Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Tech and auto  Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Tech talk  Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019SARAHAH ऐप: ‘ईमानदारी’ दिखाने चांस या साइबर बुलिंग का जरिया?

SARAHAH ऐप: ‘ईमानदारी’ दिखाने चांस या साइबर बुलिंग का जरिया?

अगर किसी को ट्रोल करना हो, उसको गालियां देनी हो, तो सराहा ये प्लेटफॉर्म मुहैया करा रहा है.

समीक्षा खरे
टेक टॉक
Published:


सराहा एक अरबी शब्द है जिसका मतलब होता है ‘ईमानदारी’.
i
सराहा एक अरबी शब्द है जिसका मतलब होता है ‘ईमानदारी’.
(फोटो: द क्विंट)

advertisement

अगर इंटरनेट पर एक्टिव रहते हैं, तो आपने सराहा ऐप के बारे में अब तक जरूर जान लिया होगा. हरे बैकग्राउंड पर तैरते सफेद लिफाफों वाला ऐप सोशल मीडिया यूजर्स का नया खिलौना बन गया है. इस ऐप के जरिए आप अपने प्रोफाइल से लिंक किसी भी शख्स को मैसेज भेज सकते हैं. लेकिन सबसे मजेदार यह है कि मैसेज पाने वाले को यह पता नहीं चलेगा कि ये मैसेज किसने भेजा है.

जाहिर है, इसका जवाब भी नहीं दिया जा सकता. यही कारण है कि ये ऐप लोगों के बीच बहुत तेजी से लोकप्रिय होता जा रहा है.

जुलाई में एपल स्टोर के 30 देशों के चार्ट में टाॅप पर रहा. फरवरी में लॉन्च होने के बाद से अब तक इस ऐप के 100 करोड़ पेज व्यूज और 30 करोड़ यूजर्स हो गए हैं.

(GIF Courtesy: Giphy.com)

कई एक्सपर्ट के मुताबिक, जिस तरह से सोशल मीडिया यूजर्स लाइक की संख्या के आधार पर अपने आत्मसम्मान मापते हैं. इसमें हैरानी नहीं है कि इस ऑनलाइन बेनामी 'फीडबैक फाॅर्म' ने इंटरनेट पर कैसे कब्जा किया है. इससे पहले कुछ इसी तरह के वर्जन्स, Ask.fm और फॉर्मसमिंग पहले से ही एक खराब मिसाल दे चुके हैं.

कई लोग सराहा को कैजुअल फन की तरह देख रहे हैं. आसपास को लोगों को देखते हुए इसे यूज कर रहे हैं. पर कई लोगों के लिए ये साइबर बुलिंग का जरिया बन गया है. अगर किसी को ट्रोल करना हो, उसको गालियां देनी हो, तो सराहा ये प्लेटफॉर्म मुहैया करा रहा है.

कोई यह नहीं समझ पा रहा है कि वो सराहा पर आने वाले इन मैसेज से किस तरह निपटेगा. नफरत और धमकी को कैसे संभालेगा, विशेष रूप से बच्चे और किशोर. कई लोग इससे जूझ रहे हैं और चिंता से निपट नहीं पा रहे हैं.

‘आ बैल मुझे मार’

ये बिल्कुल सड़क से गुजरते किसी भी इंसान को खुद पर कुछ भी कमेंट करने का न्योता दिए जाने जैसा है.

साइकोलाॅजिस्ट प्रियंका मित्तल कहती हैं कि ऐसे ऐप सड़क पर खड़े होकर हर यात्री को खुद पर कमेंट करने के लिए कहने से भी बदतर है. यह ‘फीडबैक’ उपयोगी कैसे है, चाहे वो पाॅजिटिव हो या निगेटिव?

बुलिंग के अलावा, यह ऐप अनहेल्दी काॅम्पटिशन की भावनाओं को उत्तेजित करता है. लोकप्रिय होने का दबाव भी लाता है. जैसे- क्या मेरे पास मेरे दोस्तों की तुलना में अधिक मैसेज हैं? क्या मेरे पास किसी और से ज्यादा पाॅजिटिव मैसेज हैं? टीनेजर्स एक ऐसे दौर में हैं, जहां वे हमेशा ऐसे मैसेज की तलाश में रहते हैं, इसलिए वे इन ऐप का इस्‍तेमाल करने के लिए अधिक उत्सुक रहते हैं.

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT
(GIF Courtesy: Giphy.com)
मुख्य रूप से वैसे लोग, जिन्हें अपने पर्सनल स्पेस, घर या स्कूल में कुछ खास पहचान नहीं मिल पाती वो इन बाहरी चीजों में अधिक दिलचस्पी दिखा रहे हैं. यह काफी हानिकारक है, चाहे वह पाॅजिटिव या निगेटिव हो. ये पहले से ही कमजोर बच्चे के आत्मसम्मान में निगेटिविटी बढ़ा सकता है. अगर एक पाॅजिटिव कमेंट मिलता है, तो ये सही है, लेकिन ये जरूरत से ज्यादा आत्मसम्मान को बढ़ा देगा. यह किसी भी तरह से स्वस्थ नहीं है.
डाॅ. प्रियंका मित्तल, साइकोलाॅजिस्ट

डॉ. मित्तल कहती हैं कि इस 'फीडबैक' में से अधिकांश आपके सोशल मीडिया पर बनाई गई प्रोफाइल पर बेस्ड होते हैं. अगर आप वैलिड फीडबैक की मांग कर रहे हैं, तो यह ऐप बेकार है क्योंकि एक तो वैसे लोग जो आपको जानते नहीं हैं, वो आपको फीडबैक दे रहे हैं. दूसरा, मिल रहे अधिकांश 'फीडबैक' सतही हो सकते हैं.

डॉ. मित्तल का मानना है कि इन ऐप का मॉडरेटर होना चाहिए, क्योंकि पूरी तरह से अज्ञात होने के कारण ये हानिकारक साबित हो सकता है. डॉ. मित्तल कहते हैं, "टीनेजर्स के लिए, कुछ लिमिट बनानी जरूरी है. उन्हें यह बताना चाहिए कि आप इस जगह पर किसी को शर्मिंदा नहीं कर सकेंगे या दुर्भावनापूर्ण कमेंट नहीं कर सकते."

ऐप के बढ़ते दुरुपयोग पर मेकर्स ने ऐप का बचाव किया है और कहा है कि उनके पास सभी सुरक्षा उपाय हैं.

ऐप को बनाने वाले सऊदी अरब के 29 वर्षीय जैन अल-आबीदीन तौफीक कहते हैं, “दुरुपयोग सभी सोशल नेटवर्क के लिए एक चुनौती है. हमने बहुत सारे उपाय किए हैं, लेकिन मैं ब्‍योरा नहीं देना चाहता क्योंकि मैं मिसयूज करने वालों का काम आसान नहीं करना चाहता.“

सराहा की लोकप्रियता के बाद कई ऐसे वेबसाइट बने, जो दावा करते हैं कि वो मैसेज भेजने वालों कि पहचान बता सकते हैं. लेकिन ये सभी झूठी साबित हुई और ऐप के फाउंडर ने उन्हें खारिज कर दिया.

हालांकि, तौफीक ने कहा है कि वैसे मामले जो हाथ से निकल जाए, जिनमें पहचान की जरूरत पड़ जाए, उन मामलों में पहचान का पता चल सकता है. लेकिन इन मामलों को पहचानने का फैसला किस आधार पर करेंगे, इस बारे में वो विस्तार से नहीं बता पाए.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: undefined

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT