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क्या ऑटो इंडस्ट्री पर गिरा ‘ओला’? इस भ्रम से ‘उबर’ जाइए

ऐसा भी तो हो सकता है कि मिलेनियल चाहकर भी कार नहीं खरीद पा रहे? 

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प्राइवेट सेक्टर में 2018-19 में 2009-10 के बाद सबसे कम सैलरी बढ़ी.
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प्राइवेट सेक्टर में 2018-19 में 2009-10 के बाद सबसे कम सैलरी बढ़ी.
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वीडियो एडिटर: वरुण शर्मा

वित्त मंत्री निर्मला सीतारण का कहना है कि millennials की सोच में बदलाव भी ऑटो सेक्टर में मंदी की एक वजह है. लेकिन क्या वाकई ऐसा है? मैं आपके सामने कुछ तथ्य और लॉजिक रखना चाहूंगा, जिससे ये साबित हो जाएगा कि उनके दावे में उतना दम नहीं है.

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क्या वाकई मिलेनियल्स की सोच जिम्मेदार है?

सबसे पहले ये जान लेते हैं कि ये मिलेनियल्स हैं कौन? जिनका जन्म 1981 और 1996 के बीच हुआ. जिनकी उम्र इस वक्त 23 से 38 साल के बीच है. हो सकता है कि ये लोग घरों और कारों की कम खरीदारी कर रहे हैं. लेकिन क्या इससे ये साबित हो जाता है कि वो घर और कार खरीदना ही नहीं चाहते? ऐसा भी तो हो सकता है कि वो चाहकर भी कार नहीं खरीद पा रहे?

भारत सरकार के ताजा आंकड़े बताते हैं कि 15 से 29 साल के 33% युवा बेरोजगार हैं. अब जब उनके पास नौकरी ही नहीं है तो वो कार कहां से खरीदें?

अब उनकी भी बात कर लेते हैं जिनके पास नौकरी है. प्राइवेट सेक्टर में 2018-19 में 2009-10 के बाद सबसे कम सैलरी बढ़ी. जब बढ़ी नहीं पगार तो नौकरीपेशा आदमी कहां से खरीदें कार?

क्या ओला-उबर हैं मंदी के लिए जिम्मेदार?

जून में The Economic Times में एक खबर आई थी, उसके मुताबिक ओला-उबर की सवारियों में भी कुछ खास इजाफा नहीं हो रहा.

रिपोर्ट के मुताबिक 2019 के पहले छह महीने में ओला-उबर की डेली सवारियों में महज 4% का इजाफा हुआ. जबकि 2018 में 20%, 2017 में 57% और 2016 में 90% इजाफा हुआ था.

अब सवाल ये है कि अगर मिलेनियल्स अपने लिए कार खरीदना छोड़, कैब को पसंद कर रहे हैं तो ओला-उबर की सवारियां क्यों तेजी से नहीं बढ़ रही हैं?

ओला-उबर खुद मुसीबत में, इसके और भी सबूत हैं

हकीकत ये है कि कमर्शियल वाहनों का रजिस्ट्रेशन भी घट रहा है. महाराष्ट्र में 2017-18 में 66 हजार टूरिस्ट कैब थे. ये मुख्य तौर पर ओला-उबर के लिए काम कर रहे थे, लेकिन 2018-19 में इनकी संख्या घट कर 25 हजार रह गई.

अब एक और आंकड़े पर नजर डालिए-

Society of Indian automobile manufacturers के मुताबिक देश में कमर्शियल वाहनों की बिक्री में 38% से ज्यादा की कमी आई है. अगर मिलेनियल्स ओला उबर पसंद कर रहे हैं. इसलिए कारें नहीं बिक रही हैं. तो सिर्फ पैसेंजर वाहनों की बिक्री में कमी आनी चाहिए ठीक बात है ना? लेकिन फिर कमर्शियल वाहनों की बिक्री क्यों घट रही है?

ट्रक, ट्रैक्टर और टू व्हीलर का क्या?

2018 अगस्त के मुकाबले इस साल अगस्त में ट्रकों की बिक्री में 60% की कमी आई. ट्रैक्टरों की बिक्री भी 14% घटी. अब जरा टू व्हीलर की बिक्री पर भी नजर डाल लेते हैं. क्योंकि ये वो सेगमेंट है जो ग्रामीण इलाकों की नब्ज के बारे में बताता है. अगस्त में टू-व्हीलर की बिक्री 22% घट गई. इसकी वजह ये बताई जा रही है कि हमारे गांवों में किसानों की आमदनी कुछ खास नहीं बढ़ रही. 2013-14 में गांवों में जहां करीब 28% इनकम ग्रोथ हो रही थी, वो घटकर सिर्फ 5% पर आ गई.

ये सारे फैक्ट बताते हैं कि ऑटो सेक्टर में मंदी की वजह मिलेनियल नहीं जैसा कि वित्त मंत्री कह रही हैं बल्कि ये पूरी इकनॉमी में आई मंदी का एक साइडइफेक्ट है.

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