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मुंबई: ‘10% आरक्षण को लागू करने के तरीके में ही सबसे बड़ी खामी’
आर्थिक रूप से कमजोर सामान्य वर्ग के लोगों को 10% आरक्षण देने पर युवा क्या सोचते हैं?
रौनक कुकड़े
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10% आरक्षण को लागू करने के तरीके में ही सबसे बड़ी खामी
(फोटो: क्विंट हिंदी)
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वीडियो एडिटर: संदीप सुमन
आर्थिक रूप से कमजोर सामान्य वर्ग के लोगों को 10% आरक्षण देने पर युवा क्या सोचते हैं? क्विंट की टीम अपनी खास सीरीज में कई शहरों के युवाओं से इस मुद्दे पर बात कर रही है. ऐसे में मुंबई में भी हमने कुछ युवाओं से बात की. इनमें से ज्यादातर UPSC परीक्षाओं की तैयारी करते हैं. छात्रों का मानना है कि ये पॉलिटिकल स्टंट है, जिसे चुनाव में फायदे के लिए लागू किया गया है.
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'इस आरक्षण की प्रक्रिया ही गलत है'
इनमें से एक छात्र कहते हैं कि जल्दबाजी में संविधान में संशोधन किया गया है. वो भी संसद के सत्र के आखिरी दो दिनों में, पूरी प्रक्रिया ही गलत है.
सेशन से पहले रिमाइंडर देना चाहिए था और पूरे देश में बातचीत होनी चाहिए थी. जो हुआ है उसका किसी ने विरोध नहीं किया और वो पास हो गया लोकसभा में भी और राज्य सभा में भी.
छात्र, मुंबई
एक छात्र कहते हैं कि ये रिजर्वेशन पंडोरा बॉक्स के खुलने जैसा है. जिसके कारण 50% के कैप के दायरे को आगे भी बढ़ाया जाएगा.
इंदिरा साहनी केस में नरसिम्हा राव गवर्नमेंट में पहले ये 10 परसेंट देने कि बात हो गई थी फिर भी सुप्रीम कोर्ट ने 27 % ओबीसी रिजर्वेशन को मंजूर किया और इस 10 फीसदी को स्क्रैप किया. वो 50 % का कैप इसलिए लगाया है जिससे कि वो इलेक्शन स्टंट नहीं बन सके, अगर सेंट्रल गवर्नमेंट ही इस 50 % कैप को पार कर जाती है तो अब स्टेट गवर्नमेंट में महाराष्ट्र में मराठों का रिजर्वेशन है, जाटों का रिजर्वेशन है, हरियाणा में, गुजरात में पटेलों का रिजर्वेशन है. रिजर्वेशन पंडोरा बॉक्स के खुलने जैसा और वो सभी लोग अपना-अपना केप बढ़ने के लिए सेंटर पर दबाव बनाएंगे.
छात्र, मुंबई
चौपाल में शामिल हुए एक छात्र कहते हैं कि आरक्षण किसी गरीबी हटाओ प्रोग्राम के लिए नहीं लाया गया था. वो कहते हैं कि संविधान इकनॉमिक आधार पर किसी भी तरह के रिजर्वेशन का समर्थन नहीं करता है.
अगर आप देखेंगे कि इसकी जरूरत क्यों लगती है तो हजारों सालों से समाज का एक हिस्सा जिसे किसी भी तरह के जातिगत भेदभाव की वजह से विकास की मुख्य धारा से हटा दिया गया था. उन लोगों को समाज के विकास की मुख्य धारा में वापस लाने का एक प्रयास का नाम है रिजर्वेशन. इसका कहीं पर भी इकनॉमिक बैकग्राउंड से लेना देना नहीं है.
10 फीसदी आरक्षण पर इन युवाओं के कई सवाल हैं, जिनके जवाब इन्हें नहीं मिल पा रहे और आखिर में आरक्षण पर इनके चेहरे पर 'क्वेश्चन मार्क' ही दिख रहा है.