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आर्थिक आरक्षण या सिर्फ राजनीति? रोहतक वाले तो बड़े गुस्से में हैं

आर्थिक रूप से कमजोर तबके के लिए 10 फीसदी आरक्षण अब कानून बन गया है. लेकिन इस पर बहस जारी है.

अस्मिता नंदी
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आर्थिक आरक्षण या सिर्फ राजनीति? क्या है रोहतक के युवाओं की राय?
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आर्थिक आरक्षण या सिर्फ राजनीति? क्या है रोहतक के युवाओं की राय?
(फोटो: क्विंट हिंदी)

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  • वीडियो प्रोड्यूसर: अनुभव मिश्रा
  • वीडियो एडिटर: पुर्णेंदू प्रीतम

आर्थिक रूप से कमजोर तबके के लिए 10 फीसदी आरक्षण अब कानून बन गया है. लेकिन इस पर बहस जारी है. क्विंट अपनी खास सीरीज में अलग-अलग शहरों के युवाओं से इस मुद्दे पर राय जानने में जुटा है. ऐसे में क्विंट रोहतक के महर्षि दयानंद यूनिवर्सिटी पहुंचा. यूनिवर्सिटी के ज्यादातर छात्र इसे राजनीतिक कदम बताते हैं और ये भी कहते हैं कि इससे कुछ खास फायदा नहीं होने जा रहा है. MDU में पोस्ट ग्रेजुएशन कर रहे संदीप कहते हैं कि ये जो आर्थिक रिजर्वेशन है, ये चुनाव के समय पर दिया गया है. मतलब, इसे सिर्फ वोट बैंक के लिए किया गया है.

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मैं इस रिजर्वेशन के खिलाफ हूं क्योंकि देश का विकास आरक्षण में नहीं है. अब चुनाव का समय है. मोदी सरकार को दिख रहा है कि वो हर राज्य में हार रही है. इसलिए उन्होंने ये किया, उन्हें जनरल कैटेगरी का साथ चाहिए. उसका वोट चाहिए, चुनाव का एजेंडा है और कुछ नहीं.
राहुल गोयत, पीएचडी स्टूडेंट, लॉ

वहीं लॉ के छात्र राहुल गोयत इसे सरकार का साहसी फैसला बताते हैं. कहते हैं कि इसे कई दशक पहले कर देना चाहिए था.

इसे कई दशक पहले कर देना चाहिए था लेकिन सरकार ने इसे अभी करने का साहस किया. इसका हम स्वागत करते हैं आने वाले समय में समाज में इसके काफी सकारात्मक प्रभाव देखने को मिलेंगे. इसको ऐसे जोड़ कर देखना कि चुनाव है या नहीं है ये एक नकारात्मक सोच को लेकर चलना है. ये गलत है कि इसे चुनाव की नजर से देखा जाए. ये देखिए कि उन्होंने कितना बड़ा कदम उठाया है जो 70 साल से सरकार थी वो नहीं उठा पाए ये कदम.
राहुल गोयत, पीएचडी स्टूडेंट, लॉ

लेकिन नौकरी कहां है?

इंद्रजीत सरकार के उन वादों के ऊपर सवाल उठा रहे हैं, जो सरकार बनने से पहले किए गए थे. CMIE के आंकड़ों का हवाला देते हुए इंद्रजीत कहते हैं,

2 करोड़ जॉब्स हर साल देने का वादा किया था अभी जो CMII की रिपोर्ट जनवरी में आई है. उसके हिसाब से 1 करोड़ 10 लाख नौकरियां कम हुईं है और अगर भर्तियों की बात की जाए तो यूपी में चपरासी की 62 वेकेंसी निकली थी. उसमें 93 हजार लोगों ने अप्लाई किया था, जिसमें 5,400 PhD थे अगर वहां 100% किसी एक कास्ट को मिल जाता तो 62 को तो नौकरी मिलती ना बाकी लोगों का क्या होता? ये सोचने वाली बात है. उसके बाद 2017 में MDU में चपरासी की नौकरी निकली थी , 92 वैकेंसी थी उसके लिए 19 हजार लोगों ने अप्लाई किया था. अभी RPF की भर्तियां निकली थी 10 हजार वैकेंसी के लिए 95 लाख लोगों ने अप्लाई किया था, तो सरकार रोजगार के लिए कुछ कर नहीं रही है.
इंद्रजीत, स्टूडेंट

क्विंट की इस चौपाल से कुछ नतीजा तो नहीं निकाल सकते, लेकिन युवाओं की बड़ी आबादी को लगता है कि आर्थिक आरक्षण का ये कदम सिर्फ और सिर्फ राजनीति साधने के लिए लाया गया है.

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Published: 21 Jan 2019,03:54 PM IST

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