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जितनी ऊंची छोड़ सकते हो, छोड़ते रहो. सोशल मीडिया में, जाहिर तौर पर इस तकिया कलाम को बहुत पसंद किया जाता है. खास झुकाव वाली राजनीतिक सोच, उपभोक्ताओं को प्रभावित करना, या बस यूं ही जनता के एक हिस्से को ट्रोल करना, फेक न्यूज आइटम कई उद्देश्यों को हासिल करने के लिए बनाए जाते हैं.
ये हर कहीं हैं, और ये भी मुमकिन है आप भी इनमें से किसी का शिकार बन चुके हों. वेब की दुनिया के लोकतांत्रिक स्वरूप और खुलेपन ने इंटरनेट तक हर किसी की पहुंच बना दी. इस पर नाममात्र की सेंसरशिप के साथ कंटेंट साझा किया जा रहा है, हालांकि इसके कुछ अपवाद भी हैं.
आकलन बताते हैं कि 13.60 करोड़ भारतीय सोशल मीडिया पर सक्रिय हैं. स्वतंत्र अध्ययन में पाया गया है कि 60 फीसद से अधिक भारतीय पत्रकार सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल खबरों के स्रोत के तौर पर करते हैं.
सोशल मीडिया सभी के लिए सूचना हासिल करने और साझा करने की पसंदीदा जगह बन चुका है. आभाषी नागरिकों के इसी विशाल संसार के नेटवर्क का इस्तेमाल फेक न्यूज के लिए भी किया गया और दुष्प्रचार से दर्शकों को भ्रमित किया गया.
पोस्ट ट्रुथ (तर्क और तथ्यों के बजाय भावनात्मक अपीलों से कोई बात स्थापित करना) के इस दौर में सच को झूठ से कैसे अलग किया जा सकता है? सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म भी "वैकल्पिक तथ्य" को हटाकर बाहर कर देने और वेबसाइटों पर भरोसा बहाल करने के लिए कुछ उपाय कर रहे हैं. आइए इन पर बारी-बारी से नजर डालते हैं.
भारत में 16.6 करोड़ लोग फेसबुक का इस्तेमाल करते हैं, जो कि रूस, श्रीलंका और न्यूजीलैंड की कुल आबादी से अधिक है. यह एक हकीकत है, लेकिन फेसबुक पर हर चीज ग्रहण करने के योग्य नहीं है.
हालांकि आभाषी संसार में लोगों का 'सामाजिक' होना अच्छी बात हो सकती है, लेकिन यही बात चिंता का विषय भी हो सकती है कि क्या आप अपने घर को चिड़ियाघर बनाने जा रहे हैं?
और यह भी कि अगर निगरानी नहीं रखी गई तो हालात बेकाबू हो सकते हैं. आखिरकार, हर कोई सिर्फ बिल्ली वाला वीडियो तो पोस्ट नहीं कर रहा है.
फेसबुक शायद फेक न्यूज की समस्या को समझता है, कि इसके कारण इस प्लेटफॉर्म की विश्वसनीयता खतरे में है. इसने उन पेजेज की पहचान की है जो फेक न्यूज पोस्ट करते हैं और ये स्रोत न्यूज फीड में कम दिखाई देंगे.
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ने फेक न्यूज का फैलाव रोकने के लिए कई उपाय लागू किए हैं. जो लोग नहीं जानते, उन्हें बता दें कि फेसबुक ने फेक न्यूज की पहचान के लिए एक फ्लैगिंगटूल भी शुरू किया है.
फेसबुक खुद को फेकबुक बनने से बचने के लिए क्या कर रहा है -
अप्रैल, 2017 में फेसबुक ने ऐलान किया था कि न्यूज और झूठी सूचनाओं पर रोक लगाने के लिए यह स्वतंत्र जांचकर्ताओं को भुगतान करने की योजना बना रहा है.
यह प्रस्ताव सच जांचने के काम- संसाधनों से संपन्न काम- को आर्थिक रूप से कम बोझिल बनाएगा और इस तरह यह एक आकर्षक रास्ता बन जाएगा
क्या सुबह-सुबह आपकी नींद रिश्तेदारों की व्हाट्सऐप पर खीज पैदा करने वाली 'गुड मॉर्निंग' की बाढ़ से खुलती है? दुखद है! लेकिन इस इंस्टैंट मैसेजिंग प्लेटफॉर्म का यही सबसे डरावना हिस्सा नहीं है.
भारत में हर महीने 20 करोड़ लोग व्हाट्सऐप को सक्रिय रूप से इस्तेमाल कर रहे हैं. व्हाट्सऐप ने इन सभी को मुफ्त और अनलिमिटेड मल्टीमीडिया मैसेजिंग सेवा बांट रखी है.
इनमें से कुछ तो ये खीज पैदा करने वाले 'गुड मॉर्निंग' मैसेज भेज कर ही सब्र कर लेते हैं, जबकि ऐसे भी लोग हैं जो 'झूठ और गलतबयानियों के घालमेल' को फैलाने में जुटे रहते हैं.
वह चाहे 2000 रुपये के नए नोट में जीपीएस चिप हो या 'बाहुबली के प्रभास द्वारा शहीदों को 121 करोड़ दान करने का दावा', व्हाट्सऐप पर ऐसी कहानियां घूमती रहती हैं और फिर मुख्यधारा में जगह पा जाती हैं.
एक सीमित दायरे में जहां आपके कॉन्टैक्ट लिस्ट से कोई आपको मैसेज फारवर्ड करता है, तो आमतौर पर वह आपके भरोसे का शख्स होता है, इसलिए आप उसके द्वारा व्हाट्सऐप पर फारवर्ड किए गए मैसेज पर यकीन कर लेते हैं.
इस प्लेटफॉर्म पर फेक न्यूज़ को पकड़ने का कोई उपाय नहीं होने के कारण यह सब आगे बढ़ता रहता है. हालांकि व्हाट्सऐप पर भी फेसबुक का ही स्वामित्व है, लेकिन फेसबुक ने इस प्लेटफॉर्म पर फेक न्यूज का पता लगाने के लिए कोई उपाय करने के बारे में स्पष्ट रूप से कुछ नहीं कहा है.
आप ज्यादा से ज़्यादा व्हाट्सऐप को यूजर या मैसेज के बारे में रिपोर्ट कर सकते हैं. इसके लिए 'सेटिंग्स' का बटन दबाकर, 'हेल्प' पर जाकर, 'कॉन्टैक्ट अस' पर जाना होता है.
अपने स्कूल के समय में आपने ऐसा कोई टीचर नहीं देखा होगा, जिसने खुद स्टूडेंट्स को सजा न देकर, 'मॉनीटर' को ऐसा करने के लिए कहा हो. इससे टीचर किसी नकारात्मक प्रतिक्रिया से बचे रहते थे, और स्टूडेंट अधिक चौकन्ने रहते थे. गूगल क्लासरूम, जो कि इंटरनेट है, का वह क्लास टीचर है.
गूगल का आकलन है कि इस साल, भारत में इंटरनेट इस्तेमाल करने वालों का आंकड़ा 50 करोड़ को पार कर जाएगा. इंटरनेट सर्च का पर्याय बन चुके गूगल के ही इसका सिरमौर बने रहने की आशा है. गूगल का सर्च इंजन की-वर्ड्स के आधार पर इंटरनेट पर आटोमेटेड अलगोरिद्म से लाखों-लाख पेज खंगालने के बाद नतीजे सामने रख देता है.
यह प्रक्रिया कम से कम 3.5 अरब सर्च रोजाना के हिसाब से दोहराई जाती है, जिसमें बार-बार मेरा यह सवाल भी शामिल होता है कि- 'यूएसबी किस साइड से फिट होगा, इसका पता कैसे लगाएं.' इन सर्चेज को सुरक्षित रखना सच में बहुत मुश्किल काम है.
साल 2016 में गूगल ने अपने ऐ़सेन्स एडवर्टाइजिंग नेटवर्क से 200 पब्लिशर्स को स्थायी रूप से प्रतिबंधित किया, जो यूज़र से धोखाधड़ी की कोशिश कर रहे थे.
2.3 करोड़ यूजर के साथ ट्विटर भारतीयों के बीच ट्रेंडिंग टॉपिक तय करने का प्लेटफॉर्म है. नए जमाने में यह नामी हस्तियों से रूबरू होने, खराब कंज्मयूर सर्विस की शिकायत करने और यूं ही किसी को ट्रोल करने का अड्डा है.
यह ऐसी जगह भी है जहां कोई नागरिक विदेश मंत्री से खराब फ्रिज की शिकायत कर सकता है. जी हां! यह इतना ही आसान है. अभी तक, तो इस माइक्रो ब्लॉगिंग साइट के पास फेक न्यूज पर नियंत्रण के नाम पर सिर्फ ट्वीट की लंबाई सीमित करने की पॉलिसी है.
अगर आप ढेर सारे फेक न्यूज हैंडलर में से किसी की फेक न्यूज पकड़ लेते हैं, तो ट्विटर से इस पीस की शिकायत कर सकते हैं. कंटेंट के 'अरुचिकर' होने की शिकायत पर ट्विटर इसकी समीक्षा करने के बाद इसे टाइमलाइन से हटा देगा.
वेब स्पेस को स्वच्छ करने के लिए सोशल मीडिया का यह दादा छोटे बच्चों जैसे कदम उठा रहा है, वह भी उस दौर में जबकि नेट से जुड़ी पीढ़ी ज्यादा परिपक्व हो गई है. तो, सतर्क रहें कि आप क्या पढ़ रहे हैं और क्या शेयर कर रहे हैं. स्वच्छ डिजिटल इंडिया के लिए कसम उठाएं और एक सोशल पोस्ट करें.
(ये लेख द क्विंट और बीबीसी हिंदी की साझा पहल 'स्वच्छ डिजिटल इंडिया' का हिस्सा है. इसी मुद्दे पर बीबीसी पर यही लेख यहां पढ़िए)
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