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"लेडीज एंड जेंटलमैन, अपनी सीट की पेटी बांध लें. फ्लाइट अब कुछ ही पलों में टेक ऑफ करने वाली है. अपनी सेफ्टी के लिए सभी इलेक्ट्रॉनिक गैजेट और मोबाइल बंद कर लें." फ्लाइट में बैठते ही मोबाइल बंद करने के एयर होस्टेस के आदेश को अब बाय-बाय कहने का टाइम आ गया है.
क्योंकि अब आप जमीन से हजारों फीट ऊंचाई पर आसमान में भी इंटरनेट इस्तेमाल कर पाएंगे.
टेलिकॉम कमीशन ने हवाई यात्रा के दौरान डेटा कनेक्टिविटी की सुविधा को हरी झंडी दिखा दी है. अगले तीन-चार महीनों के दौरान भारतीय एयरस्पेस में उड़ने वाले फ्लाइट में इस सुविधा के बहाल होने की उम्मीद है.
नागरिक उड्डयन मंत्री सुरेश प्रभु ने टेलिकॉम कमीशन के फैसले की घोषणा करते हुए कहा,
जैसे ही ये खबर मिली कि हजारों फीट ऊंचाई पर इंटरनेट इस्तेमाल कर सकते हैं तो मन में सवाल उठता है कि इन-फ्लाइट वाई-फाई काम कैसे करेगा? इसके दो तरीके हैं. पहला – air to ground (ATG) और दूसरा सैटेलाइट.
ये सिस्टम ठीक जमीन पर मौजूद मोबाइल टावर से निकलने वाले सिग्नल की तरह काम करता है. मतलब जमीन पर मौजूद मोबाइल ब्रॉडबैंड टावर से मोबाइल में सिग्नल जाता है, जिसके बाद हमें इंटरनेट सर्विस मिलती है. ठीक उसी तरह मोबाइल ब्रॉडबैंड टावर से सिग्नल एयरक्राफ्ट के एंटीना से कनेक्ट होगा. एंटीना फ्लाइट के बाहरी निचले हिस्से पर लगा होगा. प्लेन टेक ऑफ करते ही नजदीकी टावर से सिग्नल लेगा. ताकि आसानी से इंटरनेट मिल सके.
लेकिन अब सवाल उठता है कि जमीन पर भी कई जगहों पर नेटवर्क नहीं होता है. साथ ही समुद्र और पहाड़ी इलाकों में भी नेटवर्क मौजूद नहीं होगा. ऐसे में इंटरनेट पाने का दूसरा रास्ता बचता है सैटेलाइट.
कई देशों का अपना सैटेलाइट स्पेस में मौजूद है. यही सैटेलाइट, रिसीवर और ट्रांसमीटर के जरिए धरती से सिग्नल लेता और देता है. आसान शब्दों में कहें तो ये वही सैटेलाइट है जिसके जरिए मौसम का हाल या टीवी का सिग्नल, बड़े देशों में मिल्ट्री ऑपरेशन अंजाम दिए जाते हैं.
जबतक एयरलाइन्स और टेलिकॉम कंपनियों के बीच समझौते नहीं हो जाते, तब तक वाई फाई के लिए कितना पैसा चुकाना होगा ये कह पाना मुश्किल है. लेकिन माना जा रहा है कि उड़ान के दौरान कॉल और इंटरनेट खासा महंगा पड़ेगा.
ट्राई की सिफारिश के मुताबिक, टेरेस्टेरियल नेटवर्कों से तालमेल बिठाने के लिए कुछ पाबंदियों के साथ उड़ान में फोन और इंटरनेट सेवा को अनुमति दी जाएगी. इन-फ्लाइट कनेक्टिविटी को प्रमोट करने के लिए सर्विस प्रोवाइडर्स से लाइसेंस के तौर पर सालाना एक रुपया फीस लिए जाने की योजना है. हालांकि सरकार ऑपरेटरों की ओर से वसूले जाने वाले शुल्क का मैकेनिज्म तय करने में दखल नहीं देगी.
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