advertisement
नए आंकड़ों से रोजगार संकट बेपर्दा हो गया है. इस वक्त देश में रोजगार की हालत पिछले 45 साल में सबसे खराब है. नेशनल सेंपल सर्वे ऑफिस (NSSO) के पीरियॉडिक लेबर फोर्स सर्वे (PLFS) के मुताबिक, साल 2017-18 में बेरोजगारी दर 6.1% थी. ये वही रिपोर्ट है, जिसे जारी न करने को लेकर केंद्र सरकार विवादों में है.
सबसे अधिक परेशान करने वाली बात ये है कि नोटबंदी के बाद ही हालात बदतर हुए हैं, जिसकी सबसे ज्यादा मार महिलाओं पर पड़ी है. वजह ये कि अगर कुछ पुरुष रोजगार की तलाश में जा रहे हैं, तो महिलाएं घर पर रह रही हैं. वो अपने आप को जॉब मार्केट से हटा रही हैं.
रिपोर्ट कहती है कि देश के शहरी इलाकों में बेरोजगारी दर 7.8 फीसदी, जबकि ग्रामीण इलाकों में 5.3 फीसदी है. गांव में ये संकट थोड़ा कम लगता है. इसकी वजह है कि लोग खेती से हटकर शहरों की तरफ आकर, कस्बों की तरफ आकर जॉब ढूंढने की कोशिश कर रहे हैं.
एक और गंभीर बात ये है कि सरकार या तो डेटा छिपाती है या कोशिश करती है कि अगर कोई डेटा बाहर आता है, तो उसे किसी बहस से काट दो. लेकिन ध्यान देने वाली बात ये है कि CMIE के जो आंकड़े पिछले दिनों आए हैं, वो भी इसी रोजगार संकट की तरफ इशारा कर रहे हैं.
ये जो सर्वे है, इसका काम जून 2018 में पूरा गया था. रिपोर्ट सितंबर-अक्टूबर में रिलीज कर सकते थे. लेकिन रिलीज नहीं होने दिया गया, तो दो एक्सपर्ट ने इस्तीफा दे दिया. मतलब सरकार का झूठ बोलना, डेटा में घालमेल करना फिर से कंफर्म हुआ है.
सरकार इस बात का कोई जवाब नहीं देगी. उस पर कोई दबाव नहीं है. सरकार इसे ‘फालतू’ भी करार दे सकती है. लेकिन ये बात नहीं भूलना चाहिए कि जो बेरोजगार है, उसको किसी नए आंकड़े की जरूरत नहीं है, वो खुद ही चलता-फिरता आंकड़ा है.
आखिर में ये कहना है कि नोटबंदी बिलकुल अज्ञान का, अहंकार का कदम था. इसका खामियाजा सरकार को भुगतना पड़ेगा या नहीं, इसका पता नहीं, लेकिन देश को भुगतना पड़ा है.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)