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मुकेश अंबानी ने रिलायंस जियो पर 31 दिसंबर तक फ्री कॉल सर्विस देकर स्मार्टफोन यूजर्स का दिल जीत लिया है. लेकिन कॉल्स कनेक्ट न होने पर स्मार्टफोन यूजर्स सोशल मीडिया पर अपना गुस्सा भी उतार रहे हैं.
रिलायंस जियो लाने वाले मुकेश अंबानी ने भी 5 करोड़ कॉल ड्रॉप्स होने की बात कही है. ये कहकर उन्होंने एयरटेल, वोडाफोन जैसी अन्य कंपनियां पर आरोप लगाया है कि ये कंपनियां जियो की कॉल को इंटरकनेक्टर नहीं दे रही हैं जिससे कॉल ड्रॉप हो रही है.
टेलिकॉम कंपनियों ने इस मामले में प्रधानमंत्री कार्यालय में शिकायत करके कहा है कि वे इंटरकनेक्टर्स देने के लिए बाध्य नहीं हैं.
‘इंटरकनेक्टर’ एक ऐसा शब्द है जिससे रिलायंस और अन्य टेलिकॉम कंपनियों के बीच शुरु हुई इस जंग को समझा जा सकता है.
भारत में इस समय दो तरह के टेलिकॉम नेटवर्क हैं - सर्किट स्विच्ड नेटवर्क और पैकेट स्विच्ड नेटवर्क. देश की ज्यादातर कंपनियां सर्किट स्विच्ड नेटवर्क पर काम करती हैं. इनमें एयरटेल और वोडाफोन जैसी कंपनियां शामिल हैं. इस नेटवर्क में आपके कॉल करते ही आपकी आवाज फिजिकल सर्किट्स से होते हुए कॉल रिसीव करने वाले व्यक्ति के फोन में जाती है.
वहीं, पैकेट स्विच्ड नेटवर्क एक आईपी बेस्ड नेटवर्क होता है जिसमें आपकी आवाज डाटा के फॉर्मेट में कई पैकेट्स में बंटकर अलग-अलग नेटवर्क पर ट्रेवल करती हुई रिसिवर तक पहुंचती है. रिलायंस जियो इसी नेटवर्क पर काम कर रही है.
अब यहीं पर इंटरकनेक्टर का रोल आता है. समान नेटवर्क पर भी कॉल कनेक्ट करने के लिए कंपनियां एक-दूसरे को इंटरकनेक्टर देती हैं. इसके लिए कंपनियां इंटरकनेक्शन फीस भी चार्ज करती हैं जो 14 पैसे पर मिनट है. अब मानिए कि आप वोडाफोन यूजर हैं और एयरटेल यूजर को कॉल कर रहे हैं तो आपकी कंपनियां इंटरकनेक्शन की मदद से इस कॉल को संभव बना पाएंगी.
लेकिन जियो पर कॉल फ्री होने के चलते इतनी ज्यादा कॉल आ रही हैं कि कंपनियां इंटरकनेक्टर देने को राजी नहीं हैं. इसीलिए कंपनियों ने तर्क दिया है कि ये उनके लिए आर्थिक रूप से संभव नहीं है.
टेलिकॉम रेगुलेटरी अथॉरिटी ऑफ इंडिया बीते काफी समय से कंपनियों से आईपी बेस्ड पैकेट स्विच्ड नेटवर्क पर आने को कह रही है. इसके साथ ही इंटरकनेक्शन फीस को भी खत्म करने को कह रही है. ऐसे में अगर ऐसा होता है तो पहले तो अन्य कंपनियों को अपना नेटवर्क बदलना होगा. इसके बाद इंटरकनेक्शन फीस के रूप में मिलने वाले 14 पैसे पर मिनट से भी कंपनियों को हाथ धोना पड़ेगा और कंपनियां इसके लिए तैयार नहीं हैं.
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