advertisement
एप्पल के सह-संस्थापक स्टीव जॉब्स ने अप्रैल 2010 में जब आईपैड लॉन्च किया था, तब उन्होंने इसके एक-डेढ़ घंटे के इस्तेमाल के फायदों को गिनाया था, पर खुद अपने बच्चों को इससे दूर रखा था. इसकी वजह यह थी कि वह 'डिजिटल खतरों' से वाकिफ थे.
यह खुलासा एक नई किताब 'इररेजिस्टिबल : वाई वी कान्ट स्टॉप चेकिंग, स्क्रॉलिंग, क्लिकिंग एंड वाचिंग' में किया गया है, जिसे न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी के स्टर्न स्कूल ऑफ बिजनेस में मार्केटिंग के एसोसिएट प्रोफेसर एडम अल्टर ने लिखा है,
अल्टर के मुताबिक इतिहास में अब तक इंसान जिन लतों का शिकार होता रहा है, उनमें आज डिजिटल व्यसन के लिए पर्यावरण और परिस्थितियां बेहद अनुकूल हैं. 1960 के दशक सिगरेट, शराब और मादक पदार्थों के लत लगने की चुनौती थी, जो बेहद खर्चीली और आम तौर पर पहुंच के बाहर थी. साल 2010 के दशक में भी लत की ऐसी ही परिस्थितियां फेसबुक, इंस्टाग्राफ, पोर्न साइट्स, ईमेल, ऑनलाइन शॉपिंग के रूप में हमारे समक्ष आईं, जिसकी सूची बहुत लंबी है. इतनी लंबी जितनी आज तक के इनसानी समाज में कभी देखने को नहीं मिली.
अल्टर ने एक एप के डेवेलपर से जुटाए आंकड़ों के आधार पर बताया है कि अधिकांश लोग नींद से जगे रहने के दौरान स्मार्टफोन पर अपने समय का लगभग एक चौथाई हिस्सा बिताते हैं. यह एक सप्ताह में करीब 100 घंटे या पूरे जीवनकाल के संदर्भ में देखा जाए तो औसतन '11 साल' होता है.
उन्होंने अपनी पुस्तक में माइक्रोसॉफ्ट कनाडा द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण का भी जिक्र किया, जिसके अनुसार 46 प्रतिशत लोगों ने कहा कि वे स्मार्टफोन के बगैर नहीं रह सकते. अल्टर हालांकि मानते हैं कि प्रौद्योगिकी को छोड़ा नहीं जा सकता और न ही ऑनलाइन होने से बचा जा सकता है, लेकिन उनका कहना है कि मानवीय सोच, कल्पना, व्यवहार और भावनाओं को प्रभावित करने वाले इन डिजिटल उपकरणों का इस्तेमाल 'संयमित तरीके से बेहतर उद्देश्य' के लिए किया जाना चाहिए.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)