजह से ज्यादा धुआं और धुन्ध पैदा होती है. ये आग काटी गई फसलों के अवशेष और उनकी पराली जलाए जाने की वजह से है.

कुछ कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक ठंड के दिनों में भी पंजाब और हरियाणा में इस तरह के निशान दिखाई दिए थे, जिस वजह से दिल्ली में स्मॉग की गंभीर स्थिति बनी थी. दिल्ली में लोगों को सांस तक लेने में दिक्कत आई थी. इस पर एनजीटी ने पड़ोसी राज्यों को पराली जलाने से मना किया था.  
धान और गेहूं की पराली को जलाने का प्रचलन है  (फाइल फोटो: PTI)
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फसलों के अवशेष जलाने का चलन बढ़ा

कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि फसलों के अवशेष जलाने का प्रचलन इसलिए बढ़ रहा है, क्योंकि अब किसान फसलों की कटाई हाथ की बजाय मशीन से करने लगे हैं. लेबर की कमी के चलते मशीनों से फसल काटने का ट्रेंड तेजी से बढ़ा है. इसके लिए ज्यादातर किसान अब 'कंबाइन हार्वेस्टर' नाम की मशीन पर निर्भर रहते हैं, क्योंकि यह कटाई का तेज और सस्ता तरीका है.

इस मशीन से फसल की कटाई करने पर फसलों के अवशेष खेतों में ही रह जाते हैं. इसे हटाना आसान नहीं होता है और किसान इन्हें जला देना आसान समझते हैं. फसलों के अवशेष को जलाने का ये प्रचलन अब पंजाब और हरियाणा तक ही सीमित नहीं रह गया है, बल्कि कई राज्यों तक फैल चुका है.

धान और गेहूं की पराली को पहले से ही किसान खेतों में जलाते रहे हैं क्योंकि यह पशुओं के लिए चारे के तौर पर अच्छा विकल्प नहीं माना जाता. लेकिन, अब गेहूं की फसल के अवशेष जलाने का प्रचलन भी जोर पकड़ रहा है.   

बता दें कि सैटेलाइट से ली गई नासा की तस्वीरों में जिन राज्यों में आग लगने के निशान नजर आ रहे हैं, वे गेहूं और धान की खेती के लिए जाने जाते हैं. सबसे ज्यादा लाल निशान मध्य प्रदेश में देखे गए हैं. देश में होने वाले कुल कार्बन उत्सर्जन में 14 फीसदी हिस्सा फसलों के अवशेष जलाए जाने से पैदा होता है.

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