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Video। मारे गए कारसेवकों के परिवार को राम मंदिर बनने का इंतजार

1990 में मंदिर के लिए जान गंवाने वाले कारसेवकों के परिवारवालों का अब क्या कहना है?

विक्रांत दुबे
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1990 में मंदिर के लिए जान गंवाने वाले कारसेवकों के परिवारवालों का अब क्या कहना है?
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1990 में मंदिर के लिए जान गंवाने वाले कारसेवकों के परिवारवालों का अब क्या कहना है?
(फोटो: क्विंट)

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अयोध्या में राम मंदिर निर्माण को लेकर हलचल जारी है. भगवाधारी पार्टियों के दौरे तेज हो रहे हैं. 2019 का चुनाव भी सामने है. 1990 में इसी राम मंदिर के लिए आंदोलन को धार देने में कारसेवकों की बड़ी भूमिका रही थी. लेकिन जिन लोगों ने कारसेवा में अपनी जान गंवाई उनके परिवारवालों का अब क्या कहना है?

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30 अक्टूबर 1990 में कारसेवा के दौरान वासुदेव गुप्ता की जान चली गई थी. वासुदेव की ‘राम जन्मभूमि’ से कुछ दूरी पर मिठाई की दुकान थी. उनकी बेटी का कहना है-

मेरे भाई बहन किस तरह पले बढ़े वो तो हम जानते हैं. मेरे एक भाई और बहन की मौत हो गई. माता जी को लेकर हम लोग कैसे गुजरे हैं. सहयोग के नाम पर कोई क्या करेगा. हम लोग खुद के पैसे से पढ़-लिख सके. हम लोगों ने कैसा बचपन जिया, वो तो हम लोग जानते हैं.  
<b>सीमा गुप्ता, (मृतक कारसेवक वासुदेव गुप्ता की बेटी)</b>

हालांकि, कारसेवा में मारे गए लोगों के परिवार को अब भी मंदिर बनने का इंतजार है. इस पर राजनीति से कारसेवकों के परिवार वाले निराश हैं.

राजनीति तो बहुत हो रही है लेकिन फिर भी चाहते हैं कि राम मंदिर बने. उसी में ही लगे हुए हैं. बहुत सवाल होते हैं लेकिन सारे सवालों का एक ही जवाब होता है कि हमें मंदिर चाहिए ताकि हमारे पिताजी का बलिदान व्यर्थ ना जाए.&nbsp; &nbsp;
<b>सुभाष पांडेय ( मृतक कारसेवक रमेश पांडेय के बेटे)</b>
अगर भाजपा के कार्यकाल में, भाजपा के सरकार में नहीं बना तो हमें उम्मीद है कि अगले सात जनम में मंदिर नहीं बन पाएगा. क्योंकि इतनी बड़ी सरकार कभी बनी नहीं,&nbsp; शासन से लेकर सत्ता तक इनका राज है, अगर इन्होंने मंदिर निर्माण नहीं कराया तो इनकी सरकार भी नहीं बन पाएगी. &nbsp;
<b>रामसूरत गौड़, कारसेवक</b>

जब भी रामजन्म भूमि आंदोलन की बात उठती है तो कोलकाता के कोठारी परिवार का नाम जरूर लिया जाता है. कोलकाता से भी दो भाई इस आंदोलन में शामिल होने के लिये रवाना हुए थे. 23 साल के राम कोठारी और 21 साल के शरद कोठारी 22 अक्टूबर 1990 को श्री राम जन्मभूमि कारसेवा के लिए कोलकाता से अयोध्या के लिये चले आए थे. कहा जाता है कि वो कोठारी बंधु ही थे जिन्होंने पहली बार बाबरी मस्जिद पर भगवा झंडा लहराया था. 2 नवंबर को कारसेवकों पर हुई फायरिंग में इन दोनों की जान चली गई थी.

कोठारी बंधु के पिता अपने बेटों को याद करते हुए बताते हैं-

मैं जब वहां गया तो मैंने चाहा कि मैं बच्चों को देखूं. बच्चे को अपनी गोद में लूं. लेकिन कारसेवकों ने कहा कि ‘मत कीजिए ऐसा, आप देख नहीं सकेंगे’ क्योंकि उसके सर में गोली लगी थी और छेद हो चुका था. &nbsp;
<b>दुआलाल कोठारी, (मृतक कारसेवक कोठारी बंधु के पिता)</b>

30 अक्टूबर और 2 नवंबर 1990 को जब कारसेवकों ने अयोध्या में विवादित ढांचे (बाबरी मस्जिद) को गिराने की कोशिश की थी, तब मुलायम सिंह यादव यूपी के मुख्यमंत्री थे. बाबरी मस्जिद को बचाने के लिए कारसेवकों पर पुलिस ने फायरिंग की थी. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक फायरिंग में 16 लोग मारे गए थे.

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