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क्या अहमदाबाद अपना ‘हेरिटेज सिटी’ का खिताब गंवाने के मुहाने पर खड़ा है? ये सवाल बड़ा है और इसे उतनी ही गंभीरता से लेने की जरूरत है. इस सवाल के जवाब में संरक्षणविद् और सोशल एंटरप्रेन्योर देबाशीष नायक कहते हैं, “हां, ये डर बना हुआ है कि अहमदाबाद अपना वर्ल्ड हेरिटेज सिटी का दर्जा न खो दे.” पिछले साल ही यूनेस्को ने अहमदाबाद को ये टाइटल दिया था. अहमदाबाद, भारत का पहला शहर बना जिसे ये खिताब दिया गया हो. दिल्ली, जयपुर, आगरा, वाराणसी पर अहमदाबाद को तवज्जो मिली.
लेकिन आज एक साल बाद हालात बदल चुके हैं. शहर अतिक्रमण, अवैध निर्माण, होर्डिंग और फेरीवालों की समस्या से जूझ रहा है. अहमदाबाद नगर निगम और एएसआई के सामने चुनौती बेहद बड़ी है. कमर्शियल और रिहायशी अतिक्रमण को हटवाने की. एक खबर के मुताबिक, ASI हर हफ्ते एक FIR दर्ज करा रहा है. शहर के पुराने हिस्से में स्थानीय निवासियों और कारोबारियों को निर्देशों का पालन करने के लिए नोटिस थमाए जा रहे हैं. लेकिन बावजूद इस सारी कवायद के नतीजे काफी धीमे दिखते हैं.
पुराने शहर एक जीती जागती, धड़कती धरोहर है. ये करीब साढ़े पांच वर्ग किलोमीटर के इलाके में फैला है जहां 4 लाख से ज्यादा लोग बसते हैं. यानी बेहद घना बसा इलाका. घर और दुकानें एक दूसरे से चिपकी हुई हैं. गलियां संकरी हैं. यहां तीन सदी पुरानी इमारतें भी मौजूद हैं.
आज यहां रहने वाले कई लोगों ने कई पुरानी इमारतों में एसी लगा लिए हैं जिसकी वजह से प्रॉपर्टी खराब हो रही हैं. दुकान मालिकों ने रानी नो हजीरो ( 1440 में बना अहमद शाह की रानी मुगलई बीबी का मकबरा) के आसपास अतिक्रमण कर लिया है. 1415 में बने तीन दरवाजा के पास भी दुकानें बन गई हैं.
अहमदाबाद शहर की बुनियाद रखने वाले अहमद शाह के मकबरे के पास भी खाने के ठेलों की ‘पार्किंग’ बन चुकी है.
उम्मीद तो है कि एएसआई और अहमदाबाद नगर निगम मिलकर काम करें तो शायद हालात बदल सकें. क्योंकि, यूनेस्को की टीम के दौरे में अभी एक साल बाकी है और तब तक अगर कमर कस कर काम किया जाए तो पुराने शहर की सूरत में बदलाव लाया जा सकता है.
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