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केयर्न एनर्जी केस: टैक्स विवाद में फिर हार,देश की साख को बड़ा झटका

ऑयल एक्सप्लोरेशन का काम करने वाली स्कॉटिश कंपनी केयर्न एनर्जी का पूरा मामला समझिए

संजय पुगलिया
ब्रेकिंग व्यूज
Updated:
(फोटो- क्विंट हिंदी)
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(फोटो- क्विंट हिंदी)

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वीडियो एडिटर- कनिष्क दांगी

भारत सरकार और भारत की साख को एक बड़ा झटका लगा है. केयर्न एनर्जी नाम की कंपनी ने हेग स्थित अंतरराष्ट्रीय अदालत में सरकार के साथ टैक्स विवाद का केस जीत लिया है. इंटरनेशनल आर्बिट्रेशन ट्रिब्यूनल ने फैसला दिया है कि भारत सरकार का कंपनी पर 120 करोड़ डॉलर के टैक्स का दावा सही नहीं है. बता दें कि ये एक रेट्रोस्पेक्टिव टैक्स का मामला है, मतलब कानून बनाकर पुरानी डेट के लिए टैक्स वसूलना. कंपनी का कहना है कि जब भारत और इस कंपनी में व्यापार का करार हुआ था तब के नियमों के मुताबिक ये टैक्स का प्रावधान नहीं था और बाद में ये टैक्स नहीं लगाया जा सकता है.

इसके पहले भी सितंबर महीने में वोडाफोन केस में सरकार के खिलाफ फैसला आया था. तब भी अंतरराष्ट्रीय आर्बिट्रेशन में वोडाफोन की जीत हुई थी, कंपनी का कहना था कि सरकार ने 22 हजार करोड़ रुपए का टैक्स मांगा था, जो कि अनुचित है. इसी तरह एक और केस अमेरिका की इंटरनेशनल चैम्बर ऑफ कॉमर्स में चला, इस अदालत के फैसले के बाद ISRO की कंपनी एंट्रिक्स ने देवास मल्टीमीडिया को 1.2 बिलियन डॉलर चुकाए.

क्या है केयर्न एनर्जी का केस?

ऑयल एक्सप्लोरेशन का काम करने वाली स्कॉटिश कंपनी केयर्न एनर्जी का मामला ये है कि वेदांता से जब कंपनी ने डील की थी तो रीस्ट्रक्चरिंग करने की जरूरत पड़ी थी. तब भारत सरकार ने कहा था इस डील की वजह से आपको 24 हजार करोड़ रुपये का टैक्स देना होगा. तब सरकार ने करीब 8 हजार करोड़ रुपये के शेयर और डिविडेंट अपने पास रख लिए और कंपनी को नहीं लौटाए. लंबे चौड़े विवाद के बाद ये मामला फैसले तक पहुंचा है. सरकार को अब ब्याज वगैरह मिलाकर 10 हजार करोड़ रुपये कंपनी को लौटाने होंगे. सरकार का कहना है कि वो इस केस को फिर से चुनौती देगी.

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UPA-2 के वक्त के हैं दोनों केस, मोदी सरकार का स्टैंड भी वही

जानकारी के लिए बता दें कि ये दोनों केस यूपीए-2 के वक्त लगाए गए थे जब वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी थी. बैकडेट में टैक्स लगाने के कदम की पूरी दुनिया में आलोचना हुई थी. खुद मनमोहन सिंह भी इसके पक्ष में नहीं थे, ये बात प्रणब मुखर्जी ने अपनी किताब में लिखी है. लेकिन प्रणब दा ने ये भी सवाल उठाया कि अगर ये इतना ही बुरा टैक्स है तो सरकार इन टैक्स को क्यों नहीं हटा रही है. मौजूदा सरकार भी मानकर चल रही है कि इन मामलों में सरकार को पीछे नहीं हटना है और ये हमारा सार्वभौमिक और संप्रभु अधिकार है. लेकिन मौजूदा सरकार 'ईज ऑफ डूइंग बिजनेस' पर बहुत जोर देती है. ऐसे में अगर कारोबारी करार का सम्मान नहीं होगा तो 'ईज ऑफ डूइंग बिजनेस' का सपना साकार करने में दिक्कत आएगी.

(ग्राफिक्स- क्विंट हिंदी)

सरकार को अड़ियल रवैया छोड़कर मुद्दा सुलझाना चाहिए

भारत में अभी राष्ट्रवादी सरकार सत्ता पर काबिज है और सरकार और अधिकारी मानकर चलते हैं कि टैक्स के मुद्दे भारत की संप्रभुता का मामला है. लेकिन दुनिया में वकील और एक्सपर्ट इस पर हंसते हैं, उनका मानना है कि भारत की सरकार अगर इसी अड़ियल रवैए के आधार पर फैसले करती रही, तो इससे निवेश का मौहाल बिगड़ सकता है. इस तरह के केस से पूरी दुनिया में भारत की सार पर बट्टा लगता है. सरकार अगर इस मामले में अपील दायर करती है तो ये अच्छी नजीर पेश नहीं करेगा. सरकार को चाहिए कि कंपनी के सामने बैठकर बात करे और मामले को बातचीत की टेबल पर निपटा दिया जाए.

(ग्राफिक्स- क्विंट हिंदी)

हम ये जानते हैं कि भारत सरकार देश में सबसे बड़ी मुकदमेबाज है, लेकिन इंटरनेशन आर्बिट्राज एक गंभीर बात होती है. वहां जाने का मतलब है कि आपकी व्यवस्था इस मामले को नहीं निपटा पा रही है. सिर्फ विदेशी कंपनियां ही नहीं देश की कंपनियां भी इन इंटरनेशनल अदालतों में जाती हैं.

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Published: 23 Dec 2020,09:03 PM IST

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