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बिहार (Bihar) के छपरा (Chhapra) में जहरीली शराब से मौत का आंकड़ा बढ़कर 14 हो गया है. वहीं 13 लोगों की हालत नाजुक बनी हुई है. छपरा से लेकर पटना तक सियासी पारा गरमाया हुआ है. इस मामले को लेकर बीजेपी, सीएम नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) पर हमलावर है तो दूसरी तरफ प्रदेश में शराबबंदी कानून को लेकर सवाल उठ रहे हैं. इस बीच चलिए समझते हैं कि बिहार में शराबबंदी कानून कितना कारगर साबित हुआ है?
जनता छोड़िए बिहार में नेता लोग ही शराब से रोक हटाने की मांग कर रहे हैं. पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी, उपेंद्र कुशवाहा सहित कई नेता शराबबंदी पर नाराजगी जाहिर कर चुके हैं. इस बार इन तमाम नेताओं से दो कदम आगे बढ़कर कांग्रेस ने बिहार में शराबबंदी को लेकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से बड़ी मांग कर दी है. राजापाकर से कांग्रेस विधायक प्रतिमा कुमारी दास ने कहा है कि बिहार में शराब की दुकानें खुलनी चाहिए और खाने-पीने की चीजों पर प्रतिबंध नहीं लगना चाहिए.
बिहार में शराबबंदी खत्म करने का मुद्दा लगातार उठता रहता है. ऐसे में चलिए आपको पहले इसका इतिहास बता देते हैं. फिर बताएंगे कि क्यों शराबबंदी खत्म करने की मांग उठती रही है.
नीतीश सरकार जब साल 2005 में सत्ता में आई तो उन्होंने सरकार की शराब नीति को उदार किया. जिससे सरकार के राजस्व में बेहताशा बढ़ोतरी हुई, वहीं शराब की दुकानों का सघन नेटवर्क भी तैयार हुआ. शराब की इस उपलब्धता और गांव के स्तर पर भी शराब की भठ्ठी खुलने से 2015 आते-आते विरोध प्रदर्शन तेज हो गए. इसके बाद महिलाओं की मांग पर और विधानसभा चुनाव को देखते हुए नीतीश कुमार ने राज्य में पूर्ण शराबबंदी का वादा किया.
हालांकि, नीतीश कुमार के इस फैसले पर भी बीते 6 सालों में सवाल उठते रहे हैं. कभी इसे राजस्व नुकसान से जोड़ कर देखा जाता है तो कभी शराब की बढ़ती तस्करी का तर्क दिया जाता है. पहले बात कर लेते हैं राजस्व नुकसान की. नवंबर 2021 में छपी द हिंदू की खबर ने Confederation of Indian Alcoholic Beverage Companies के हवाले से बताया कि
अब आते हैं बढ़ती शराब तस्करी के मुद्दे पर. शराब बंदी की वजह से बिहार में शराब माफिया का उदय हुआ है. प्रदेश में भारी मात्रा में शराब की तस्करी हो रही है. फ्री प्रेस जर्नल की रिपोर्ट के मुताबिक, बिहार में 2021 के दौरान प्रवर्तन एजेंसियों ने 45.37 लाख लीटर से अधिक शराब जब्त की. इसमें से 32.14 लाख लीटर भारत निर्मित विदेश शराब थी. वहीं 5.62 लाख लीटर देशी शराब थी.
वैध शराब पर रोक की वजह से अवैध शराब की बिक्री बढ़ी है. नकली या जहरीली शराब पीने से मौत की खबरें आती रहती हैं. टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी रिपोर्ट के मुताबिक मार्च 2021 से मार्च 2022 के बीच 11 जिलों में जहरीली शराब से 157 लोगों की मौत हुई थी.
एक तरफ जहरीली शराब काल बन गया है तो दूसरी तरफ शराबबंदी की वजह से गांजे की तस्करी भी बढ़ी है. नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो की 2021 की रिपोर्ट के मुताबिक बिहार में 27 हजार 395 किलो गांजा जब्त किया गया था. 2020 की रिपोर्ट के मुताबिक 16 हजार 607 किलो गांजा जब्त किया गया था.
अब जरा शराबबंदी की वजह से दर्ज मामलों पर नजर डालते हैं. PRS Legislative Research की रिपोर्ट के मुताबिक, शराबबंदी कानून के तहत बिहार में 2018 से 2020 के बीच 45,000 FIR दर्ज किए गए. इस दौरान, अदालतों में लंबित मामलों की संख्या लगभग चौगुनी हो गई.
फरवरी 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने अदालत में लंबित मामलों के लेकर चिंता जताई थी. इसके साथ ही बिहार सरकार से इस मामले में जवाब तलब किया था. जिसके बाद मार्च 2022 में बिहार सरकार ने शराबबंदी संशोधन विधेयक पेश किया. नए शराबबंदी कानून के तहत शराब पीने वालों को छूट दी गई.
पहली बार शराब पीकर पकड़े जाने पर मजिस्ट्रेट द्वारा जुर्माना लेकर छोड़ने का प्रावधान किया गया.
जुर्माना नहीं देने पर एक महीने की जेल का प्रावधान है.
बार-बार शराब पीकर पकड़े जाने पर कड़ी कार्रवाई का प्रावधान है.
संशोधन के तहत इस तरह के मामलों में सुनवाई एक साल के अंदर पूरी करने का भी प्रावधान है.
बहरहाल, बिहार में पूर्ण शराबबंदी के बावजूद अवैध शराब की ब्रिकी की खबरें लगातार सामने आती रहती हैं. वहीं जहरीली शराब भी चिंता का बड़ा कारण है. ऐसे में शराबबंदी बस कागजों पर सिमट गया है.
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Published: 14 Nov 2022,10:08 AM IST