Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Videos Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019बिहार, बाढ़, बर्बादी, हर साल की वही कहानी, आखिर कब तक?

बिहार, बाढ़, बर्बादी, हर साल की वही कहानी, आखिर कब तक?

बिहार सरकार बाढ़ पीड़ितों के लिए 6 हजार रुपये मुआवजा देती है, लेकिन अब भी कई लोगों को मुआवजा नहीं मिला है.

शादाब मोइज़ी
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<div class="paragraphs"><p>बाढ़ में नाव से अपने गांव जाते लोग</p></div>
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बाढ़ में नाव से अपने गांव जाते लोग

(फोटो-शादाब मोइज़ी)

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"मेरा घर टापू पर है. हां, जैसे फिल्मों में देखते थे न कि चारों तरफ पानी है और बीच में टापू. जहां लोग हेलिकॉप्टर से या पानी वाले जहाज से जाते थे. हर साल हम लोग भी अपने घर सड़क से नहीं बल्कि नाव से जाते हैं. हर तरफ सिर्फ पानी ही पानी है"...

मुंबई में मार्बल कंपनी में काम करने वाले रहमत ने दरभंगा के हायाघाट के नया टोला इलाके में अपना घर बनाया है. रहमत के घर के चारों तरफ पानी है. शहर जाने के लिए रोज नाव लेना होता है. रहमत की तरह ही सैकड़ों गांव वालों को भी सिर्फ नाव का ही सहारा है.

बिहार में बाढ़ (Flood) मानो नियती बन गई है. हर साल बाढ़ आती है, लोगों के घर डूब जाते हैं और फिर सरकार मुआवजा देकर अपना पल्ला झाड़ लेती है. दरभंगा के हायाघाट ब्लॉक में भी करीब-करीब यही हाल है. नया टोला इलाके के रहने वाले मोहम्मद मुख्तार रोज बताते हैं कि साल में करीब चार महीने उनका गांव पानी में डूबा रहता है. मुख्तार कहते हैं,

पिछले 5-6 सालों से हालात ज्यादा खराब हैं. पानी अब चार महीने तक रहता है. जिनका घर पक्का या ऊंचाई पर है वो तो रह ले रहे हैं, लेकिन ज्यादातर लोगों को गांव छोड़कर जाना पड़ता है.

बाढ़ पीड़ितों के लिए 6 हजार रुपये मुआवजा, लेकिन...

बिहार में सरकार हर साल बाढ़ पीड़ितों को 6 हजार रुपये मुआवजा देती है. कई लोगों को मुआवजा मिला भी है. पासवान टोला में रहने वाली बिमला देवी कहती हैं,

अब तक 6 हजार रुपए मुआवजा वाला नहीं मिला है, बैंक अकाउंट भी चेक किए लेकिन पैसा नहीं है. सारे कागजात जमा किए हैं. लेकिन कुछ पता नहीं है.

लॉकडाउन ने छीना रोजगार, अब बाढ़ से हाहाकार

एक और बाढ़ पीड़िता शांति देवी को तो मुआवजा मिल गया है, लेकिन उनकी सास को अब भी मुआवजे का इंतजार है. शांति देवी के परिवार का हाल भी कोरोना के लॉकडाउन की वजह से पहल ऐसे ही बेहाल था. शांति देवी कहती हैं,

पिछले डेढ़ साल से लॉकडाउन की वजह से काम नहीं है. ऊपर से बाढ़ है. बच्चे खाने को तरस रहे हैं. कोई बीमर पड़ गया तो परिवार का क्या होगा. सरकार कहती है कि 6 हजार रुपए दिए हैं, लेकिन आप ही सोचिए सात लोगों के परिवार में 6 हजार रुपए का क्या होगा. नाव के किराए में ही पैसा खर्च होता है.

बता दें कि गांव जाने के लिए सरकारी नाव भी है लेकिन गांव वालों का आरोप है कि सरकारी नाव बहुत कम ही चलती है. प्राइवेट नाव पर ही ज्यादातर लोग निर्भर हैं.

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बाढ़ में घर डूब गया, तो रेलवे ट्रैक के नजदीक रहने को मजबूर

बाढ़ की वजह से कई लोगों के घर डूब गए हैं, ऐसे में लोगों ने अपनी जान बचाने के लिए गांव के पास के रेलवे ट्रैक पर अपनी झोपड़ी बना ली है. भोला पासवान अपनी झोपड़ी दिखाते हुए कहते हैं कि जो बच सका उसे लेकर यहां पहुंच गए. भैंस, गैस सिलेंडर और कुछ सामान के साथ यहीं रह रहा हूं. अपने जानने वालों से कर्ज लिया है.

भोला अपने नेताओं से काफी नाराज हैं. वो कहते हैं कि इस बार बाढ़ में कोई पूछने नहीं आया. बस चुनाव के वक्त सब आएंगे.

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