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BHU: ‘कोई छेड़कर देखे, पहले धोऊंगी, फिर करूंगी मरहम-पट्टी’

BHU में छात्राओं के साथ छेड़छाड़ की घटना के बाद अब लड़कियां सम्मान की रक्षा के लिए खुद को कर रहीं है तैयार

विक्रांत दुबे
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मेडिकल की ये छात्राएं सेल्फ डिफेंस की ट्रेनिंग ले रहीं हैं.
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मेडिकल की ये छात्राएं सेल्फ डिफेंस की ट्रेनिंग ले रहीं हैं.
(फोटो: द क्विंट)

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अब हमें कोई छेड़कर तो देखें, पहले उन्हें हम धोएंगें, फिर इलाज भी करेंगे. किसी को ये गलतफहमी नहीं होनी चाहिए कि हम लड़कियां कमजोर होती है. सिर्फ पढ़ाई करना ही जानती हैं. ये कहना है, आत्मविश्वास से लबरेज बीएचयू की छात्राओं का. वहीं बीएचयू जो कुछ ही दिनों पहले छात्राओं के साथ छेड़खानी को लेकर सुर्खियों में रहा. छात्राओं ने छेड़खानी के खिलाफ ऐसा आंदोलन खड़ा किया कि वीसी को छुट्टी पर भेज दिया गया. जो बीएचयू के इतिहास में पहली बार हुआ.

छात्राओं ने ये दिखा दिया है कि उन्हें लोकतांत्रिक तरीके से अपना हक लेने तो आता ही है. इसके साथ ही जरूरत पड़ने पर खुद की सुरक्षा भी कर सकती हैं. लड़कियां एक सीमा तक तो बर्दाश्त करती हैं, लेकिन सीमा टूट जाए, तो किसी से कम नहीं. ऐसे में अब बीएचयू की छात्राएं मनचलों को मुंहतोड़ जवाब देने की तैयारी में जुट गई हैं.

बीएचयू प्रशासन छात्राओं को सेल्फ डिफेंस के लिए कराटे की ट्रेनिंग दे रहा है. हालांकि यह ट्रेनिंग बीएचयू में दो माह पहले ट्रॉयल के तौर पर सिर्फ एक हॉस्टल में शुरू हुई थी, लेकिन छेड़खानी की घटना के बाद अब इसे सभी महिला हॉस्टलों में शुरू किया जा रहा हैं.

पहले गिनी चुनी छात्राएं ही ट्रेनिंग लेती थी

बीएचयू के न्यू डॉक्टर गर्ल्स हॉस्टल में जब कराटे की शुरुआत की गई, तो गिनी चुनी छात्राएं ही आती थी, लेकिन अचानक संख्या तेजी से संख्या बढ़ने लगी है. अभी चार सौ से ज्यादा छात्राएं कराटे की ट्रेनिंग ले रही हैं. फिलहाल मेडिकल की छात्राओं को सेल्फ डिफेंस की ट्रेनिंग दी जा रही है क्योंकि मेडिकल की छात्राओं को हॉस्पिटल में ज्यादा समय बिताना पड़ता है, और देर रात हॉस्टल लौटती है.

हमारी सेफ्टी स्टेक पर है. हमारी सेफ्टी पर अगर कुछ होता है, तो हम इतने केपेबल हैं कि उन्हें धूल चटा सकते हैं. पहले हम उन्हें धोएंगे, फिर इलाज करेंगे, क्योंकि हम डॉक्टर भी हैं.
खुशबू धवन, एमबीबीएस फर्स्ट ईयर
हमें देखकर ये समझा जाता है कि ये लड़कियां हैं, कमजोर हैं. लोगों को गलतफहमी है कि हमें सिर्फ पढ़ना ही आता हैं. हम खुद की प्रोटेक्शन नहीं कर सकते, लेकिन ये बिल्कुल गलत है. जरूरत पड़ने पर हम कुछ भी कर सकते हैं.
निहारिका शर्मा, बीडीएस फर्स्ट ईयर

बीएचयू के न्यू डॉक्टर गर्ल्स हॉस्टल में जब कराटे की शुरुआत की गई, तो गिनी चुनी स्टूडेंट ही आती थी, लेकिन अचानक संख्या तेजी से बढ़ने लगी है. अभी चार सौ से ज्यादा छात्राएं कराटे की ट्रेनिंग ले रही हैं.

छात्राओं में बढ़ा आत्मविश्वास

फिलहाल मेडिकल की छात्राओं को अभी सेल्फ डिफेंस की ट्रेनिंग दी जा रही है, क्योंकि मेडिकल की छात्राओं को हॉस्पिटल में ज्यादा समय बिताना पड़ता है, और देर रात हॉस्टल लौटती है. छेड़छाड़ की बढ़ती घटनाओं से परेशान और बीएचयू के संवेदनहीनता से निराश हो रही छात्राओं में सेल्फ डिफेंस की ट्रेनिंग ने फिर से आत्मविश्वास पैदा कर दिया है.

सिर्फ छात्राएं ही नहीं बीएचयू की महिला टीचिंग स्टाफ भी कराटे की ट्रेनिंग ले रही हैं. छात्राओं के साथ खुद बीचएयू की चीफ प्रॉक्टर रोयना सिंह भी मौजूद रहती हैं.

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सुरक्षा और सेल्फ कॉफिडेंस बढ़ाने के लिए कराटे बहुत जरूरी है. लड़कियां लड़कों के बरबार हैं, वो किसी से न ही डरेंगी और न डरती हैं. इसे पायलेट प्रोजेक्ट के तौर पर शुरू किया गया था. हम चाहेंगे कि इस सभी हॉस्टलों में शुरू किया जाए.
रोयना सिंह, चीफ प्रॉक्टर

छात्राओं को ट्रेनिंग दे रहे अमित उपाध्याय का कहना है कि हम लोग सिर्फ सेल्फ डिफेंस के लिए ही छात्राओं को नहीं तैयार कर रहें हैं, बल्कि उन्हें दिमागी तौर पर भी तैयार कर रहे हैं. ताकि हर तरह के माहौल के हिसाब से डिसीजन लिया जाए.

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Published: 16 Oct 2017,08:34 AM IST

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