Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Videos Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019VIDEO | बीजेपी की चुनाव जिताऊ मशीनरी का बड़ा सच ये है

VIDEO | बीजेपी की चुनाव जिताऊ मशीनरी का बड़ा सच ये है

बीजेपी की चुनावी जीत वाली मशीनरी की कार्यकुशलता ने सबको चौंका दिया है.

मयंक मिश्रा
वीडियो
Updated:
(फोटो: कनिष्क दांगी/क्विंट हिंदी)
i
null
(फोटो: कनिष्क दांगी/क्विंट हिंदी)

advertisement

कर्नाटक चुनाव के बाद एक बार फिर बीजेपी की 'द ग्रेट इलेक्शन मशीनरी' चर्चा में है. आखिर कैसे ये मशीनरी बिना थके लगातार काम करती है और नतीजे देती है, इसे एक वाकये से समझिए.

मैं बिहार और पश्चिम बंगाल चुनाव के दौरान तीन पार्टियों के चुनावी दफ्तर गया और बिल्कुल अलग-अलग बातें सुनी.

“मैं तो जी जान से काम कर रहा हूं, देखिए चुनाव जीतने के बाद कुछ फायदा मिलता है या नहीं”- पहले दफ्तर में एक डेडिकेटेड वर्कर का मुझे जवाब मिला.

दूसरे दफ्तर में- “जान जाए परवाह नहीं, लेकिन क्लास एनेमी के खिलाफ तो लड़ना ही है.”

तीसरे दफ्तर में ठीक उलट ही भाषा- “हिंदू राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया में सहयोग तो देना ही होगा.”

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

अब आप खुद ही जान गए होंगे कि मैं किन पार्टियों की बात कर रहा हूं- पहला एक सेंट्रिस्ट पार्टी जेडीयू का दफ्तर था. दूसरा सीपीएम का और तीसरा बीजेपी का. इन तीनों के बीच के बेहद सूक्ष्म अंतर पर गौर कीजिए.

हाल के दिनों में पार्टियों और कार्यकर्ताओं के बीच कॉन्ट्रैक्चुअल रिलेशनशिप रही है. मतलब ये कि मैं आपको चुनाव जीतने में मदद करता हूं, बदले में मेरा काम होना चाहिए. वोटरों के साथ भी पार्टियों का ये मैसेज डिलीवर होता रहा है.

“मैं विकास डिलीवर करने की कोशिश करूंगा और मुझे वोट देकर इसके काबिल बनाते रहिए.”

कम से कम चुनाव की यही भाषा रही है जिसे पार्टी कार्यकर्ता लोगों तक अपने तरीके से पहुंचाते हैं. जिसकी मैसेजिंग जितनी तगड़ी, कार्यकर्ता जितने मोटिवेटेड और चार्ज्ड, जीत उतनी ही असरदार होगी. लेकिन बीजेपी ने हाल के दिनों में सब कुछ बदला है. और जिसे बीजेपी की ग्रेट इलेक्शन मशीनरी कहा जा रहा है, यही बदलाव है.

(फोटो: PTI)

इलेक्शन मशीनरी में कई एलिमेंट्स पर बात होती है. जैसे कितना बड़ा कैडर बेस है. कैडर्स को ठीक से जिम्मेदारी दी गई है या नहीं, इसकी माॅनिटरिंग हो रही है या नहीं. जो मैसेज वोटरों को देना है वो ठीक से पहुंच रहा है कि नहीं. लोगों की राय नेताओं को मिल रही है या नहीं?

जैसा मैंने ऊपर लिखा, पहले ये संबंध काॅन्ट्रैक्चुअल था. और ऐसे में कार्यकर्ताओं का मूड बिगड़ने का खतरा होता था. अगर कार्यकर्ताओं का चुनाव से पहले या बाद में ठीक खयाल नहीं रखा गया तो सारा खेल बिगड़ सकता है.

लेकिन बीजेपी की नई लीडरशिप ने काॅन्ट्रैक्चुअल संबंध को ही तोड़ दिया है. बीजेपी के लीडर और कार्यकर्ताओं में कोई कॉन्ट्रैक्ट नहीं है. लेकिन एक मकसद है, वो है हिंदू राष्ट्र बनाने का सपना. इस सपने की खासियत है कि इससे मोह भंग होने का कोई खतरा नहीं है. कोई समयसीमा नहीं है. और किसी को भी पता नहीं है कि ऐसा होगा तो सबकी जिंदगी कैसे बदलेगी.

इसके साथ-साथ कम से कम आरएसएस की करीब 60 हजार शाखाओं की ताकत भी है. चूंकि मोहभंग का कोई खतरा नहीं है तो बीजेपी के कैडर दिन-रात, पूरी मेहनत से सपने को साकार करने की मुहिम में लगे रहते हैं.
उनको कोई फर्क नहीं पड़ता है कि बीजेपी ने जो वादा किया वो पूरे हुए या नहीं, बड़े नेता ने रैली में कौन से मुद्दे उठाए. असली मुद्दा तो है उस सपने को पाने के लिए हर चुनाव को हर हाल में जीतना है और सपने के करीब पहुंचना.

इस नई मशीनरी का कमाल देखिए. बीजेपी को 31% वोट के साथ 2014 में 282 लोकसभा सीटों पर जीत मिली थी. ये देश के चुनावी इतिहास का रिकॉर्ड है.

इस रिकॉर्ड की 2 बड़ी वजह हैं- एक तो हमारे कैडर हमारे खास वोटरों को वोट दिलाने में कितने कामयाब होते हैं? और दूसरी बात है कि हमारे विरोधियों का वोट कितना बंटा हुआ है?

आप इस मशीनरी का हिस्सा हों या इसे दूर से देख रहे हों, इतना तो मानना पड़ेगा कि इस मशीनरी की कार्यकुशलता से सबको चौंका दिया है.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: 17 May 2018,06:03 PM IST

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT