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हाल ही में दुनियाभर में हुए साइबर हमले ने इस तरह के दूसरे बड़े खतरों के लिए तैयार रहने की सबक दी है. साइबर विशेषज्ञों का मानना है कि देश की साइबर सुरक्षा पर समय रहते ध्यान नहीं दिया गया, तो सरकार के ‘डिजिटल इंडिया' और ‘कैशलेस इकॉनमी' जैसे अभियानों के भविष्य पर रैनसमवेयर ‘वानाक्राई' की तरह साइबर हमले का खतरा बना रहेगा.
साइबर कानून और सुरक्षा विशेषज्ञ पवन दुग्गल का इस बारे में कहना है,
उन्होंने कहा कि देश में साइबर सुरक्षा से जुड़े कानून ही नहीं हैं. अभी तक आईटी कानून-2013 को भी अमल में नहीं लाया गया. भारत सरकार को जल्द ही दुनिया के दूसरेदेशों के साथ मिलकर साइबर सुरक्षा से जुड़े कानून का मसौदा तैयार करना चाहिए.
उन्होंने बताया कि दुनिया के 150 देशों में कंप्यूटर सिस्टम पर हमला करने वाले वायरस रैनसमवेयर वानाक्राई के कारण दुनिया भर के करीब दो लाख और देश के करीब 48,000 से ज्यादा कंप्यूटर और उनसे जुड़ा कामकाज प्रभावित हुआ है.
दुग्गल ने कहा, ‘‘अभी भी देश की 70 फीसदी से ज्यादा एटीएम मशीनें विंडो आपरेटिंग सिस्टम पर चल रही हैं. साइबर हमलावरों के लिये विंडो आधारित सिस्टम को हैक करना बहुत आसान है.''
बता दें कि कि रैनसमवेयर वानाक्राई के कारण बीते सप्ताह के दौरान देशभर के कई इलाके में करीब दो लाख एटीएम को सुरक्षा के लिहाज से बंद करना पड़ा था. हालांकि देश की किसी भी बड़ी कंपनी या बैंक ने अभी तक अपना कामकाज रूक जाने की रिपोर्ट नहीं दी है.
पवन दुग्गल ने कहा, ‘‘हमारे देश में साइबर हमले के बारे में रिपोर्ट करने का रिवाज ही नहीं है. सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के बैंक समेत ज्यादातर कारोबारी और वित्तीय इंस्टीट्यूशन अपने यहां हुए साइबर हमले की रिपोर्ट नहीं करते हैं, जबकि आईटी कानून-2013 के तहत बैंकों और कंपनियों को अपने यहां हुए किसी भी साइबर हमले की रिपोर्ट करना अनिवार्य है.''
दुग्गल ने बताया कि इससे उनकी बाजार साख प्रभावित होने या फिर हमलावरों का उनके कंप्यूटर पर सुरक्षित सभी आंकड़े नष्ट करने का खतरा रहता है, इसलिए वो इस प्रकार की रिपोर्ट करने से बचते दिखाई देते हैं. दूसरी बात ये कि उन्हें मालूम है कि रिपोर्ट करने के बाद भी कोई तकनीक या कानून हमलावरों को नहीं पकड पाएगा तो ऐसी स्थिति में वह हमलावरों को भुगतान करके अपनी साख और कारोबार बचाने के जुगाड़ में रहते हैं.
साइबर सुरक्षा विशेषज्ञ मुकेश चौधरी ने कहा-
उन्होंने बताया कि हमारे देश में इस प्रकार के साइबर अटैक को रिपार्ट करने का ट्रेंड नहीं है, क्योंकि इसके बारे में लोगों को बहुत कम पता है. वो आमतौर पर इस प्रकार के वायरस हमले के प्रभाव का आकलन करने में असमर्थ रहते हैं.
चौधरी ने बताया कि हालांकि भारत सरकार साइबर हमलों को लेकर बहुत काम कर रही है, लेकिन इसके बावजूद लोगों में साइबर सुरक्षा को लेकर बहुत लापरवाही रहती है. उन्हें जागरुक किए जाने की जरुरत है.
उन्होंने कहा कि साइबर सुरक्षा के बगैर ‘डिजिटल इंडिया' और ‘कैशलेस इकॉनमी' जैसे अभियान निजी जानकारियों के लिहाज से बहुत खतरनाक हैं.
चौधरी ने बताया कि सबसे पहले अमेरिकी संस्था नेशनल सिक्योरिटी एजेंसी (NSA) ने वानाक्राई के बग की पहचान की थी. वानाक्राई रैंसमवेयर के कारण ब्रिटेन की स्वास्थ्य प्रणाली और फ्रांसिसी कार कंपनी रैनो का कामकाज भयानक तरीके से प्रभावित हुआ है.
तिरूपति बालाजी मंदिर के कार्यकारी अधिकारी अनिल कुमार सिंघल ने भी बुधवार को मंदिर के कंप्यूटर हैक होने की घोषणा की थी, जिसके बाद हमले से बए हुये मंदिर के बाकी 20 कंप्यूटरों पर कामकाज बंद कर दिया गया.
साइबर सुरक्षा कंपनी क्विक-हील टेक्नॉलजी की ओर से किए गए रिसर्च के मुताबिक ‘वानाक्राई' के कारण देश के करीब 48 हजार कंप्यूटरों को निशाना बनाया गया है.
इसमें पश्चिम बंगाल के कंप्यूटर सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैं. पिछले साल भी भारतीय कंपनियों और बैंकों पर कम से कम तीन रैंसवमेयर हमले हुए थे. पहला हमला ‘लुसिफर' अटैक के तौर पर हुआ था, जिसके कारण बैंकों और दवा कंपनियों के कंप्यूटर लॉक हो गये थे. बताया जाता है कि कुछ बैंकों और कंपनियों ने अपने कंप्यूटर अनलॉक करने के लिए हमलावरों को ‘बिटकॉइन' में भुगतान भी किया था.
साल 2017 की जनवरी में भी भारतीय कंपनियों पर ‘लजारस' नामक रैनसमवेयर हमला हुआ था, जिसके बाद बैंकों ने अपने ग्राहकों को एटीएम कार्ड का पासवर्ड बदलने का निर्देश जारी किया था.
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