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साल 2019 के दौरान दुनिया में सबसे ज्यादा बार इंटरनेट भारत में बंद किया गया. देश में इंटरनेट पाबंदी पर नजर रखने वाले इंटरनेट शटडाउन ट्रैकर के मुताबिक 2019 में भारत ने 95 बार इंटरनेट पर पाबंदी लगाई. इंटरनेट बंद होने से लोगों की जिंदगी तो थमती ही है, इकनॉमी पर भी इसका बेहद बुरा असर पड़ता है. आप ये जानकर चौंक जाएंगे कि सिर्फ एक घंटा इंटरनेट बंद होने से कितने करोड़ का नुकसान होता है.
ऑनलाइन ट्रेडिंग, कारोबार का पसंदीदा माध्यम बनता जा रहा है. स्टाटिस्टा की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2019 में दुनिया भर में लगभग 25 से 26 % लोगों ने सामान खरीदने के लिए ऑनलाइन शॉपिंग का सहारा लिया. अनुमान है कि 2040 तक पूरी शॉपिंग में ऑनलाइन शॉपिंग की हिस्सेदारी बढ़ कर 95 फीसदी हो जाएगी.
विश्व का सबसे बड़ा ई-कॉमर्स मार्केट चीन का है. 2022 तक भारत दुनिया का सबसे बड़ा ई-कॉमर्स मार्केट बन सकता है. ऐसे में अगर एक घंटे के लिए नेट बंद कर दिया जाता है तो दुनिया को हजारों करोड़ का नुकसान उठाना पड़ता है.
ई-रिटेल से भारत 2020 तक 6350 करोड़ डॉलर का रेवेन्यू कमा सकता है. वेबसाइट की संख्या के मामले में भारत दुनिया में 17वें नंबर पर हैं. पहले नंबर पर अमेरिका और दूसरे नंबर पर जापान है. मिनिस्ट्री ऑफ IT के मुताबिक भारत में कुल कुल 5000 सरकारी रजिस्टर्ड वेबसाइट्स हैं.
'बिजनेस टुडे' के एक रिपोर्ट के मुताबिक 2019 में भारत को इंटरनेट बंद करने से 1.3 बिलियन डॉलर यानी कि 9297 करोड़ रुपये नुकसान हुआ . इस त रह से इंटरनेट शटडाउन के कारण नुकसान उठाने वाला तीसरा बड़ा देश बन गया भारत. पूरी दुनिया की बात करें तो 2015 की तुलना में 2019 में इंटरनेट शटडाउन के कारण दुनिया को 235 प्रतिशत ज्यादा नुकसान हुआ. 2015 में ये नुकसान जहां सिर्फ 17 हजार करोड़ वहीं 2019 आते-आते ये घाटा 57 हजार करोड़ हो गया.
‘इंटरनेट रिसर्च फर्म टॉप 10 VPN’ की रिपोर्ट 'द ग्लोबल कॉस्ट ऑफ इंटरनेट शटडाउन इन 2019' में ये कहा गया है, 45 करोड़ इंटरनेट यूजर्स वाले देश भारत में किसी भी दूसरे देश की तुलना में सबसे ज्यादा बार इंटरनेट को बंद किया है. पिछले साल 21 देशों में 18,000 घंटे से अधिक समय के लिए कुल 122 बार इंटरनेट शटडाउन किया गया . 2015 से लेकर अब तक यहां 353 बार इंटरनेट बंद किया जा चुका है.
इंटरनेट शटडाउन का एक पहलू आर्थिक है, लेकिन इसे मानवाधिकार के नजरिए से भी देखा जाना चाहिए. कश्मीर में इंटरनेट बैन के दौरान ये बात सामने आई कि लोग अस्पताल में इलाज नहीं करा पा रहे, सरकारी सुविधाओं नहीं ले पा रहे हैं. और अब तो अदालतों ने भी कह दिया है कि इंटरनेट पर बैन दरअसल संविधान की मूल भावना के खिलाफ है.
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