advertisement
डावोस में चल रहे वर्ल्ड इकनॉमिक फोरम समिट में फेक न्यूज पर चर्चा की गई. सोशल मीडिया के इस दौर में फेक न्यूज को WEF पैनल ने बड़ी चुनौती बताया. फेसबुक, ट्विटर जैसे प्लेटफॉर्म आने के बाद खबरों को शेयर करने और कंज्यूम करने के अंदाज में तेजी से बदलाव आया है. ऐसे में यूजर्स के लिए सबसे बड़ी समस्या ये पता लगाना बन गया है कि कौन सी खबर सच्ची है और कौन सी झूठी. समिट में फेक न्यूज के राजनीति पर असर पर भी बातचीत की गई.
जो भी खबर आप ऑनलाइन पढ़ रहे हो, सबसे पहले देखें कि उसे पब्लिश किसने किया है. क्या वो कोई जाना माना पब्लिशर है? पब्लिशर ने कॉन्टेक्ट की जानकारी दी है या नहीं?
फेक न्यूज लिखने वाले अक्सर हेडलाइन को कुछ आश्चर्यजनक या ऊटपटांग बना देते हैं. ऐसे में उस खबर को पढ़कर देखना चाहिए कि आपको 'वेबकूफ' तो नहीं बनाया जा रहा है.
अगर खबर में किसी की बाइलाइन दी हुई है तो उस लेखक के बारे में पता करने की कोशिश करें. क्या वो भरोसेमंद है? ये पता करें कि कहीं वो महज फर्जी नाम तो नहीं है.
स्टोरी में अगर कोई लिंक दिया गया है तो चेक करें कि क्या जिस तर्क के समर्थन में वो सोर्स दिया गया है वो सही है?
कभी-कभी पुरानी स्टोरी को भी नई घटना से जोड़कर पोस्ट कर दिया जाता है. ऐसे में स्टोरी पब्लिश होने की तारीख देख लेना चाहिए.
कभी कभार व्यंग्य इस अंदाज में लिख दिया जाता है कि खबर और व्यंग्य के बीच का अंतर ही खत्म हो जाता है. ऐसे में जांच लेना चाहिए कि कहीं ये व्यंग्य तो नहीं है.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)
Published: undefined