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देशभर में नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ प्रदर्शन हो रहे हैं. प्रदर्शनकारी कवि फैज अहमद फैज का आइकॉनिक गाना ‘हम देखेंगे...’ गाकर अपना विरोध जता रहे हैं. ऐसे में हम इस गाने के बोल के साथ देशभर में हो रहे प्रदर्शन पर एक बार फिर से नजर डालते हैं.
हम देखेंगे...
लाजिम है कि हम भी देखेंगे
हम देखेंगे...
वो दिन कि जिस का वादा है
जो लौह-ए-अजल में लिखा है
जब जुल्म-ओ-सितम के कोह-ए-गिरां
रूई की तरह उड़ जाएंगे
हम महकूमों के पांव-तले
जब धरती धड़-धड़ धड़केगी
और अहल-ए-हकम के सर-ऊपर
जब बिजली कड़-कड़ कड़केगी
जब अर्ज-ए-खुदा के काबे से
सब बुत उठवाए जाएंगे
हम अहल-ए-सफा मरदूद-ए-हरम
मसनद पे बिठाए जाएंगे
सब ताज उछाले जाएंगे
सब तख्त गिराए जाएंगे
बस नाम रहेगा अल्लाह का
जो गायब भी है हाजिर भी
जो मंजर भी है नाजिर भी
उठेगा अनल-हक का नारा
जो मैं भी हूं और तुम भी हो
और राज करेगी खल्क-ए-खुदा
जो मैं भी हूं और तुम भी हो
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