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16 दिसंबर: निर्भया के 7साल बाद कितनी बदली सोच,क्विंट की खास पड़ताल
क्विंट ने दिल्ली की सड़कों पर बसें दौड़ाने वाले कई ड्राइवरों और कंडक्टरों से बातचीत की, क्या मिला यहां देखिए
अभय कुमार सिंह
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कितना बदलाव आया है लोगों के सोच में?
फोटो: Reuters
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ठीक 7 साल पहले 'निर्भया' गैंगरेप और मर्डर केस ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था. देशभर में विरोध प्रदर्शन हुए, कई लोगों ने दोषियों को फांसी की सजा देने के लिए धरने भी दिए. 'निर्भया' को गुजरे 7 साल हो चुके हैं. लेकिन हमारे मन में ऐसे सवाल अब भी मौजूद हैं-
7 साल बाद दिल्ली कितनी सुरक्षित हुई है?
दिल्ली में रहने वाली महिलाएं खुद को कितना महफूज मानती हैं?
प्राइवेट बस के ड्राइवरों और कंडक्टरों की सोच में कितना बदलाव आया है?
इन सारे सवालों का जवाब ढूंढने के लिए हमने पड़ताल शुरू की. रात में दिल्ली की सड़कों पर बसें दौड़ाने वाले ड्राइवरों और कंडक्टरों से बातचीत की. हमने इस पड़ताल की शुरुआत दिल्ली के मुनीरका बस स्टैंड से की. ये वही बस स्टैंड है जहां से निर्भया अपने दोस्त के साथ बस में सवार हुई थी.
कुछ रातों तक कई प्राइवेट बसों को चलाने वाले लोगों से बातचीत में हमें ऐसा लगा कि अब भी हालात में ज्यादा बदलाव नहीं है. आज भी वो लोग उसी सोच से ग्रसित हैं, जिसके मुताबिक, महिलाओं को रात में सड़क पर नहीं निकलना चाहिए. कपड़ा पहनते वक्त उन्हें कई बार सोचना चाहिए कि लोग क्या कहेंगे. हालांकि, 1-2 ड्राइवर ऐसे भी मिले जिनका मानना है कि ‘आधी आबादी’ को उनकी सोच के लिए आजादी मिलनी चाहिए.
क्या-क्या सोचते हैं कुछ ड्राइवर?
हमारी पड़ताल में कुछ ड्राइवरों ने हमसे कुछ ऐसी बातें कहीं-
जो लड़कियां रात में निकलती हैं, वो गलत हैं, तभी बाहर निकलती हैं
कितने कम कपड़े पहनकर निकलती हैं लड़कियां, हमारी भी बहन-बेटियां हैं.
कपड़े-पहनावे से हमें पता लग जाता है कि कौन सी लड़की कैसी है.
ऐसी ही कई बातों से उनकी सोच हम तक पहुंची. वीडियो में देखिए, 5 साल में इन लोगों की सोच के बाद आधी आबादी कितनी सुरक्षित है.
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