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14 दिसंबर को साल का दूसरा और आखिरी सूर्य ग्रहण (Solar Eclipse) है. इस साल 21 जून को पहला सूर्य ग्रहण लगा था. ये सूर्यग्रहण भारत के समय के हिसाब से शाम करीब 7 बजे शुरू होगा और रात करीब साढ़े 12 बजे तक रहेगा. ऐसे में भारत में इसे नहीं देखा जा सकेगा. इसे दुनिया के दूसरे हिस्सों में देखा जा सकेगा.
ये तो हो गई इस बार के सूर्यग्रहण (Surya Grahan 2020) की बात लेकिन देश और दुनिया में सूर्यग्रहण को धर्म-कर्म और विज्ञान दोनों नजरियों से देखा जा सकता है.
भारत में सूर्यग्रहण को लेकर कई तरह की मान्यताएं हैं. सूर्य भगवान को मानने वाले इस देश में सूर्यग्रहण के दिन पूजा, दान-दक्षिणा और स्नान की मान्यताएं हैं. सूर्यग्रहण को धर्म-कर्म से जो़ड़कर देखने वाले लोग राशियों पर इसके ‘असर’ को बेहद गंभीरता से लेते हैं, और ज्योतिषियों से इस घटना का प्रभाव जानने के लिए भी जाते हैं.
दूसरा नजरिया साइंटिफिक है. दुनियाभर के वैज्ञानिक सूर्यग्रहण के मौके पर तरह-तरह के एक्सपेरिमेंट करते हैं. पिछले कई सूर्यग्रहण से वैज्ञानिक ये जानने की कोशिश कर रहे हैं कि सूर्यग्रहण किस तरह आसपास के वायुमंडल को बदलता है.
साल 1868: हीलियम तत्व (Element) के बारे में तो आप जानते ही होंगे, साल 1868 में हुए एक सूर्यग्रहण के दौरान हीलियम की जानकारी दुनिया को हासिल हुई. खास बात ये है कि धरती पर हीलियम का भंडार है, लेकिन ये बात हमें साल 1895 तक नहीं पता था.
साल 1919: पढ़ाई के दौरान आपका भी पाला आइंस्टीन की थ्योरी ऑफ रिलेटिविटी (सापेक्षता का सिद्धांत) से पड़ा होगा, इस सिद्धांत के मुताबिक ग्रेविटी यानी गुरुत्वाकर्षण, प्रकाश को तिरछा (Bend) कर सकता है.
सूर्यग्रहण के दौरान प्रकाश और तापमान में अचानक अंतर से कुछ जानवरों के व्यवहार में बदलाव दिखने लगता है. झिंगुर, उल्लु, और कुछ पक्षी इस दौरान चहलकदमी करने लगते हैं मछलियों और पालतू जानवरों में भी कई तरह के परिवर्तन दिखते हैं.
जब सूर्य और पृथ्वी के बीच चंद्रमा आ जाता है तो सूर्य का कुछ भाग चंद्रमा के कारण दिखाई नहीं देता है. इस स्थिति को सूर्यग्रहण कहते हैं. जब सूर्य पूरी तरह से चंद्रमा के पीछे जा छुपता है तो उसे पूर्ण सूर्यग्रहण कहते हैं. वहीं कुछ भाग छिप जाता है तो उसे आंशिक सूर्यग्रहण कहते हैं.
लेकिन ये सब पहले नहीं पता था.
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