Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Videos Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019‘बिहार का शोक’:अरबों खर्च के बाद भी क्यों नहीं रुकी कोसी की बाढ़?

‘बिहार का शोक’:अरबों खर्च के बाद भी क्यों नहीं रुकी कोसी की बाढ़?

‘बिहार का शोक’ कही जाने वाले कोसी नदी की कहानी

शादाब मोइज़ी
वीडियो
Updated:
‘बिहार का शोक’ कहे जाने वाले कोसी नदी की कहानी
i
‘बिहार का शोक’ कहे जाने वाले कोसी नदी की कहानी
(फोटो: क्विंट हिंदी)

advertisement

वीडियो एडिटर: आशुतोष भारद्वाज और पूर्णेन्दु प्रीतम

एनिमेशन: पुनीत भटिया

3 देश, तिब्बत, नेपाल और भारत. करीब 730 किलोमीटर की यात्रा. ये कहानी कोसी नदी की. जिसे लोग ‘बिहार का शोक’ भी कहते हैं.

बिहार में बाढ़ हर साल आती है. बाढ़ की वजह से हजारों लोगों की मौत, खेतों का उजड़ना, जानवरों के लिए आफत, लाखों लोगों का विस्थापन होता है. इस बाढ़ को रोकने के लिए अरबों खर्च हो गए लेकिन लेकिन हालात नहीं बदले. हर साल अखबारों और न्यूज चैनलों पर गांव का डूबना, बांध का टूटना, पुलों का बिखरना देखते हैं, लेकिन सवाल ये है कि इसमें कोसी का क्या लेना देना है? जवाब है- बहुत.

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

कहां से शुरू, कहां खत्म?

बिहार के इस 'शोक' का ओरिजिन प्वाइंट दुनिया के सबसे ऊंचे पर्वत हिमालय में है.. हिमालय के गोसाइईंथान शिखर के उत्तर में कोसी का उद्गम स्थल है. कोसी नेपाल-भारत बॉर्डर पर भीमनगर के रास्ते बिहार के सुपौल, सहरसा होते हुए कटिहार के कुरसेला में गंगा नदी से मिल जाती है.

कितनी आबादी, कितने इलाके इसकी चपेट में?

बिहार में सहरसा, सुपौल, मधेपुरा, पूर्णिंया, कटिहार, किशनगंज, अररिया, दरभंगा, मधुबनी, खगड़िया और इसके आसपास के इलाके को कोसी बेल्ट कहा जाता हैं. करीब 50 लाख लोगों को कोसी जीवन भी देती है, और उनके लिए मुसीबत भी लाती है. नदी के डूब क्षेत्र की जमीन उपजाऊ होती है जहां फसलें लहलहाती हैं.

बाढ़ की वजह

लेकिन गर्मियों में बर्फ पिघलने और बारिश होने, इन दोनों के कारण कोसी में पानी का स्तर बढ़ जाता है. हाल के सालों में ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से ग्लेशियरों के पिघलने की रफ्तार और बढ़ी है और बिहार का शोक भी. नदी से जुड़े एक्सपर्ट और आईआईटी कानपुर में अर्थ साइंस के प्रोफेसर राजीव सिन्हा की स्टडी बताती है कि कोसी में आने वाली बाढ़ की एक बड़ी वजह सिल्ट है. कोसी में बारिश के साथ-साथ पानी नेपाल के पहाड़ी इलाकों से आता है. भारी बारिश की वजह से पहाड़ी इलाकों से बहुत ज्यादा मात्रा में पानी के साथ, गाद (सिल्ट) भी आती है. जिससे हुआ ये कि गाद नदी की सतह में जमती गई और नदी का तल करीब 4 मीटर ऊपर उठ गया.

बाढ़ मुक्ति अभियान के दिनेश मिश्रा बताते हैं, "तटबंध बनाकर नदियों के असल रास्ते को और उसकी धारा को आजादी के साथ बहने से रोक दिया गया है. पहले जब बांध नहीं थे तब बारिश के मौसम में पहाड़ से आए गाद, बालू सबको फैलने की जगह मिलती थी, लेकिन बांध बनाकर नदी को बांध दिया गया."

कोसी पर बांध बनाने का मकसद 2.14 लाख हेक्टेयर जमीन को प्रोटेक्ट करना था, लेकिन इसके बदले करीब 4 लाख हेक्टेयर जमीन बर्बाद हो गई.

कोसी पर बना बैराज, लेकिन कितना कारगार

कोसी नदी के बाढ़ को रोकने के लिए आजाद भारत में पहली बार साल 1953-54 में एक परियोजना की मंजूरी दी गई. नाम दिया गया 'कोसी प्रोजेक्ट.' तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने जब इस परियोजना का शिलान्यास किया था, तब उस वक्त कहा गया था कि इस योजना को पूरा करने के बाद कोसी क्षेत्र की बाढ़ की समस्या पर काबू पा लिया जाएगा. लेकिन कई दशक बीत जाने के बाद भी बाढ़ के आगे बिहार बेबस है.

नेपाल से आने वाली सप्तकोशी के बहाव को रोकने के लिए 1955 और 1963 के बीच यह योजना, मतलब नदी के दोनों किनारों पर लगभग 125 किलोमीटर तटबंध और उसके साथ कोसी बैराज बनकर तैयार हुआ. इस बैराज के जरिए बाढ़ को कंट्रोल करने के साथ-साथ सिंचाई और बिजली का उत्पादन भी करना था. लेकिन कोसी बैराज और तटबंध मतलब embankment बनने के बाद भी बाढ़ रुकी नहीं.

कोसी के नाम पर पैसों का खेल

कोसी पर बांध से लेकर बैराज और बाढ़ से पहले और बाद में मरम्मत के नाम पर अब तक 20 हजार करोड़ से ज्यादा खर्च हो चुके हैं. सिर्फ 2008 में आई भयावह बाढ़ में 14,800 करोड़ का नुकसान हुआ था. कोसी की बाढ़ की वजह से 1953 से लेकर अब तक 5 हजार से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है. वहीं 20 हजार से ज्यादा जानवर मारे जा चुके है.

flood relief और rehabilitation के लिए वर्ल्ड बैंक से 2004 में 220 मिलियन अमेरिकी डॉलर मतलब करीब 1646 करोड़ रुपए (16,46,71,10,000) रुपये का फंड मिला था, ताकि तटबंधों के किनारे रहने वाले बाढ़ प्रभावित करीब पौने 3 लाख लोगों के लिए पक्का घर बने और जमीन दी जाए. साल 2012 तक बिहार सरकार के योजना विकास विभाग ने इस काम के लिए 1 लाख 36 हजार मकान बनाने का लक्ष्य रखा था. लेकिन ये काम 2018 तक चलता रहा और सिर्फ 66 हजार मकान तैयार हो सके.

यही नहीं, वर्ल्ड बैंक बिहार कोसी बेसिन डेवलेपमेंट प्रोजेक्ट नाम से एक और योजना चला रही है. 2015 में शुरू हुए इस प्रोजेक्ट का लक्ष्य 2023 रखा गया है. यह कुल 376 मिलियन अमेरिकी डॉलर यानी करीब ढाई हजार करोड़ रुपए ( 25,15,29,60,000)  का प्रोजेक्ट है. इस प्रोजेक्ट का मकसद बाढ़ के खतरे से निपटना और किसानों के लिए सिंचाई की सुविधा मुहैया कराना है. लेकिन फिलहाल इस प्रोजेक्ट की रेटिंग बस ठीक ठाक है.

अब सवाल है कि इस बाढ़ को कैसे रोका जाए. तो जवाब है कि कोसी का रास्ता ना रोका जाए. जो बांध बन गए हैं वो पुराने हो रहे हैं, वो टूटते जाएंगे, उसे वक्त पर मजबूत कर लिया जाए. नदी में जमा होती गाद की सफाई कैसे हो, इसका पुख्ता इंतजाम हो.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: 17 Aug 2020,06:40 PM IST

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT