advertisement
लक्ष्मी एन मेनन सेन फ्रांसिस्को की एक आर्ट गैलरी में आर्टिस्ट थीं और पेपर क्राफ्ट की विशेषज्ञ थीं. यहीं पर उन्हें पेपर पेन के बारे में पता चला. वो कहती हैं, “उस वक्त ये एक काल्पनिक उत्पाद जैसा था- एक विलासिता से भरा उत्पाद.”
भारत आने पर लक्ष्मी यहां होने वाले प्लास्टिक के अत्याधिक इस्तेमाल और उससे बनने वाले कचरे से हैरान थीं. वो इसमें मदद करना चाहती थीं लेकिन समझ नहीं पा रही थीं कि वो कैसे मदद करें. इसी दौरान वो एक अनाथालय में बच्चों को आर्ट और क्राफ्ट पढ़ा रही थीं जहां उन्हें अपने छात्रों के लिए हर बार इससे जुड़ा एक नया आईडिया सोचना होता था.
ऐसे ही एक दिन उन्होंने छात्रों को पेन पर कागज लपेटने को कहा. बच्चों ने भी इस काम को बहुत अच्छे से पूरा किया.
ये उनके लिए ‘दिमाग की बत्ती जलाओ’ पल की तरह था. लक्ष्मी ने सोचा कि क्यों न ऐसे पेन बनाकर उन्हें ‘उत्पाद’ की तरह बेचा जाए. बस यहीं से एक यात्रा की शुरुआत हुई जिसने रोलापेन्स को जन्म दिया.
रोलापेन एक खास तरह की कलम है जिसकी बॉडी इस्तेमाल किए हुए कागज से बनी होती है. ये एक प्रयास है लोगों के जीवन में प्लास्टिक के इस्तेमाल को कम करने का.
अब आप सोच रहे होंगे कि आखिर इस पेन में ऐसा क्या खास है?
इसकी खास बात है इस पेन के अंत में लगा एक बीज जिसे अगर आप मिट्टी में रोप दें तो वो एक पेड़ बन सकता है. जी हां, एक पेड़.
और इसकी कीमत केवल 12 रुपये है.
जब पेन के डिजाइन को लेकर लक्ष्मी परेशान थीं तभी उन्हें पेन में बीज लगाने का आईडिया आया. उन्होंने एक बेहतर पेन तो बना लिया था लेकिन वो उसके लिए कोई कैप नहीं डिजाइन कर पा रही थीं. उसकी वजह ये थी कि कागज से बने होने की वजह से हर पेन की बनावट में थोड़ा बहुत अंतर आ रहा था. ऐसे में पेन की गुणवत्ता के बराबर और पर्यावरण के अनुकूल कैप बनाने में काफी मुश्किल हो रही थी.
प्योर लिविंग संस्था की संस्थापक लक्ष्मी ने इस पेन के जरिए लोगों में ज्ञान का प्रचार करने की भी कोशिश की. लेकिन उन्होंने इस बात को गौर किया कि पेन के 20 प्रतिशत कैप कचरे में जाते हैं. ऐसे में उन्होंने ये सोचना शुरू किया कि आखिर वो अपनी कलम के लिए किस तरह का कैप चुनें जो पर्यावरण के भी अनुकूल हो.
इसी दौरान केरल में आॅर्गेनिक लिविंग के एक कैम्पेन में उन्हें बीज का इस्तेमाल करने का विचार आया. शुरुआत में उन्होंने पालक के बीज का इस्तेमाल किया. लेकिन कुछ और रिसर्च करने के बाद उन्होंने पाया कि अगस्तय पेड़ का बीज भी काफी छोटा होता है और उसका इस्तेमाल भी बतौर बीज किया जा सकता है.
इस पेन में एक लीफलेट भी दिया जाता है जो इस पेन के साथ मौजूद बीज की खूबियों के बारे में बताता है. आयुर्वेद में अगस्तय पेड़ के पत्तों और फूल का बहुत महत्व है. इसे रोपने के तीन दिनों में ही ये बीज अंकुरित हो जाता है.
लक्ष्मी ने इस बात की भी कोशिश की है कि ये पेन पर्यावरण की सुरक्षा के साथ और भी काम करे. उन्होंने इन कलम को ‘विस्डम पेन’ नाम दिया है. इसके पीछे वजह ये है कि पेन की बॉडी पर मशहूर हस्तियों के कोट्स लिखे होते हैं.
लक्ष्मी के अनुसार वैसे भी पेन में इस जगह का कोई इस्तेमाल नहीं होता, ऐसे में ये इस काम आ जाते हैं.
लक्ष्मी की टीम अनाथालयों की लड़कियों से पेन पर डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम के मशहूर कोट्स लिखवाती है. टीम के अनुसार उनकी तरफ से ये डॉ. कलाम को श्रद्धांजलि देने का तरीका है. वहीं इन पेन को बेचकर जो पैसा आता है वो इन लड़कियों की पढ़ाई पर खर्च किया जाता है. लक्ष्मी के अनुसार ये सीखने की दो तरफा प्रक्रिया होती है. वो कहती हैं,
क्षेत्रीय भाषाओं को भी बढ़ावा देने के लिए इन पेन पर अलग-अलग भाषाओं के अक्षर लिखे होते हैं. इन्हें राज्य के हिसाब से बदला जा सकता है.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)