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आखिरकार 2 मई को पांच राज्यों के चुनाव नतीजे सामने आए. इसमें सबसे बड़ी खबर पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की प्रचंड जीत है. इस जनादेश के पीछे बहुत बड़ी बातें छुपी हुई हैं. ममता बनर्जी को हराने में बीजेपी ने अपनी पूरी ताकत लगा दी थी. ये देश की राजनीति में एक नया टर्निंग प्वाइंट है.
बीजेपी को लगता था कि बंगाल उनके लिए ध्रुवीकरण की बड़ी प्रयोगशाला हो सकती है. बंगाल में करीब 25% मुस्लिम आबादी है. वंदे मातरम, भारत माता और हिंदुत्व जैसे शब्द यहां गढ़े जाने की वजह से बीजेपी और संघ के लिए ये वैसे ही काफी महत्वपूर्ण था. लेकिन यहां ध्रुवीकरण की राजनीति नहीं चली.
एससी और दूसरी जातियों को अपनी तरफ करने का बीजेपी का प्लान भी कामयाब नहीं हुआ. विवेकानंद, सुभाष चंद्र बोस, रविंद्रनाथ टैगोर की ब्रांडिंग को अपनाने का भी बीजेपी का इरादा कामयाब नहीं हुआ.
टीएमसी को सिर्फ मुस्लिम वोट ही नहीं मिले, बल्कि हिंदू वोट भी मिले. इसके अलावा महिलाओं के वोट भी उन्हें काफी संख्या में मिले. शहरी इलाकों में भी बीजेपी के मुकाबले टीएमसी को लोगों ने प्राथमिकता दी.
असम में कांग्रेस, बीजेपी के सामने फिर लेट से मैदान में उतरी. टिकटों के बंटवारे में भी गलती हुई. जिसकी वजह से बीजेपी को फिर से वापसी का मौका मिला. परफॉर्मेंस और लोकल चेहरे की वजह से बीजेपी यहां मजबूती से बनी हुई है.
तमिलनाडु में भी द्रविड़ पार्टियों के सामने नॉन द्रविड़ पार्टी के रूप में घुसपैठ की कोशिश की, लेकिन वो कामयाब नहीं हो पाई. स्टालिन लंबे करियर के बाद मुख्यमंत्री बनेंगे. लेकिन पलानीस्वामी ने भी अच्छी खासी टक्कर दी है.
इस चुनाव में प्रमुख तौर पर जो बातें सामने आईं हैं, वो ये कि बीजेपी के सामने क्षेत्रीय पार्टियां मजबूती से खड़ी हैं. लेकिन अगर कांग्रेस की बात करें तो वो उस तरह की भूमिका नहीं निभा पा रही है.
यहां एक बड़ा सवाल है कि बीजेपी के सामने ममता ने जिस तरीके की जीत हासिल की है क्या वो विपक्ष की धुरी बन पाएंगी? एनडीए के साथ जाकर नीतीश कुमार ने वो मौका खो दिया था.
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