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वीडियो एडिटर: विशाल कुमार
वीडियो प्रोड्यूसर: कनिष्क दांगी
एयर इंडिया को बेचने के लिए सरकार अब छूट देने को तैयार है, शर्तें मानने को तैयार है. घाटे में चलने वाली एयर इंडिया बिक ही जाए तो बेहतर है. लेकिन सरकार के झुकने के बावजूद रास्ता इतना आसान नहीं है. साथ ही कुछ सवाल हैं जिनके जवाब सरकार को देने चाहिए. जैसे जब कोई प्राइवेट एयरलाइंस डूब जाती है भ्रष्टाचार की जांच होने लगती है, लेकिन अगर कोई सरकार कंपनी डूब जाए तो क्यों नहीं जिम्मेदारी तय होनी चाहिए?
सुब्रमण्यम स्वामी का कहना है कि एयर इंडिया को बेचना राष्ट्रहित के खिलाफ है. दूसरी तरफ की राय ये है कि सरकार का एयर इंडिया को बेचने का निर्णय अच्छा है, लेकिन इसमें सरकार ने देरी कर दी, ये निर्णय सरकार को बहुत पहले कुछ आसान शर्तों के साथ करना चाहिए था.
जब तक सरकार इसका निजीकरण नहीं करेगी तब तक उसके गले में ये फंदा बना रहेगा और सरकारी खजाने की दिक्कतें, अर्थव्यवस्था की परेशानियां दूर नहीं होंगी. क्योंकि, एयर इंडिया और कई PSU बड़े घाटे में चल रही हैं.
बरसों से इस बात पर बहस चल रही है कि एयर इंडिया को या घाटे में चल रही PSU को बेचा जाना चाहिए या नहीं. अब एयर इंडिया के मामले में सरकार इसे बेचने का निर्णय ले चुकी है.
इन शर्तों के साथ भारत में एयर इंडिया को खरीदने के लिए इन 3 नामों की चर्चा चल रही है.
अब बिडिंग का समय रखा गया है 17 मार्च 2020 का क्योंकि सरकार बिडिंग पर 31 मार्च 2020 तक फैसला कर लेना चाहती है. इस पर डॉक्टर सुब्रमण्यम स्वामी कहते हैं कि सरकार के निजीकरण के फैसले को सामने रख कर ये मान लिया है कि खजाना खली है.
आमतौर पर सरकार जब किसी कंपनी का निजीकरण करना चाहती है तो वो अपनी शर्तें पहले सामने रख देती है और कहती है कि अब इन शर्तों के साथ इसे जो खरीदना चाहता है वो बिडिंग करे. लेकिन इस बार सरकार ने एयर इंडिया को बेचने के लिए अपनी ये प्रक्रिया बदली है, सरकार ने कहा है कि अगर खरीदारों की कुछ शर्तें होंगी तो सरकर उसपर विचार करेगी.
सरकार एयर इंडिया की तीनों कंपनियां बेचना चाहती है जिसमे एयर इंडिया, एयर इंडिया एक्सप्रेस, और ग्राउंड हैंडलिंग टीम जिसमें 49% की हिस्सेदारी सिंगापुर एयर लाइन के पास है तो ये 100% नहीं बिक सकता.
सरकार इससे पूरी तरह बाहर निकलना चाहती है लेकिन उसके बावजूद एयर इंडिया की एफिशिएंसी बाकियों की तुलना में कम है, पर-फ्लाइट स्टाफ बहुत ज्यादा है, खर्चे ज्यादा हैं एक तरह का सफेद हाथी बना हुआ है. तो बिडर सरकार से ये मांग कर सकता है कि उसे कंपनी के स्टाफ को कम करने की आजादी दी जाए. इसके लिए सरकार ने सॉफ्ट रुख अपनाया है, सरकार का कहना है कि 5 साल में 36% कर्मचारी रिटायर हो जाएंगे, उसके हिसाब आप (कंपनी/खरीदार) हायर-फायर कर सकते हैं.
नए प्रस्ताव में सरकार पूरा कर्ज अपने पर ले रही है इसका मतलब ये है कि देश के टैक्स पेयर, हम और आप अपने ऊपर ले रहे हैं, अभी तक घाटे की एयर लाइन को हर साल देश के टैक्स पेयर के पैसों से फंडिंग की जाती रही. एयर इंडिया को बेचने की बात हम लगभग 3 दशकों से कर रहे हैं लेकिन किसी नतीजे पर नहीं पहुंचे हैं, इसलिए सरकार के सामने ये चुनौती आने वाली है कि इस एयर लाइन को किस तरह से साफ सुथरा कर के सरकार बेच पायेगी.
अब एक सवाल टैक्स पेयर का भी है, जनता के पैसों के नुकसान का जिम्मेदार कौन?
निजी एयर लाइनों में दिक्कतों पर सरकार मदद नहीं कर रही है, जेट एयर वेज डूब गयी, किंगफिशर बंद हो गई, उन कमोनियों पर जांच बैठा दी गई. लेकिन जब सरकारी कंपनी घाटे में जा रही है उसमे गड़बड़ी सामने आ रही है तो क्या देश के टैक्स पेयर के पैसों का नुकसान का हिसाब किताब नहीं होना चाहिए, इसकी जांच नहीं होना चाहिए? ये सभी का सवाल है.
सरकार को इसके लिए पिछले सालों में UPA और NDA दोनों सरकारों के वक्त एयर इंडिया के चीफ एग्जीक्यूटिव से पूछना चाहिए कि उन्होंने बिजनेस लॉजिक पर फैसले क्यों नहीं लिए? दूसरी चीज साफ करने की जरूरत ये है कि जब सभी कंपनियां हवाई जहाज लीज पर ले रही थी तो सरकार ने इसे खरीदा क्यों? सरकार को इसकी जांच करवानी चाहिए, क्योंकि सबसे बड़ा सवाल ये उठता है कि प्राइवेट सेक्टर में बिजनस में गड़बड़ी हो तो वो चोर है, लेकिन सरकारी सेक्टर में चोरी भी हो तो वो बिजनस की गलती मानी जाती है, उसका बोझा भी अब टैक्स पेयर उठाएगा और नए खरीदारों को कर्ज मुक्त कंपनी सौप दी जाएगी, ये एक बहुत बड़ा विरोधाभास है
आने वाले दिनों में अगर सरकार को पूरी तरह पारदर्शिता चाहती है तो इसकी सुनवाई एकेडमिक परपस से कर लीजिए, इसके लिए किसी को जिम्मेदार ठरना हो, तो ठहरा सकते हैं, उनपर कार्रवाई होगी या नहीं ये ज्यादा जरूरी बात नहीं है, लोगों को इसके बारे में पता होना ज्यादा जरूरी है.
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